Wednesday, November 27, 2019

गांधी कहाँ हैं ?

गांधी के  व्यक्तित्व को  लेखों पुस्तकों नही समेटा जा सकता है । गांधी का जीवन तो वह  महान गाथा  है जिसके द्वारा  शब्दों में ब्रह्म की शक्ति को समाहित कर उस गूढ़ मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया से लोगों का परिचय कराया और  दिखाया गया  कि विचार, वाणी, और कर्म से जो चाहे वो किया जा सकता है  । हालांकि जो वह  नहीं कर सकते थे उस के लिए उन्होंने कभी किसी से कहा भी नहीं । अपने आचरण से मण्डित  शब्दों को उन्होंने मन्त्र से भी ज्यादा प्रभावशाली बना डाला था यही कारण था कि  उनके एक -एक कार्य शैली को लोगो ने जिया था। उनका जीवन सदैव  आत्मा के प्रकाश से  प्रकाशित रहा और उस प्रकाश में ही उन्होंने अपनी जीवन यात्रा तय की। 
हम सब जिस गांधी को जानते है वह वो व्यक्ति हैं  जिसे समय ने  हिन्दुस्तान के लिए चुना और फिर गढ़ा उस भारतीय सभ्यता और संस्कृति से जो राम से चलती हुई बुद्ध   तक आई थी। 
गांधी ने करोड़ो देशवासियो की संभावनाओं  को गढ़ा और भर दिये  उनकी आंखो में सपने आजाद भारत के ।  एक गुलाम देश का फेका गया चोट खाया स्वाभिमान जो एक  सूने प्लेटफार्म में अपनी संस्कृती और सभ्यता समेटता हुआ भारतवर्ष के भविष्य को एक नूतन आकार  देने के संकल्प के साथ उठ खड़ा हुआ। गांधी ने अपने अपमान को देश और देशवासियों का सामूहिक अपमान को स्वतन्त्रता में बदल डाला। बुद्ध की करुणा को ह्रदय में धारण करके गांधी ने पीड़ित जनमानस के ह्रदय में धंसा  तीर निकला था और दुखी संतृप्त देश को आशा की न सिर्फ किरण दिखलाई थी बल्कि उन्होंने उन्हें उनके अस्तित्व से रूबरू भी कराया था। 
यह प्रश्न ही काफी है कि हमें गांधी की जरुरत है तो क्या गांधी के विचारो की प्रासंगिकता पर विचार करना चाहिए ? पर हम तो विकास के रास्ते पर चल पढ़े है फिर गांधी के विचारो का आत्ममंथन क्यों करे? पर  उन समस्याओं का क्या जो विकास के रास्ते में मजबूती से गढ़ी है ये समस्याएं है- आर्थिक असमानता एवं पर्यावरणीय परिस्थितिकी असंतुलन।क्या  ये समस्याएं  आर्थिक वृद्धि की सफलता का या बड़े पैमाने पर अपनाई गई  प्रौद्योगिकी को अपनाने का परिणाम है?  ऐसे ढेरों प्रश्नों के उत्तर गांधी में ही ढूंढा  है  । आज के समय गांधी की प्रासंगिकता क्या  है यह जानने से पूर्व यह जानना आवश्यक है कि गाँधी के व्यक्तित्व एवं विचार दर्शन का मूल आधार क्या है?  
गांधी राजनीतिज्ञ हैं, दार्शनिक हैं, सुधारक हैं, आचारशास्त्री हैं, अर्थशास्त्री हैं, क्रान्तिकारी हैं। समग्र दृष्टि से गाँधी के व्यक्तित्व में इन सबका सम्मिश्रण है मगर उनके व्यक्तित्व एवं विचार दर्शन का मूल आधार धार्मिकता है। बक़ौल  गांधी- मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है. सत्य मेरा भगवान है। अहिंसा उसे साकार करने का साधन है। एक धर्म जो व्यावहारिक मामलो पर ध्यान नहीं देता और उन्हें हल करने में कोई मदद नहीं करता धर्म नहीं है।  
स्वामित्व और प्रबंधन का केन्द्रीयकरण श्रम का अवसर कम होना एवं पर्यावरण का प्रदूषण और प्राकृतिक  संसाधनों के तेजी से दोहन के कारण  वो समाप्ति की तरफ है । इसके फलस्वरूप  परिस्थितिक  असंतुलन का खतरा तेजी से बढ रहा है ऐसे समय मे हमें गांधी के व्यवहारिक धर्म को अपनाने की आवश्यकता है। आज अगर महात्मा गांधी होते तो इसके समाधान स्वरुप 'स्वदेशी' प्रौद्यौगिकी’ का सुझाव देते जिसका  स्थानीय संसाधनों से ही  स्थानीय आवश्यकता की पूर्ति करना है । उत्पादन स्थानीय जरुरतो के लिए होने के कारण उसके माल भाड़े,विक्रय और उसके प्रबन्धन आदि की लागत में कमी होती। चूँकि  लाभ केन्द्रिकत नहीं होता या सीमित होता तो आर्थिक असमानता में निरंतर कमी होती जाती। 
गांधी के विचारो से प्रेरित अमर्त्य सेन विकास का तात्पर्य मनुष्य की स्वतंत्रता को मानते है। यह स्वतंत्रता केवल तभी पाई जा सकती है,यदि हम उसे केवल 'अंतिम मंजिल न' मान कर उसकी प्रक्रिया में ही उसे समाहित कर सके।  आर्थिक केन्द्रीयकरण  की जरूरतें राजनीतिक, केन्द्रीयकरण के बिना पूरी नहीं की जा सकती है।गांधी ने अपने जीवन के साथ बहुतेरे प्रयोग किये वो अपनी आत्मकथा में लिखते है मेरी आत्मकथा के हर पन्ने में मेरे प्रयोग झलके तो में इस आत्मकथा को निर्दोष मानूंगा। क्या हमारे अर्थशास्त्री  एवं राजनेता प्रयोग नहीं कर सकते?  मानव -मानव में भेद धर्म -धर्म में भेद राग- द्वेष इन सबको मिटाने का प्रयोग हमें करना होगा ताकि राजनेता लोकतान्त्रिक आकाँक्षाओं व अधिकारों को पोषित करना छोड़ दें और एक हिंसक सोच को अहिंसक रूप देने का प्रयोग शुरू हो। 
हमारे देश को प्रशासन की बुनियाद की तरफ देखना ही होगा जनता के निचले तबके की भागेदारी व सरकारी नियंत्रण से मुक्त स्वराज के लिए गांधीवाद को अपनाना ही होगा। एक राष्ट्र की बुनियादी प्रगति के लिए ये सोच बहुत ही जरुरी है इससे विकास की गति बहुपक्षीय  होगी जो आर्थिक व सामाजिक आसमनाता की खाई को भर देगी।मार्टिन सुआरेज ने अपनी पुस्तक ' पोप गोज टू अलास्का 'में लिखा है , अगर जीसस या बुद्ध होने की राह चाहिए तो गांधी को समझ लीजिये । अगर इंसानियत की राह  चाहिए तो गांधी को सिर्फ समझना ही नहीं होगा बल्कि उनके वाद को  लोकतंत्र में स्थापित भी करना होगा। आज के समाज की मनोदशा को दिशा देने के लिए गांधी को फिर से समझना होगा ऐसा न हो कि हम देर कर दे और फिर से बर्बर युग में प्रवेश कर जाएं। 
स्वीडिश अर्थशास्त्री गुर्नार मिर्डल  का कहना है,  जिस सामाजिक और आर्थिक क्रांति का स्वप्न गांधी ने देखा उसमे गहन दूरदर्शिता थी। आज समानाताओं की बड़ी वजह दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली है । ऐसी प्रणाली जो श्रमिक और शिक्षित के बीच की दूरियों को पाट नहीं पाई ।ये कैसी शिक्षा है जो डिग्री धारक को श्रमिक बना देती है और श्रमिक को श्रम का मूल्य  नहीं दे पाती है ।ऐसी स्थिति में गांधी तकनीकी  शिक्षा का रास्ता सुझाते हैं जिसमे शिक्षा का मापदंड डिग्री नहीं ज्ञान हो ताकि व्यक्ति अपने कार्य से अर्थ अर्जित आसानी से कर सके। 
भारत ने सदा ही अपना सर्वोतम दुनिया को दिया है। यह वह धरती है, जहां बुद्ध ने जन्म लिया था। वही बुद्ध, जिन्हें मानने वाले करोड़ो देश के बाहर है तो मुठ्ठी भर देश के अन्दर है । कालांतर में यही मिटटी दुनिया को गांधी जैसा द्रष्टा सौंपती है लेकिन वह  भी कही गुम हो जाता है। गांधी कहां है?  क्यों हमारे अन्दर या हमारे सिद्धांतो में दिखाई नहीं देते? 
भारत देश में जो गांधीवाद है क्या वह  सच में उनकी राह  पर चल रहा  है ? कहीं गांधी खोया हुआ महात्मा तो नहीं ।क्या इस फरिश्ते की चमक अपनी ही धरती पर मिट रही है? सच है गांधी किताबो में गुम है जो निकल आते है कभी -कभी विशेष दिनों में । यह कैसी बिडम्बना है हम गांधी को अपनाना चाहते है उन्हें समझना चाहते है पर कहीं न कहीं भाग रहे है खुद से समस्याओं से । हमें खुद को जांचना होगा ।आने वाली पीढ़ी के लिए उन्हें वह  सपने देने होंगे जिनका सपना बापू ने देखा था । क्या जवाब हम बच्चो को देंगे जब वो कहेंगे कि बापू जो अहिंसा का पाठ आप को पढ़ा गए थे  तब भी इतना हिंसक समाज क्यों है? गांधी को वाद, विचार, सिद्धांत से मत जोडिये गांधी को इंसानियत से जोडिये क्योंकि यहीं  से शुरुआत होगी बेहतर जीवन की, बेहतरीन समाज की.....। 

3 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (29-11-2019 ) को "छत्रप आये पास" (चर्चा अंक 3534) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिये जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    -अनीता लागुरी 'अनु'

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  2. सारगर्भित विचारणीय लेख.

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  3. सारगर्भित और उत्कृष्ट लेख ।

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