Wednesday, October 30, 2019

यात्रा


सभ्रम के साथ हम साथ यात्रा पर निकले राही है

कहीं से गुजरना और गंतव्य तक पहुंचना
दोनों यात्राएं अलग-अलग होती है
यात्रा में दूरी की जांच-पड़ताल नहीं की जाती
बस यात्रा की लहरों के
के साथ कदमताल मिलाया जाता है

जीवन के खुरदुराहट के भीतर
मन की अँगुलियों ने
यात्रा सुखद हो
इसलिए कितने ही रास्ते बनाएं
सारे संताप उलीचने की कोशिश की
और यात्रा जारी रखी

न जाने कब से यात्रा चल रही है
हर कोई यात्री है अपने सपनों के साथ
वो कहाँ भस्माभूत होते है सिर्फ चेहरा बदलते है
वक्त के साथ उनकी यात्रा भी चलती रहती है

सूर्य यात्रा के आधे रस्ते पर
अँधियारा दूर करता आगे बढ़ रहा है,
अंधियारा ,सितारों को रास्ता बताने के लिए यात्रा पर है

इश्क की बिसात पर रांझे कश्ती खे रहे है
रात आईने में बदलती है
पर बारिश सबके लिए नहीं होती

चाँद हर यात्रा में बताता है इश्क की हक़ीक़तें
तब देह की यात्रा
पाक हो पहुँचती है आत्मा तक

सुदूर सितारों की भट्ठी से
धरती पर चली आई धूल की यात्रा
अज्ञात में सिमटी है

मिट्टी की यात्रा उस बूँद के इंतज़ार में है जो जीवन को आगे बढ़ाएं।
पुरुष की देह से गुज़री एक बिंदु की यात्रा
स्त्री देह तक आकार अगर ख़त्म हो जाती तो
यात्रा के महत्त्व को कैसे समझते हम

कोई भी यात्रा यूं ही नहीं होती
प्रशांत नयन से भाद्रपद के चंद्रमा तक
साँस से आस तक।
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3 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 31 अक्टूबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत सार्थक चिंतन देता आध्यात्म सा सृजन।
    सुंदर।

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