हिन्दू जीवन दर्शन सिर्फ एक बकवास है छात्रों के एक समूह ने आवाज को थोडा तीखा करते हुए कहा दुसरे समूह ने उतनी ही तीखी प्रतिक्रिया हिन्दू जीवन दर्शन के पक्ष में दि . मेरे शिक्षक जीवन में ऐसी कई बहस को मैंने सुना है और सुनकर आश्चर्य हुआ है कि हम हमारे जीवन दर्शन को ठीक से नहीं जानते जबकि दर्शन किसी भी राष्ट के संस्कार और संस्कृति को गड़ता है हमारे देश के साथ भी ऐसा ही है .
हम भारतीयों की चेतना शक्ति जहा से प्रभावित होती है वो हमारे वेद,उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत और हमारा लोक जीवन है . हिन्दू जीवन दर्शन के वैदिक दर्शन में कहा गया है कि मनुष्य पून्यरूप से इच्छाओ का बना हुआ है जैसी उसकी इच्छाएं होगी वैसी उसकी विचारशीलता होगी जैसी उसकी विचारशीलता व समझ होगी वैसा ही उसका कर्म होगा और जैसे उसके कर्म होंगे वैसा उसका भाग्य . इच्छाओ से छुटकारा प्राप्त कर मनुष्य अमर हो जाता है और मोक्ष प्राप्त करता है .
ये हिन्दू दर्शन का एकमात्र द्रष्टिकोण नहीं है गीता में कर्म का दर्शन है असल में ये नवीन हिन्दू दर्शन है जो कर्म का आधार बना कर पुनर्जन्म और इच्छाओ के बीच एक सयोजन करता है
हिन्दू दर्शन वर्तमान की अतीत के साथ निरन्तरता में विश्वास करता है ये एक पक्ष है और दुसरी तरफ वर्तमान को भविष्य में अभिव्यक्त करता है. हिन्दू दर्शन कुछ आधात्मिक विचारो में भी विश्वास रखता है जैसे 'पाप', 'पुण्य', धर्म आदि लेकिन भारतीय जीवन दर्शन सिर्फ संन्यास युक्त ही नहीं है उसमे अर्थ,धर्म,कर्म,मोक्ष भी हैं हमारे यहा का संन्यास व्यक्ति को समाज से न तो पलायनवादी बनाता है और न ही अकर्मण्य वो तो व्यक्ति के जीवन को बहुजन हिताय के सर्वोच्च शिखर तक उठा देता है .चाहे हमारा धर्म हो या दर्शन उसमे वसुधैव कुटुम्बकम रचे-बसे है तमाम तरह की साधना पद्धतिय ,अनुष्ठान और अवधारणाओ के होने पर भी हम सहिष्णु है और सर्वे भवतु सुखिन : की बात करते है .
निम्न पंक्तियों में भारतीय जीवन दर्शन की मूल आवधारणा छिपी है ........
कामिहि नारी पिआरी जिमी,लोभिहिं प्रिय जिमी दाम .
तिमी रघुनाथ निरंतर प्रिय लगांह मोहि राम
हम भारतीयों की चेतना शक्ति जहा से प्रभावित होती है वो हमारे वेद,उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत और हमारा लोक जीवन है . हिन्दू जीवन दर्शन के वैदिक दर्शन में कहा गया है कि मनुष्य पून्यरूप से इच्छाओ का बना हुआ है जैसी उसकी इच्छाएं होगी वैसी उसकी विचारशीलता होगी जैसी उसकी विचारशीलता व समझ होगी वैसा ही उसका कर्म होगा और जैसे उसके कर्म होंगे वैसा उसका भाग्य . इच्छाओ से छुटकारा प्राप्त कर मनुष्य अमर हो जाता है और मोक्ष प्राप्त करता है .
ये हिन्दू दर्शन का एकमात्र द्रष्टिकोण नहीं है गीता में कर्म का दर्शन है असल में ये नवीन हिन्दू दर्शन है जो कर्म का आधार बना कर पुनर्जन्म और इच्छाओ के बीच एक सयोजन करता है
हिन्दू दर्शन वर्तमान की अतीत के साथ निरन्तरता में विश्वास करता है ये एक पक्ष है और दुसरी तरफ वर्तमान को भविष्य में अभिव्यक्त करता है. हिन्दू दर्शन कुछ आधात्मिक विचारो में भी विश्वास रखता है जैसे 'पाप', 'पुण्य', धर्म आदि लेकिन भारतीय जीवन दर्शन सिर्फ संन्यास युक्त ही नहीं है उसमे अर्थ,धर्म,कर्म,मोक्ष भी हैं हमारे यहा का संन्यास व्यक्ति को समाज से न तो पलायनवादी बनाता है और न ही अकर्मण्य वो तो व्यक्ति के जीवन को बहुजन हिताय के सर्वोच्च शिखर तक उठा देता है .चाहे हमारा धर्म हो या दर्शन उसमे वसुधैव कुटुम्बकम रचे-बसे है तमाम तरह की साधना पद्धतिय ,अनुष्ठान और अवधारणाओ के होने पर भी हम सहिष्णु है और सर्वे भवतु सुखिन : की बात करते है .
निम्न पंक्तियों में भारतीय जीवन दर्शन की मूल आवधारणा छिपी है ........
कामिहि नारी पिआरी जिमी,लोभिहिं प्रिय जिमी दाम .
तिमी रघुनाथ निरंतर प्रिय लगांह मोहि राम
बहुत सही
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