लग रहा था न होगा अब कभी सवेरा
तब उन्होंने मुझे एक नई पहचान दी
अपने प्यार से मुझमे नई जान दी
उनके प्यार ने रचनात्मकता सिखाई
मेरे अन्दर की कमी भी बताई
उस कमी को स्वयम दूर भी किया
श्रद्धा प्यार को नया अर्थ दिया
उनका प्यार ऐसा प्यार है संसार में
उमंग भरे जो मेरे हर विचार में
सृष्टि के नए अर्थ गढ़ता उनका प्यार है
जीवन को नयी दिशा देता उनका प्यार है
उस सृष्टि करता से उन्होंने मिलाया है
भक्ति की शक्ति की महिमा बताया है
अपने को समझो अपने को जानो
जिन्दगी सरल हो जायेगी मानो
घृणा क्रोध लोभ छोड़ोगे जब ही
परमेश्वर से जाकर मिलोगे तब ही
ऐसे शुभ विचार जिसके होते है संसार में
मानव नहीं महामानव है आधार में
घृणा क्रोध लोभ छोड़ोगे जब ही
ReplyDeleteपरमेश्वर से जाकर मिलोगे तब ही
ऐसे शुभ विचार जिसके होते है संसार में
मानव नहीं महामानव है आधार में
-बिल्कुल सत्य विचार...
तुम पूरक हो मेरी प्रिये मुझ पर तेरा अधिकार है
ReplyDeleteसुन्दर कविता . महामानव की पहचान तो अब कर ही लूँगा . वैसे इस कविता में संदर्भित महा मानव को तो मै पहचान गया .
ReplyDeletebahut hi khoobsurat bhav hai.....
ReplyDeleteबेहतरीन भाव लिये एक बहुत ही अच्छी कविता.
ReplyDeleteसादर
समर्पण में छिपा अधिकार..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
sunder bhav ki sunder kavita.......
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरती से भावो को बहुत ही खुबसूरत शब्दों से आपने सजाया है....
ReplyDeleteघृणा क्रोध लोभ छोड़ोगे जब ही
ReplyDeleteपरमेश्वर से जाकर मिलोगे तब ही
ऐसे शुभ विचार जिसके होते है संसार में
मानव नहीं महामानव है आधार में
...बहुत सच कहा है...सार्थक भावों से ओतप्रोत सुन्दर रचना..
..सार्थक भावों से ओतप्रोत सुन्दर रचना..
ReplyDeleteहुत ही खूबसूरती से भावो को बहुत ही खुबसूरत शब्दों से आपने सजाया है
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