Saturday, September 5, 2015

सारयात अश्वान इति सारधि :



नृत करती आकाशगंगाए
और ग्रह नक्षत्र तारे
नाद करता आकाश
इनके बीच जो काला घना अंधकार है
वो तुम हो युग्म कृष्ण
तुम्ही तो हो
एक अनाहत की गूंज
तुम्हारी वो बंसी
गुरु है हमारी
अरे ओं बंसी तुम गति हो और आवृति भी
जो जोडती हो हम मानव को
एक लय और ताल में
अरे पारिजात
सारयात अश्वान इति सारधि :
हमारे जीवन संचालक
तुम ही हो हमारे प्रारंभ और अंत
अरे ओं युग्म
हमें काल के प्रवाह से निकाल
उर्ध्वगामी बनाओ

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