कुछ ठेके पर उठी कविताएं
अपने आप पर रश्क़ कर सकती है उनके मालिक कुछ ख़ास किस्म के होते है। दुनिया उन्हें सलाम करती है।
वैसे सजदा करते उनकी भी उम्र बीत रही है।
कुछ इतनी खुशकिस्मत नहीं
वो फुटपाथ पर ही जन्म लेकर वही मर जाती है हालाँकि मुझे ख़ुशी है कि वो उनकी तरह नहीं जिनकी रूह तक बजबजा रही है ।
ऐसी कविताएं अक्सर नज़र आ जाती है जो प्रेम को याद करती है बार-बार और फिर आहे भरती है हालाँकि प्रेम को फ़ना हुए एक युग बीत गया
कुछ कविताएं ऐसी जादू की टोपी पहनातीे है बस एक हाथ हिलाया और तमाम नामजद पुरस्कार उनकी जादू के झोली में।
इंसानी हांथों में बिछी दरारों की तरह कुछ कविताएं हर उस दरार में घुस झांकती है जिसमे वर्षो से थकी रूह सांस लेना भी भूलती जा रही है।
नतीजा दरारों में ही दम तोड़ती है
कुछ तो अजीब अहमक (लोग उन्हें ऐसा ही कहते है) किस्म की कविताएं है कभी -कभी अपनी धौंकनी सी सांसों से तमाम अंगारे गिराती है, और उन पर अपने फूंक का मंतर मार-मार कर दफन हुई बातों को जिन्दा करने की कोशिश करती है ,क्योंकि उन्हें लगता है कुछ बातें दफन नहीं हुई जबरदस्ती जिन्दा दफना दी गई है।
कुछ कविताओं का ये भी शौक भी है वो कब्र खोद दुर्घटनाओं को निकालती और घटना बना लोगो के बीच सनसनी फैला कर चर्चा में रहना चाहती है ।
लेकिन एक दर्द है एक कविता का (जब दर्द गहरा हो तो प्रश्न बन जाता है )वो ये कि जब सब कविता है तो वो साथ क्यों नहीं ?
वैसे ये समय क्या है ? कविता का लोकतंत्र, भेड़तंत्र, तानाशाही या तमगाशाही ?
जो भी हो कुछ कविताएं सर को उठाए न्याय मांग रही है.... मिलेगा क्या?
******************
अपने आप पर रश्क़ कर सकती है उनके मालिक कुछ ख़ास किस्म के होते है। दुनिया उन्हें सलाम करती है।
वैसे सजदा करते उनकी भी उम्र बीत रही है।
कुछ इतनी खुशकिस्मत नहीं
वो फुटपाथ पर ही जन्म लेकर वही मर जाती है हालाँकि मुझे ख़ुशी है कि वो उनकी तरह नहीं जिनकी रूह तक बजबजा रही है ।
ऐसी कविताएं अक्सर नज़र आ जाती है जो प्रेम को याद करती है बार-बार और फिर आहे भरती है हालाँकि प्रेम को फ़ना हुए एक युग बीत गया
कुछ कविताएं ऐसी जादू की टोपी पहनातीे है बस एक हाथ हिलाया और तमाम नामजद पुरस्कार उनकी जादू के झोली में।
इंसानी हांथों में बिछी दरारों की तरह कुछ कविताएं हर उस दरार में घुस झांकती है जिसमे वर्षो से थकी रूह सांस लेना भी भूलती जा रही है।
नतीजा दरारों में ही दम तोड़ती है
कुछ तो अजीब अहमक (लोग उन्हें ऐसा ही कहते है) किस्म की कविताएं है कभी -कभी अपनी धौंकनी सी सांसों से तमाम अंगारे गिराती है, और उन पर अपने फूंक का मंतर मार-मार कर दफन हुई बातों को जिन्दा करने की कोशिश करती है ,क्योंकि उन्हें लगता है कुछ बातें दफन नहीं हुई जबरदस्ती जिन्दा दफना दी गई है।
कुछ कविताओं का ये भी शौक भी है वो कब्र खोद दुर्घटनाओं को निकालती और घटना बना लोगो के बीच सनसनी फैला कर चर्चा में रहना चाहती है ।
लेकिन एक दर्द है एक कविता का (जब दर्द गहरा हो तो प्रश्न बन जाता है )वो ये कि जब सब कविता है तो वो साथ क्यों नहीं ?
वैसे ये समय क्या है ? कविता का लोकतंत्र, भेड़तंत्र, तानाशाही या तमगाशाही ?
जो भी हो कुछ कविताएं सर को उठाए न्याय मांग रही है.... मिलेगा क्या?
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आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १९ फरवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
विशेष : आज 'सोमवार' १९ फरवरी २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच ऐसे एक व्यक्तित्व से आपका परिचय करवाने जा रहा है। जो एक साहित्यिक पत्रिका 'साहित्य सुधा' के संपादक व स्वयं भी एक सशक्त लेखक के रूप में कई कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैं। वर्तमान में अपनी पत्रिका 'साहित्य सुधा' के माध्यम से नवोदित लेखकों को एक उचित मंच प्रदान करने हेतु प्रतिबद्ध हैं। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य"
'कविता का दिक् काल' में कविता की विभिन्न श्रेणियों को बहुत खूबसूरती से दर्शाया गया है. और इसके अंत में उठाया गया जो सवाल है, उसका जवाब है - 'तुम इन कविताओं के ज़रिए इंसाफ़ की गुहार लगाते रहो, अभी देवता सोए हुए हैं, जब जागेंगे तो तुम्हारी अरदास सुन लेंगे.
ReplyDeleteइंसानी हांथों में बिछी दरारों की तरह कुछ कविताएं हर उस दरार में घुस झांकती है जिसमे वर्षो से थकी रूह सांस लेना भी भूलती जा रही है।.......... वाह! बहुत सटीक!!!
ReplyDeleteWah, Such a wonderful line, behad umda, publish your book with
ReplyDeleteOnline Book Publisher India
वाकई वर्तमान के इस दौर में कवितायें न्याय मांग रहीं हैं
ReplyDeleteचिंतन मनन करने वाला विषय है
बहुत सही उकेरा है इस पर विस्तृत चर्चा होनी चाहिए
आपने सार्थक पहल की है
बधाई
निमंत्रण
ReplyDeleteविशेष : 'सोमवार' २६ फरवरी २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीय माड़भूषि रंगराज अयंगर जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।
अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।