पिता को समर्पित ----------
बाबा हम कहाँ समेट पाएंगे तुम्हें शब्दों में
तुम तो अनुभूति थे खोए हुए पलो की
दस्तक थे उस अंतर्मन की
जब जिन्दगी रुकी रुकी थकी थकी लगती थी
तब धीरे से रातो की उन बातो में
बचपन के किस्से सुनाकर
और हमें हँसा कर
ले जाते थे आशाओं के समंदर में
हमारे होने का एहसास करते तुम
बाबा आज तुम नहीं
तब उन तमाम किस्सों में खोज रही हूँ
उन बीते पलो को
और जी रही हूँ बचपन को
बाबा आप हमेशा विचार बन बहते रहना अंतस में
तभी तो में मौन बन ठहर पाउंगी
बहुत प्यारी सी रचना किरण ..............
ReplyDeleteThanks Mukesh jee
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