Friday, October 17, 2014

जीने की कला

ये आप को तय करना है की आप को कैसा जीवन जीना है वो जीवन जिसमे बाहरी उन्नति है जिसे हम भौतिक उन्नति भी कहा सकते है या फिर वो जीवन जिसमें आंतरिक उन्नति हो . क्या ये अच्छा नहीं हो कि हम ऐसा जीवन जीये जिसमे हमारी अंतरज्योति हमेशा जीवित रहे प्रकाशमान रहे।
जीवन जीना एक कला है और ये कला पूरब के पास बर्षो से थी। भारत की धरती पर जीवन की ये कला बिखरी हुई थी तभी तो जीवन के सही अर्थ के प्रति हमारा दृष्टिकोण हमेशा सकारात्मक और उद्देश्यपूर्ण रहा. जीवन के बाद जीवन की अवधारणा की बात सिर्फ हम ही करते है। हम कौन है ? हमारे जीवन को जीने का क्या उद्देश्य है ....? ये हमारी संस्कृति में लाखों वर्षो से है।

हमारे देश में तमाम ऐसे योगी हुए जिन्हें आध्यात्मिक जागृति की कला का पूर्ण ज्ञान था। कुछ ने उसे बटा भी इस आशा में कि मानव उन्हें अपने जीवन जीने में लागू कर सके और ऐसा हुआ भी परंतु दुर्भाग्य से जीवन जीने की कला सब को नहीं मिल पाई।
हम में से बहुत सारे लोग जीवन में चमत्कार की आशा करते हुए पूरा जीवन काट देते है ऐसा करके लोग अपने जीवन में सिर्फ गतिरोध ही उत्पन्न करते है और निराशा के साथ अपने जीवन का अंत करते है।
जीवन कैसे जीये इस पर बात फिर कभी, अभी तो बस ये की आप अपने जीवन को क्या जी रहे है ? और क्यों जी रहे है ?

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