आधी रात को तुम
थके अनमने से
लौटते हो घर को
कहीं कोई आँखे
राह पर तुम्हारी टिकी है
तुम्हारे एक एक पग के साथ चलती
तुम्हारे रस्ते को बुहारती
तुम्हें निहारती,
दूर कहीं वंशी की धुन
भंग कर देती है तुम्हारी तंद्रा
और तुम निकल आते हो
अपनी रोज रोज की जद्दोजहद से
देखते हो बुहारे रास्ते को
सोचते हो निहारती आँखों को
फिर भर लेते हो
वंशी के सातो सुर
ह्र्दय में अपने
और बन जाते हो
मशीन से फिर आदमी
थके अनमने से
लौटते हो घर को
कहीं कोई आँखे
राह पर तुम्हारी टिकी है
तुम्हारे एक एक पग के साथ चलती
तुम्हारे रस्ते को बुहारती
तुम्हें निहारती,
दूर कहीं वंशी की धुन
भंग कर देती है तुम्हारी तंद्रा
और तुम निकल आते हो
अपनी रोज रोज की जद्दोजहद से
देखते हो बुहारे रास्ते को
सोचते हो निहारती आँखों को
फिर भर लेते हो
वंशी के सातो सुर
ह्र्दय में अपने
और बन जाते हो
मशीन से फिर आदमी
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, युवाओं की धार को मिले विचारों की सान - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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