Friday, March 18, 2011

तुम्ही में डूब जाती हूँ















श्रद्धा  और विश्वास तुम पर
 तुम्हारे गीत गाती हूँ
 मन जब भी घबराता है
 तुम्ही में डूब जाती हूँ


 कोई चीज चुभे मुझे जब
 ह्दय तुम्हे लगाती  हूँ
 जग की कृत्रिमता से ऊबकर 
 तुम्ही   में  डूब जाती हूँ 

तुम्हारा नाम लेने पर
 प्रिय मस्ती मुझ पर छाती है 
 पानी पर रश्मि जेसी
 वो मस्ती मुझे नचाती  है . 

रश्मि जेसी नाच नाच कर
 मै इठलाती जाती  हूँ 
 हर बार प्रिय मै
 तुम्ही में डूब जाती हूँ 

5 comments:

  1. रश्मि जेसी नाच नाच कर
    मै इठलाती जाती हूँ
    हर बार प्रिय मै
    तुम्ही में डूब जाती हूँ

    बेहतरीन और कविता और उसकी सबसे खास ये पंक्तियाँ.

    सादर

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  2. beautyfull expressions ma'am...though you have written it specially for someone,yet a feeling emerges from within as if it is a prayer...sufi jaisa kuchh..

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  3. ji haan priye ki masti mein hamein mat bhool jana.. bahut sunder kiran.

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  4. एक एक शब्द जैसे चाशनी में डुबोए हूँ ,प्रेम कविता को कैसे महान बनाता है वो साफ़ दिख रहा हैं |किरण के साथ साथ उनके पवन जी को शुभकामनायें

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