गोधूली की इस बेला में
नहीं बीतती साँझ
व्योम मौन है
धरा चुप है
मन का खग भी ठहरा है
ऐसी है शिशिर की ये साँझ
गोधूली की इस बेला में
नहीं बीतती साँझ
मन रीता जैसे हो निशा
पर नयनों में है मनो उषा
नयनों के इस वीराने में
नहीं बीतती साँझ
सुन्दर रचना !
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा !
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