Tuesday, September 2, 2014

नारी और सौंदर्यबोध

उन्होंने कहा हम परतंत्र है और
उतार दिया सुहाग चिन्ह 
फेक दिए रीतिरिवाज 
उन्होंने कहा हम रचेंगे तंत्र 
उठा लिए हथियार 
सीख ली गाली 
उन्होंने कहा अब हम स्वतंत्र है 
पहन लिए अल्प वस्त्र 
उतार दिए संस्कार 

मेरी ये रचना आज की कुछ स्त्री का आंशिक सच ही हो पर है तो। आज के समाज में सौंदर्य की यही परिभाषा है। आज के समाज में किसी भी अन्य विचार से ज्यादा सौंदर्य के मिथक है जो की जीवन के सभी क्षेत्रों में फैले है। क्यों क्योंकि कुछ स्त्रियों को लगता है कि
बदन दिखाना सौंदर्य है और इस तरह के सौंदर्य से लोग उसे गंभीरता से लेने लगेंगे। उसे अन्य लोगो से ज्यादा बढ़ावा मिलेगा उसे लोग विशेष समझेंगे। इस तरह की सोच को बाजारवाद ने और बड़ा दिया है और उसकी शिकार स्त्री आसानी से हुई है।

कोचिंग, कॉलेज अन्य सार्वजनिक स्थलों पर घूमती हुई लडकिया जीता जगता उदहारण है इस दिखावे का ये संस्कार हीनता है । कम से कम कपड़ो में अपनी शरीर की नुमाइस करती ये लडकिया किस सशक्तिकरण को दर्शना चाहती है मुझे आज तक नहीं मालूम हो सका। लडकिया तो लडकिया बड़े शहरों में उम्रदराज महिलाओं को जब अल्प कपड़ो में देखती हूँ तो सोचती हूँ क्या इनके लिए यही स्वतंत्रता है.वह रे नारी गजब है तेरी मुक्ति।
शरीर को उघाड़कर अपने ऊपर उठती अश्लील निगाहों से तथाकथित इन महिलाओ का पुरुष बराबरी का ये तरीका मेरी समझ के परे है। अगर ये पुरषो से बराबरी नहीं सिर्फ खूबसूरती दिखने का तरीका है तो शायद उन्हें खूबसूरती की परिभाषा पता नहीं। ब्यूटी लाइज इन दी आईज ऑफ बिहोल्डर --खूबसूरती देखने वाले की नज़र में होती है। 

ये सही है कि सौंदर्य का एक मनोविज्ञान होता है और मनुष्य के प्रत्येक व्यवहार का संबंध उसकी दमित -भावनाओं से होता है और शायद सौंदर्य पर भी उसकी सोच इसी सोच के आस-पास घूमती है पर जब ये सोच सार्वजानिक हो जाती है और सामाजिक मर्यादाएं को लांघती है तो सौंदर्यबोध ख़त्म हो कर आश्लीलताबोध का एहसास होता है। ये नहीं भूलना चाहिए की हम समाज का ही प्रतिनिधित्व करते है और व्यक्ति का सौंदर्यबोध,समग्र -रूप से समाज का सौंदर्यबोध है। 

अल्प कपड़े, सौंदर्य प्रसाधन इंसान इसके पार है. मानव हो तो आंतरिक सुंदरता को पहचानो अपनी योगता और कार्य करने की क्षमता को पहचान कर उसे एक नया रूप दो। खूबसूरत शरीर एक दिन ख़त्म हो जाना है जो असल है वह पहुचने की कोशिश होनी चाहिए। भारतीय संस्कृति को आत्मसात करे जीवन जीने की यही सही रीत है। यकीन मानिये आपकी और आप के जेहन की भी खूबसूरती इससे बढ़ जाएगी। 


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