Monday, March 14, 2011

मेरी भावोक्ति








हो रहा था ज़िंदगी में जब अँधेरा
लग रहा था न होगा अब कभी सवेरा
तब उन्होंने मुझे एक नई पहचान दी
अपने प्यार से मुझमे नई जान दी

उनके प्यार ने रचनात्मकता सिखाई
मेरे अन्दर की कमी भी बताई
उस कमी को स्वयम दूर भी किया 
श्रद्धा प्यार को नया अर्थ दिया 

उनका प्यार ऐसा प्यार है संसार में
उमंग भरे जो मेरे हर विचार में
सृष्टि के नए अर्थ गढ़ता उनका प्यार है
जीवन को नयी दिशा देता उनका प्यार है

उस सृष्टि करता से उन्होंने मिलाया है
भक्ति की शक्ति की महिमा बताया है
अपने को समझो अपने को जानो
जिन्दगी सरल हो जायेगी मानो

 घृणा क्रोध लोभ छोड़ोगे जब ही 
 परमेश्वर से जाकर मिलोगे तब ही
 ऐसे शुभ विचार जिसके होते है संसार में
  मानव नहीं महामानव है आधार में






11 comments:

  1. घृणा क्रोध लोभ छोड़ोगे जब ही
    परमेश्वर से जाकर मिलोगे तब ही
    ऐसे शुभ विचार जिसके होते है संसार में
    मानव नहीं महामानव है आधार में


    -बिल्कुल सत्य विचार...

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  2. तुम पूरक हो मेरी प्रिये मुझ पर तेरा अधिकार है

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  3. सुन्दर कविता . महामानव की पहचान तो अब कर ही लूँगा . वैसे इस कविता में संदर्भित महा मानव को तो मै पहचान गया .

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  4. bahut hi khoobsurat bhav hai.....

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  5. बेहतरीन भाव लिये एक बहुत ही अच्छी कविता.

    सादर

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  6. समर्पण में छिपा अधिकार..

    बहुत सुन्दर...

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  7. sunder bhav ki sunder kavita.......

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  8. बहुत ही खूबसूरती से भावो को बहुत ही खुबसूरत शब्दों से आपने सजाया है....

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  9. घृणा क्रोध लोभ छोड़ोगे जब ही
    परमेश्वर से जाकर मिलोगे तब ही
    ऐसे शुभ विचार जिसके होते है संसार में
    मानव नहीं महामानव है आधार में

    ...बहुत सच कहा है...सार्थक भावों से ओतप्रोत सुन्दर रचना..

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  10. ..सार्थक भावों से ओतप्रोत सुन्दर रचना..

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  11. हुत ही खूबसूरती से भावो को बहुत ही खुबसूरत शब्दों से आपने सजाया है

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