Tuesday, December 5, 2017

प्याली में तुफान

मानव समाज जब ताम्रयुग में पहुंचता है
संस्कृति जब ग्रामीण पृष्ठभूमि पर खडी
चरखे से बनाती है सभ्यताओं के विकास के धागे
जिन का छोर पकड़
प्राचीन जगत की नदीघाटी सभ्यताएं
नगरों की स्थापना के लिए
करती है प्रसव लिपियों का
तब ग्राम और नगर के बीच
एक स्वर धीरे धीरे पनपता है
जो व्यंजन में बदल
बॉस्टन हार्बर में
करता है विरोध अंग्रेज सरकार का
देता है साथ उपनिवेशवासियों  का
सारी दुनिया के गरीब, मजदूर, बेसहारा
का सहारा बन
पहुंच जाता है विदर्भ के गांवों में
दुमका की खदानों में
दंडकारणय  के जंगलों में
वादी-ए-कश्मीर की संगत में
बन जाता है सबका प्रिय अक्षर चाय
और क्यों न हो
शोंनोग जैसे ईश्वरीय किसान के प्याले से
जनता का जनता के लिए बन
राजा को रंक, रंक को राजा बना
उठा देता है प्याली में तुफान।

☕☕☕
चाय की चर्चा 😊

7 comments:

  1. पढ कर अच्छा लगा

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  2. आदरणीय किरण जी --अपने आप में नयी तरह की काव्य रचना पढ़कर अच्छा लगा | सचमुच चाय राजनीतिक और सामाजिक क्रांति की क्षमता रखती है |आपको शब्द नगरी पर भी पढ़ चुकी हूँ | सादर शुभकामना |

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  3. आभार रेणू जी। आप आए अच्छा लगा

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