Friday, June 17, 2022

आषाढ़ की आस

 आषाढ़ बनकर ही अधर के पास आना चाहता हूं

मैं तुम्हारे प्राणों का उच्छ्वास पाना चाहता हूं।💚

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आषाढ़ तो धरती और अंबर का मिलन दिवस तो  आइए हम इस मिलन दिवस के गवाह बने, फागुन के लड़कपन और सावन के यौवन में डूबे आषाढ़ को धरती के ताप को हर लेने दीजिए। गर्मी की कसक को अगर कम करना है तो आषाढ़ को ठसक के साथ आने दीजिए इसलिए जरूरी है कि पर्यावरण को लेकर हम सब बेहद जागरूक हो जाएं।

तो ज्येष्ठ की रोहिणी की तप्तता को मृग की बौछार संतृप्त करें और प्रकृति हरीतिमा के गीत गाये, धारा- अंबर एक हो तभी तो किसी दूर गांव की हरियाली पर आषाढ़ की बून्दे देख कोई किशोरी अपनी सखी से कहेगी-

कारी सियाही बदरी, झक झालर आयो मेह

बरसे आषाढ़ी मेहरा,कोई कोई उत बालम परदेश।

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4 comments:

  1. शानदार संदेश देती पोस्ट । पर्यावरण के प्रति जागरूक होना ही चाहिए ।।

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२०-०६-२०२२ ) को
    'पिता सबल आधार'(चर्चा अंक -४४६६)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  3. बहुत सुंदर रचना

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  4. कारी सियाही बदरी, झक झालर आयो मेह
    बरसे आषाढ़ी मेहरा,कोई कोई उत बालम परदेश।

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