Sunday, March 13, 2011

भोर का तारा

भोर के तारे से मैंने कहा
 तेरी मेरी एक ही दशा
 तू अकेला ही आता जाता
 ये तो नहीं है कुछ अच्छा


 हँसकर के बोला तारा
 एक गाँधी एक ही ईशा 
जिन्होन दुनिया को दी है दिशा 
उनसे ही सजती है धरा   
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4 comments:

  1. गुरुदेव टैगोर की एकला चलो रे का का ख्याल आया . भोर के तारे के बहाने गहन बात कह दी .

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  2. रुई के फोहे से कविता

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