Monday, April 11, 2011

हे मानव यात्रा चल चला चल



साधारण सी यात्राओं पर जाने को हम छुट्टियाँ  मानाने का साधन भर मानते है . शायद  ये ठीक नहीं है, यात्रा एक ख्वाब की तरह होती है . एक अच्छा ख्वाब जो पूरा होने  पर आप को एक सुखद अहसास में भर देता  है .

अगर हम सभ्यता की यात्रा की गहराई में उतरे तो पाएंगे की यात्रा ही वह चीज है जिसने मानव समाज को विकसित किया . यात्रा ने विज्ञान ,कला ,व्यापार  संस्कृति  के साथ-साथ मूल्यों का भी विस्तार दिया . हमारे अन्दर विचार भरे उन विचारो को विश्लेषित करके कारणों तक पहुचाया।
ये विचार ही तो थे की एक राजकुमार बुद्ध बन गया और संसार को एक नया धर्म दिया , बोध की इस यात्रा ने न जाने कितने संत, महात्मा हमें दिए।
एक बार फिर हमें यात्रा के खोये अर्थ तलाश करने होंगे . आज हमारी यात्राएँ कर्मकांडो या शायद व्यस्त जीवन से कुछ फुर्सत के समय बिताने के लिए छुटिया मानाने का एक माध्यम भर है पर हमें यात्रा के इस मानसिकता को थोड़ा बदल कर देखना होगा।
असल में यात्रा हमें धरा से जोडती है इतिहास ,संस्कृति आप से बाते करने को बेताव  रहते है लेकिन तब जब आप एक यात्री होते हैं ,पर्याटक नहीं । यात्रा एक तलाश है, अपने को जानने की समझने की , ये प्रकृति की
पुकार है जो आप को पहाड़ो की चोटिया नापवाती अजनवी घाटियों में घुमती है।  महल ,झीले किले, दर्रे . मंदिर मीनारे . सागर . गंगा सागर से गंगोत्री जहाँ भी जाये इनके बीच  इनकी बाते सुनिए ध्यान से, ये कुछ कहते है।
ये अपनी कहानी कहते है अपनी व्यथा अपनी कथा आप को सुनाएगे अगर आप सिर्फ इन्हें देखने जाते है तो ये खामोश खड़े रहेगे। इस बार इनको भी सुनिए ,यात्रा करिए।
ये यात्राए पसंद नहीं तो अनंत की यात्रा कीजिये आप अनंत के यात्री हैं  ध्यान करिए यह यात्रा अंतहीन है। परमात्मा अनंत है उसकी कोई सीमा नहीं ये यात्रा भोगोलिक नहीं ये अंतर -मन की यात्रा है। अब ये आप के ऊपर है की आप को कौन सी यात्रा पसंद आती है भौगोलिक या अनंत से अनंत की।

हे मानव यात्रा पर चल,
चला चला चल 
यात्रा ने संस्कृति  का विस्तार किया , 
विज्ञानं और विचार दिया.
तेरी यात्रा से संहार हुआ ,
युद्द हुआ विध्वंस हुआ .
सम्वेदना दी ज्ञान दिया 
बुद्ध दिया बोध  दिया . 
खुद को जाना खुद को माना 
तलाश की अछोर जीवन की ,
यात्रा की विराट प्रकृति की  
मंदिर से माजिद से , 
हर पग से हर डग से 
कुछ मिला कुछ सीखा  ,
इसलिए हे मानुष यात्रा कर ,
यात्रा पर चल ,चला चल .

8 comments:

  1. राहुल संकृत्यायन की घुमक्कड़ी ने हमे उत्तम साहित्य पढने का मौका दिया . यात्रा के महत्त्व को बहुत सधे हुए शब्दों में और उम्दा रूप से आपने विज्ञानं, सामाजिक सरोकारों, आत्म संतुष्टि और दार्शनिकता से जोड़ दिया है . साधुवाद ऐसे उत्कृष्ट आलेख के लिए .

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  2. सही कहा आपने यात्रा का अभिप्राय भौगोलिक यात्रा न होकर अंतर्मन की यात्रा है ज्ञानवर्धक एवं सार्थक आलेख

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  3. मंदिर से माजिद से ,
    हर पग से हर डग से
    कुछ मिला कुछ सीखा ,
    इसलिए हे मानुष यात्रा कर ,
    यात्रा पर चल ,चला चल .
    -----------------------
    आपके ब्लॉग पे आया, दिल को छु देनेवाली शब्दों का इस्तेमाल कियें हैं आप |
    बहुत ही बढ़िया पोस्ट है
    बहुत बहुत धन्यवाद|

    यहाँ भी आयें|
    यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो फालोवर अवश्य बने .साथ ही अपने सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ . हमारा पता है ... www.akashsingh307.blogspot.com

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  4. पूर्णतः सहमत आपके विचारों से...सार्थक आलेख.

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  5. आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ.... इसलिए इस तरह की यात्राओं पर समय मिलते ही निकल जाता हूँ...

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  6. वाकई यात्रा का जितना महत्व सामान्य व्यक्ति समझता है उससे कई गुना अधिक महत्व रखती है ये बाह्य व अन्तर्मन की यात्राएँ...

    चाहत की कीमत


    तर्क और तकरार

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  7. aap sabhi ka dhnyvad uni ex ke karan main aap sab ke blog nahi dekh paa rahi hoo eske liye sorry

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