तुम्हारे निकलने के
पल पल का एहसास है,
लेकिन अभी बचे है
मेरे अन्दर कुछ विचार,
और क्रियांवित करने का आधार
कुछ घटनाये जो अभी होना बाकी है,
क्योकि जिन्दगी अभी बाकी है.
तुम सुन रहे हो मित्र!
कुछ एहसास हुआ या नही
कुछ एहसास हुआ या नही
एक बार फिर देना मेरा साथ,
बस अब मेरा लक्ष्य है बहुत पास
प्रिय सखा तुम तो समय हो
बीत जाओगे किसी तरह,
लेकिन मै बीती बात कैसे हो जाऊ
बिना आदि से मिले
अंत कैसे हो जाऊ?
कैसे ज़िन्दगी के पार चली जाऊ?
इसलिये अभी उस चित्र को पूरा करुंगी
जिसके किनारो मे अभी
रंग भरना बाकी है.
समय के संग दोस्ती शायद हमे उसके साथ कदम कदम साथ चलने के लिए उत्प्रेरित करेगा . बहुत सुन्दर शब्दों में भावनाओं को पिरोया है .
ReplyDeleteधन्यवाद आशीष भैया...
Deleteआभार कुलदीप जी....
ReplyDeleteये जिजिविषा बनी रहे।
ReplyDeletebani rhge Vandana ji
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (03-05-2013) के "चमकती थी ये आँखें" (चर्चा मंच-1233) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
aapka aabhar Shashtri ji
Deleteबहुत आशान्वित कर गई कविता !
ReplyDeleteapko pasand ayi rachna sarthak huyi
Deleteकुछ घटनाये जो अभी होना बाकी है,
ReplyDeleteक्योकि जिन्दगी अभी बाकी है
जोरदार
thanks
ReplyDeletesamay ke saath chalna hai :)
ReplyDelete