स्वतंत्रता का आलोक
हर तरफ फैला ही था कि
अपनी- अपनी पताका के साथ
अपने -अपने उदघोष हुए
द्वार पर ही स्वतंत्रता ठिठक गई
प्रकाश की किरणें धीरे- धीरे काट दी गई
स्वतंत्रता का सूर्य खंडित हो
क्षत विक्षत हो गया
कुछ उत्साही जाग्रत हुए
अब सत्ता के शिखरों पर
अवतार जन्म लेने लगे
अवसरवाद के पालने में झूलते वो
अँधेरी सदियों के सपने देखने लगे
सारे आदर्शो को सुरिक्षित कर
अवसरवाद को गले लगाया गया
एक मूर्च्छित युग की शुरुआत हुई
और होती ही चली गई
मूर्छा का संरक्षण कर
बुद्ध के मौन को नष्ट कर
स्वतंत्रता का अनुष्ठान आरम्भ किया गया।
किरण कोई व्यक्तिवाचक संज्ञा न होकर उन तमाम व्यक्तियों के रोजमर्रा की जद्दोजहद का एक समुच्चय है जिनमे हर समय जीवन सरिता अपनी पूरी ताकत के साथ बहती है। किरण की दुनिया में उन सभी पहलुओं को समेट कर पाठको के समक्ष रखने का प्रयास किया गया है जिससे उनका रोज का सरोकार है। क्योंकि 'किरण' भी उनमे से एक है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
मन का अंधकार ले साहित्य का अंधकार दूर करने निकले अपने- अपने विचार को सर्वोत्तम बताते एक मीडिया मंच पर लड़ते धाराओं के साहित्यकार आत्मचेतना औ...
-
प्रत्यक्ष अस्तित्व की आंतरिक गतिविधियों का परिणाम यह मेरा पहला काव्य- संग्रह है। ब्रह्मांड का घोषणा- पत्र एक संकेत है ऋत को जानने का जिसके ...
-
हर काबिल हर कातिल तक अपनी महक अपना हरापन फैलाते वसंत स्वागत है तुम्हारा.... मधुमास लिखी धरती पर देख रही हूँ एक कवि बो रहा है सपनों के बीज...
-
प्रत्यक्ष अस्तित्व की आंतरिक गतिविधियों को समझने के प्रयास में अंतकरण में अनेक अनुभव आते हैं । समझने के प्रयास में अनेक कविताएं स्वतः स्फूर...
-
मैंने अलसाई सी आंखे खोली है.लेटे-लेटे खिड़की से दूर पहाड़ो को देखा पेड़ो और पहाडियों की श्रंखलाओ के पीछे सूर्य निकलने लगा है, हलकी - हलकी...
सारे आदर्शो को सुरिक्षित कर
ReplyDeleteअवसरवाद को गले लगाया गया
एक मूर्च्छित युग की शुरुआत हुई
और होती ही चली गई
बहुत सुन्दर व् सार्थक भी |
प्रभावी लेखन ।
ReplyDelete