Monday, March 30, 2020

ठहराव

और एक दिन जब
मनुष्य ने ईश्वर को फड़
पर बैठने को कहा
ईश्वर ठिठका
मनुष्य की बिछाई बिसात देख,

पहली चाल मनुष्य ने चली
विकास
सारे अर्थहीन, खतरनाक मुद्दे
उठ खड़े हुए

दूसरी चाल
विज्ञान
ह्रदय हीन हुए मनुष्य

ईश्वर हँसा
अब आखिरी चाल उसकी थी

उसने पासे फेंके
दौड़ते मनुष्यों के पैरों में उसके पासे थे

अब ईश्वर के सामने मनुष्य था
और मनुष्य के सामने उसकी छाया

यह देख
पृथ्वी फिर से उठ खड़ी हुई।

6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 31 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आदरणीया/आदरणीय आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२ हेतु नामित की गयी है। )

    'बुधवार' ०१ अप्रैल २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"

    https://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/04/blog-post.html

    https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।


    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

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  3. वाह!!!
    क्या बात...
    बहुत लाजवाब।

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  4. शुक्रिया सुधाजी

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  5. आदरणीय एकलव्य जी आप से कॉन्टेक्ट नही हो पा रहा कृपया लिंक दीजिए

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    1. आदरणीया किरण जी प्रणाम, अधिक जानकारी हेतु आप हमें यहाँ ईमेल करें ( dhruvsinghvns@gmail.com ) सादर 'एकलव्य'

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