Saturday, July 4, 2015

मैं और मेरा विश्वास


अपने पुरे वजूद के साथ 
मेरे वजूद का हिस्सा 
वो मेरा है और मैं उसकी 
अजीब सा है हमारा गठजोड़ 
शायद गठजोड़ नहीं हम घुल गए है एक दुसरे में 
मिश्री और दूध की तरह
उसने न जाने कितने दुखो को
मेरे सुखो में बदला है
मेरी ख्वाहिशों को हक़ीकत में
कभी जो थोडा सा इधर उधर हुआ भी
अपनी तेज सांसो को भर कर
होठों पर मुस्कान सजाये
मैंने लिपटा लिया अपने दामन में
और हम फिर साथ साथ थे
मैं और मेरा विश्वास

1 comment:

  1. "वो मेरा है और मैं उसकी
    अजीब सा है हमारा गठजोड़
    शायद गठजोड़ नहीं हम घुल गए है एक दुसरे में
    मिश्री और दूध की तरह
    उसने न जाने कितने दुखो को
    मेरे सुखो में बदला है"
    सुन्दर रचना !

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