मानव समाज जब ताम्रयुग में पहुंचता है
संस्कृति जब ग्रामीण पृष्ठभूमि पर खडी
चरखे से बनाती है सभ्यताओं के विकास के धागे
जिन का छोर पकड़
प्राचीन जगत की नदीघाटी सभ्यताएं
नगरों की स्थापना के लिए
करती है प्रसव लिपियों का
तब ग्राम और नगर के बीच
एक स्वर धीरे धीरे पनपता है
जो व्यंजन में बदल
बॉस्टन हार्बर में
करता है विरोध अंग्रेज सरकार का
देता है साथ उपनिवेशवासियों का
सारी दुनिया के गरीब, मजदूर, बेसहारा
का सहारा बन
पहुंच जाता है विदर्भ के गांवों में
दुमका की खदानों में
दंडकारणय के जंगलों में
वादी-ए-कश्मीर की संगत में
बन जाता है सबका प्रिय अक्षर चाय
और क्यों न हो
शोंनोग जैसे ईश्वरीय किसान के प्याले से
जनता का जनता के लिए बन
राजा को रंक, रंक को राजा बना
उठा देता है प्याली में तुफान।
☕☕☕
चाय की चर्चा 😊
संस्कृति जब ग्रामीण पृष्ठभूमि पर खडी
चरखे से बनाती है सभ्यताओं के विकास के धागे
जिन का छोर पकड़
प्राचीन जगत की नदीघाटी सभ्यताएं
नगरों की स्थापना के लिए
करती है प्रसव लिपियों का
तब ग्राम और नगर के बीच
एक स्वर धीरे धीरे पनपता है
जो व्यंजन में बदल
बॉस्टन हार्बर में
करता है विरोध अंग्रेज सरकार का
देता है साथ उपनिवेशवासियों का
सारी दुनिया के गरीब, मजदूर, बेसहारा
का सहारा बन
पहुंच जाता है विदर्भ के गांवों में
दुमका की खदानों में
दंडकारणय के जंगलों में
वादी-ए-कश्मीर की संगत में
बन जाता है सबका प्रिय अक्षर चाय
और क्यों न हो
शोंनोग जैसे ईश्वरीय किसान के प्याले से
जनता का जनता के लिए बन
राजा को रंक, रंक को राजा बना
उठा देता है प्याली में तुफान।
☕☕☕
चाय की चर्चा 😊
bahut sunder Rachna
ReplyDeleteआभार😊💐
Deleteपढ कर अच्छा लगा
ReplyDelete😊💐
Deleteआदरणीय किरण जी --अपने आप में नयी तरह की काव्य रचना पढ़कर अच्छा लगा | सचमुच चाय राजनीतिक और सामाजिक क्रांति की क्षमता रखती है |आपको शब्द नगरी पर भी पढ़ चुकी हूँ | सादर शुभकामना |
ReplyDeleteआभार रेणू जी। आप आए अच्छा लगा
ReplyDeleteआभार😊💐
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