आषाढ़ बनकर ही अधर के पास आना चाहता हूं
मैं तुम्हारे प्राणों का उच्छ्वास पाना चाहता हूं।💚
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आषाढ़ तो धरती और अंबर का मिलन दिवस तो आइए हम इस मिलन दिवस के गवाह बने, फागुन के लड़कपन और सावन के यौवन में डूबे आषाढ़ को धरती के ताप को हर लेने दीजिए। गर्मी की कसक को अगर कम करना है तो आषाढ़ को ठसक के साथ आने दीजिए इसलिए जरूरी है कि पर्यावरण को लेकर हम सब बेहद जागरूक हो जाएं।
तो ज्येष्ठ की रोहिणी की तप्तता को मृग की बौछार संतृप्त करें और प्रकृति हरीतिमा के गीत गाये, धारा- अंबर एक हो तभी तो किसी दूर गांव की हरियाली पर आषाढ़ की बून्दे देख कोई किशोरी अपनी सखी से कहेगी-
कारी सियाही बदरी, झक झालर आयो मेह
बरसे आषाढ़ी मेहरा,कोई कोई उत बालम परदेश।
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शानदार संदेश देती पोस्ट । पर्यावरण के प्रति जागरूक होना ही चाहिए ।।
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२०-०६-२०२२ ) को
'पिता सबल आधार'(चर्चा अंक -४४६६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteकारी सियाही बदरी, झक झालर आयो मेह
ReplyDeleteबरसे आषाढ़ी मेहरा,कोई कोई उत बालम परदेश।