हमारी नारी दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदी ये है कि जब हम पश्चिमी जीवन शैली अपनाते है तो हमें अल्टा मॉर्डन कहा जाने लगता है हम पर फब्तियां कसी जाने लगती है और जब हम भारतीय संस्कृति अपनाते है तो हमें रूढ़िवादी कहा जाने लगता है। कुछ लोग कहते है कि हमने पुराने जरुरी बंधनो को खोल दिया है जो समाज के लिए बहुत घातक है। हमारी अभिव्यक्ति को समाज अपनी पूरी कुंठा के साथ कट्टरता से देखता है और समय-समय पर हमें दंड भी देता है कभी निर्भया बना कर कभी मलाला बना कर।
मानते है हम में भी समाज के दूसरे लिंग की ही तरह कुछ कमिया है और हम उन कमियों पर नजर भी रखे है ये हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी भी है हम उससे पार पाने की भी कोशिश भी कर रहे है। कोशिश है कि हमें धर्म,लिंग, अति महत्वकांक्षा की आड़ कोई इस्तेमाल न करे पर ये कोशिश हम स्त्री ही करना चाहती है हमें कोई सशक्तिकरण नहीं चाहिए हमें हमारी समस्या के लिए खुद ही हल खोजने दे ये हमारी शारीरिक सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है तभी तो हम अपनी ऊर्जा को बेहतर ढंग से बेहतर कार्यो के लिए इस्तेमाल कर पाएंगे। स्त्री सशक्तिकरण जैसे शब्दों से हमारी समस्या कुछ स्त्री प्रश्न या स्त्री मसलो तक ही सीमित कर दी है हमारा प्रश्न तो विराट है वो किसी सशक्तिकरण के दायरे में नहीं आ सकता।
हमारा पहला व अंतिम प्रश्न है हमें मनुष्य क्यों नहीं समझा जाता और जहां कही ऐसा समझा भी गया है वह हमें नियंत्रित रखा जाता है कि हमें कभी-कभी मनुष्य होने पर भ्रम होता है हम मनुष्य की सीमित नसल है।
हमारे सृजन को हमारे त्याग को देवीत्व और गरिमा से जीने के संघर्ष को देह -विमर्श में मत बदलो बस हम इतना ही चाहते है अगर पुरुष ऐसे कर सके तो हम वादा करते है कि सदियों से आप की दुनिया का हिस्सा बनी सामाजिक व्यवस्था और परम्परागत सोच को हम आप से दूर कर देंगे उन रूढ़िगत संस्कारों से आप को बचा लेंगे जिनके शिकार होकर सदियों से आप पुरुषवादी अहंकार के नीचे दबे ठीक से सांस नहीं ले पा रहे है।
सदियों से पुरुष वादी चोले को उतरने का समय आ गया है पुरुष तुम रूढ़िग्रस्त संस्कारों से मुक्त हो और सभ्य बनो हम स्त्री जाती तुम्हारे साथ है आओ दोनों मिलकर उत्तर फेके चोले उन साढ़े- गले कु संस्कारो के और पूर्ण करे मनुष्यता को।
मानते है हम में भी समाज के दूसरे लिंग की ही तरह कुछ कमिया है और हम उन कमियों पर नजर भी रखे है ये हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी भी है हम उससे पार पाने की भी कोशिश भी कर रहे है। कोशिश है कि हमें धर्म,लिंग, अति महत्वकांक्षा की आड़ कोई इस्तेमाल न करे पर ये कोशिश हम स्त्री ही करना चाहती है हमें कोई सशक्तिकरण नहीं चाहिए हमें हमारी समस्या के लिए खुद ही हल खोजने दे ये हमारी शारीरिक सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है तभी तो हम अपनी ऊर्जा को बेहतर ढंग से बेहतर कार्यो के लिए इस्तेमाल कर पाएंगे। स्त्री सशक्तिकरण जैसे शब्दों से हमारी समस्या कुछ स्त्री प्रश्न या स्त्री मसलो तक ही सीमित कर दी है हमारा प्रश्न तो विराट है वो किसी सशक्तिकरण के दायरे में नहीं आ सकता।
हमारा पहला व अंतिम प्रश्न है हमें मनुष्य क्यों नहीं समझा जाता और जहां कही ऐसा समझा भी गया है वह हमें नियंत्रित रखा जाता है कि हमें कभी-कभी मनुष्य होने पर भ्रम होता है हम मनुष्य की सीमित नसल है।
हमने जीवन का सृजन किया है हम जीवन रचियता है हमने न जाने सृजन के कितने-कितने गीत लिखे है तब हमें गरिमा के साथ जीने का हक़ क्यों नहीं?
हमारे सृजन को हमारे त्याग को देवीत्व और गरिमा से जीने के संघर्ष को देह -विमर्श में मत बदलो बस हम इतना ही चाहते है अगर पुरुष ऐसे कर सके तो हम वादा करते है कि सदियों से आप की दुनिया का हिस्सा बनी सामाजिक व्यवस्था और परम्परागत सोच को हम आप से दूर कर देंगे उन रूढ़िगत संस्कारों से आप को बचा लेंगे जिनके शिकार होकर सदियों से आप पुरुषवादी अहंकार के नीचे दबे ठीक से सांस नहीं ले पा रहे है।
सदियों से पुरुष वादी चोले को उतरने का समय आ गया है पुरुष तुम रूढ़िग्रस्त संस्कारों से मुक्त हो और सभ्य बनो हम स्त्री जाती तुम्हारे साथ है आओ दोनों मिलकर उत्तर फेके चोले उन साढ़े- गले कु संस्कारो के और पूर्ण करे मनुष्यता को।
No comments:
Post a Comment