आँखों के कोरो से कुछ गीला- गीला गिरता है.
दिल से भी कुछ रुकता-रुकता झरता है .
कसक सी होती है दिल में ,
बसंत में पतझड़ सा लगता है .
आँखों के कोरो से कुछ गीला- गीला गिरता है .
हर बार कहा हर बार रहा ,
उनसे मेरा जो नाता है
ना माना मीत मेरा वो सब ,
उसे बंधन भी जकड़न लगता है .
आँखों की कोरो से कुछ गीला- गीला गिरता है .
ना जाने वो प्यार की भाषा ,
ना जाने मन की अभिलाषा ,
कसक सी होती है दिल में ,
शहर अन्जाना लगता है .
आँखों के कोरो से कुछ गीला-गीला गिरता है .
ना समझ सकी ना समझा सकी उनको ,
ये प्यार बेगाना लगता है .
आँखों की कोरो से कुछ गीला-गीला गिरता है .
वाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteमीठी सी अभिव्यक्ति ...
ReplyDeletewaqt sab kuchh sikha dega.
ReplyDeletesunder prastuti.
roomani rachnaa!
ReplyDeleteअति सुन्दर ....!!
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