Sunday, April 3, 2011

बेटियों को अपने घरों में आने दीजिये

हर बार की जनगणना में शुन्य से छह साल के शिशुओं का लिंग  अनुपात ये बताता  है की हमने कन्या भ्रूण  हत्या रोकने के लिए प्रसव  पूर्व निदान तकनीक अधिनियम (पी .एन .डी.टी. एक्ट) को सख्ती से लागु किया उसके  बावजूद  हम बेटियोको बचा नहीं पाए .सारे   उपाय   कानून बेअसर साबित हुए . आंकड़े बताते  है की देश में प्रति एक हजार लडको पर लडकियों की संख्या सिर्फ ९१४ है.जबकि दस साल पूर्व यहा ९२७ थी .२०११की जनगणना के आंकड़ो के अनुसार पिछली जनगणना की तुलना में शून्य  से छह साल के बच्चो की संख्या घटी  है लेकिन लडको की संख्या बड़ी है . ये आजादी के बाद से सर्वाधिक गिरावट है जो हमारे लिए शर्म की बात है. पंजाब ,हरियाणा में पहले से ही लडकियों की संख्या कम है . एस बार की जनगणना में प्रति हजार पुरुषो पर महिलाये दमन व दीव में ,दादर ओर नगर हवेली में भी लगातार अनुपात कम होता जा रहा है .प्रति हजार पुरषों पर ७७५ महिलाये है .एक दशक पहले ये आंकड़े १००० पुरषों पर ९३३ था जबकि २०११ में १००० पुरषों पर मात्र ९४० महिलाये है . एस बार उतर - प्रदेश में महिलाओं की तादाद ठीक है . २००१ में १००० पुरषों पर ८९६ महिलाये थी आज २०११ में १००० पुरषों पर ९०८ महिलाये है . महिला एवं पुरुष बराबर अनुपात के लिए हमे पी. एन. डी. टी . एक्ट के साथ -साथ लोगो की सोच को बदलना पड़ेगा उन्हें ये समझाना होगा  की एक महिला अधिक जागरूक अधिक कर्मशील एवं अधिक जिम्मेदार होती है वो किसी भी हल में समाज से   अपना तारतम्य बिठा कर घर -परिवार की जिम्मेदारी का  निर्वहन कती है . जरूरत है समाज में रहने वाले सभी उन लोगो को अपनी सोच बदलने की जो लडके को अपना पालनहार समझते है और  लडकी को बोझ आएये नए सिरे से समाज की एस समस्या लिंग अनुपात पर विचार करे .स्त्री ओर पुरुष इश्वर ने इसलिए बनाये है की वे सृष्टि  को चला सके फिर हम क्यों होते है ये तय करने वाले की दोनो में कौन श्रेष्ठ है है और दूसरे का आना ही इस  धरती पर बंद करा दे अगर हम ऐसा   करते है तो खालीपन ,कुछ छुट जाने का एहसास हमेशा इस  धरती पर कायम रहेगा . बेटियों  को अपने घरों में आने दीजिये यकीन मानिये आपके घर ,आपकी ,जिन्दगी खुबसूरत ,व्यवस्थित और  सम्पूर्ण  बन जाएगी .                       
डॉ पवन कुमार मिश्र की ये दो पंक्तियाँ सारे समाज की सोच हो
"कई जनम के सत्कर्मो का जब मुझको वरदान मिला
  परमेश्वर से तब मैंने सीता सी बेटी मांग लिया"


7 comments:

  1. पहली बार आना हुआ ....प्रभावशाली लेख ..कविताएँ..और इस लेख ने तो बहुत कुछ सोचने पर विवश कर दिया...

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  2. सार्थक आलेख.... विचारणीय मुद्दा...
    समाज को इस विषय पर और अधिक जागरूक होना होगा...
    सादर आभार...

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  3. बहुत सार्थक आह्वान किया है आपने.


    सादर

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  4. "कई जनम के सत्कर्मो का जब मुझको वरदान मिला
    परमेश्वर से तब मैंने सीता सी बेटी मांग लिया"


    काश लोंग बेटियों को अपने सत्कर्मों का फल मानें ..पवन कुमार मिश्र जी की यह पंक्तियाँ मन को सुकूँ देती हुई प्रतीत हो रही हैं ... गंभीर और सार्थक मुद्दा उठाया है ..

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  5. सार्थक आलेख्।

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  6. बहुत सार्थक पोस्ट. इसी विषय को आगे बढाते हुए मैं अगले सप्ताह नयी पोस्ट डालने वाली हुँ, क्र्प्या जरूर आयिएगा.

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  7. सारगर्भित लेख...नारी के बिना सृष्टि की कल्पना ही असंभव ..नैसर्गिक कोमलता , त्याग और समर्पण के बिना संसार का क्या स्वरुप होगा ???
    एक कवित की कुछ पंक्तियाँ अपने डा० मित्र के क्लिनिक की वाल पर देखी ...
    उगाए जाते हैं बेटे उग आती हैं बेटियाँ
    रुलाते हैं बेटे हंसाती हैं बेटियाँ
    धकेले जाते हैं बेटे
    एवेरेस्ट पर चढ जाती हैं बेटियाँ....
    .........................
    गंभीर चिंतनीय विषय की प्रभावशाली प्रस्तुति ...

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