वैशाख भारतीय काल गणना के अनुसार वर्ष का दूसरा माह है। इस माह को एक पवित्र माह के रूप में माना जाता है। जिनका संबंध देव अवतारों और धार्मिक परंपराओं से है। ऐसा माना जाता है कि इस माह के शुक्ल पक्ष को अक्षय तृतीया के दिन विष्णु अवतारों नर-नारायण, परशुराम, नृसिंहऔर ह्ययग्रीव के अवतार हुआ और शुक्ल पक्ष की नवमी को देवी सीता धरती से प्रकट हुई थी। कुछ मान्यताओं के अनुसार त्रेतायुग की शुरुआत भी वैशाख माह से हुई। इस माह की पवित्रता और दिव्यता के कारण ही कालान्तर में वैशाख माह की तिथियों का सम्बंध लोक परंपराओं में अनेक देव मंदिरों के पट खोलने और महोत्सवों के मनाने के साथ जोड़ दिया। यही कारण है कि हिन्दू धर्म के चार धाम में से एक बद्रीनाथधाम के कपाट वैशाख माह की अक्षय तृतीया को खुलते हैं।इसी वैशाख के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को एक और हिन्दू तीर्थ धाम पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा भी निकलती है। वैशाख कृष्ण पक्ष की अमावस्या को देववृक्ष वट की पूजा की जाती है। यह भी माना जाता है कि भगवान बुद्ध की वैशाख पूजा 'दत्थ गामणी' (लगभग 100-77 ई. पू.) नामक व्यक्ति ने लंका में प्रारम्भ करायी थी।
किरण कोई व्यक्तिवाचक संज्ञा न होकर उन तमाम व्यक्तियों के रोजमर्रा की जद्दोजहद का एक समुच्चय है जिनमे हर समय जीवन सरिता अपनी पूरी ताकत के साथ बहती है। किरण की दुनिया में उन सभी पहलुओं को समेट कर पाठको के समक्ष रखने का प्रयास किया गया है जिससे उनका रोज का सरोकार है। क्योंकि 'किरण' भी उनमे से एक है।
Tuesday, May 7, 2019
वैशाख की साख
वैशाख भारतीय काल गणना के अनुसार वर्ष का दूसरा माह है। इस माह को एक पवित्र माह के रूप में माना जाता है। जिनका संबंध देव अवतारों और धार्मिक परंपराओं से है। ऐसा माना जाता है कि इस माह के शुक्ल पक्ष को अक्षय तृतीया के दिन विष्णु अवतारों नर-नारायण, परशुराम, नृसिंहऔर ह्ययग्रीव के अवतार हुआ और शुक्ल पक्ष की नवमी को देवी सीता धरती से प्रकट हुई थी। कुछ मान्यताओं के अनुसार त्रेतायुग की शुरुआत भी वैशाख माह से हुई। इस माह की पवित्रता और दिव्यता के कारण ही कालान्तर में वैशाख माह की तिथियों का सम्बंध लोक परंपराओं में अनेक देव मंदिरों के पट खोलने और महोत्सवों के मनाने के साथ जोड़ दिया। यही कारण है कि हिन्दू धर्म के चार धाम में से एक बद्रीनाथधाम के कपाट वैशाख माह की अक्षय तृतीया को खुलते हैं।इसी वैशाख के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को एक और हिन्दू तीर्थ धाम पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा भी निकलती है। वैशाख कृष्ण पक्ष की अमावस्या को देववृक्ष वट की पूजा की जाती है। यह भी माना जाता है कि भगवान बुद्ध की वैशाख पूजा 'दत्थ गामणी' (लगभग 100-77 ई. पू.) नामक व्यक्ति ने लंका में प्रारम्भ करायी थी।
Friday, May 3, 2019
Tuesday, April 30, 2019
वफ़ा सब्र तमन्ना एहसास❤
आगाही कार्ब वफ़ा सब्र तमन्ना एहसास
मेरे ही सीने में उतरे हैं ये खंज़र सारे
बशीर फ़ारूक़ी जी ने शायद हम जैसो का दिल पढ़ कर ही ये शेर कहा होगा....
दो महीने की घर से बाहर व्यस्ता के चलते अव्यवस्थित घर से रूबरू होते ही सबसे पहले गर्म- ठंडी के कपड़े रखते उठते बेटी अपनी घाघरा- चोली दिखा कर बोली देखो मां मेरी ये ड्रेस कितनी छोटी हो गई है, इस बार में नई लुंगी और हैं इस बार मे ये भी लुंगी कहा कर उसने एक फोटो मेरी तरफ बड़ाई..
डिजाइनर पायल की फ़ोटो जिसे देख कर में अतीत मैं खो गई...
पहली बार इसे जब देखा तो उम्र रही होगी मात्र 22-23 साल,एक दिन अपनी सहेली के साथ सुनार की दुकान पर गई उसने वहां सुंदर से इयररिंग लिया लेकिन मेरी नज़र तो वहां रखी डिजाइनर पायल पर अटक गई, दाम पूछे तो अपने पर्स में सौ रु कम...
सहेली ने लाख समझाया अरे 100 रु की ही बात है मुझसे ले ले लेकिन न अपने सिद्धान्त आड़े आ गये। घर आकर सहेली ने मां को बताया तो माँ ने कहा ये ऐसी ही है ,जानती हूं ले ये रु और जाकर इसके लिए वही वाली पायल ले आ, मैं ने सुना तो, माँ को मना कर दिया मां कल आप ही ले आना बोल कर अपने कमरे में चली गयी ,बात आई- गई हो गयी ।
कुछ सालों बाद शादी तय हो गई घर वालो ने जो जेवर दिया अपन ने बिना पसंद किए भाई पर पसंद की जिम्मेदारी डाल कर इतिश्री कर ली।
ससुराल आकर देखा मायके से सुंदर सी पायल मिली पर डिजाइनर नही..
मन की ख़्वाहिश मन मे ही दबी रही ।
पहली होली पर घर गई तो मां ने पिता से कहा गुड़िया के पैर सुंदर से छोटे से है, देखिए इस तरह की पायजेब लाकर दीजिए, मेरा बहुत मन है उसके पैरों पर सुंदर लगेगी और पिताजी पायजेब लेने चले गये।
आलता लगे पैरो पर सात लड़ी की पायजेब जिसने मेरे पैरों को ढक लिया था और मेरे पैरों की शोभा भी बड़ा रही थी लेकिन मन मे फिर वही डेलिकेट सी डिजाइनर पायल दस्तक दे रही थी...।
वैसे भी मुझे डेलिकेट से ही जेवर पसंद है ।
नई- नई शादी के बाद एक दिन हम गृहस्थी सजाने के लिए शॉपिंग कर रहे थे, कि एकाएक मेरी नज़र पास ही दुकान पर लटकी डिजाइनर पायल पर पड़ी ...
मैं ने जल्दी से दाम पूछे दुकानदार ने बताए पर्स में देखा फिर से सौ रु कम थे, मन मसोस कर मैं चलने को हुई कि पतिदेव आ गये बोले कुछ लेना है अपनी संकोची प्रवति से शायद पर्दा हटाती तभी पतिदेव के शब्द सुनाई पड़े सब तो है और क्या करोगी लेकर और मैं चुपचाप उनके पीछे चल पड़ी ...।
आज जब बेटी ने डिजाइनर पायल की फ़ोटो दिखाई तो एक बार फिर से अपने पैरों पर नज़र गई समय की धूल ने चाहें वैसा रूप रंग न रहने दिया हो पैर भी शायद उतने सुंदर न रह पाये हो लेकिन ख़्वाहिश आज भी वैसी ही है नई सी ...
लेकिन संकोच का पर्दा आज भी नही उठा सच कहा था पिता ने विदा के समय मेरी बेटी ने हम से कभी कुछ मंगा नही ये इसका अहं नही संकोच है वो कभी कुछ मांगेगी नही ये बात ध्यान रखना।
पिछले 14 सालों में कितनी बार संकोच को परे हटाने की भरपूर कोशिश की लेकिन अपने लिए कुछ मांगना ....।
हजारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पर दम निकले...
मेरे ही सीने में उतरे हैं ये खंज़र सारे
बशीर फ़ारूक़ी जी ने शायद हम जैसो का दिल पढ़ कर ही ये शेर कहा होगा....
दो महीने की घर से बाहर व्यस्ता के चलते अव्यवस्थित घर से रूबरू होते ही सबसे पहले गर्म- ठंडी के कपड़े रखते उठते बेटी अपनी घाघरा- चोली दिखा कर बोली देखो मां मेरी ये ड्रेस कितनी छोटी हो गई है, इस बार में नई लुंगी और हैं इस बार मे ये भी लुंगी कहा कर उसने एक फोटो मेरी तरफ बड़ाई..
डिजाइनर पायल की फ़ोटो जिसे देख कर में अतीत मैं खो गई...
पहली बार इसे जब देखा तो उम्र रही होगी मात्र 22-23 साल,एक दिन अपनी सहेली के साथ सुनार की दुकान पर गई उसने वहां सुंदर से इयररिंग लिया लेकिन मेरी नज़र तो वहां रखी डिजाइनर पायल पर अटक गई, दाम पूछे तो अपने पर्स में सौ रु कम...
सहेली ने लाख समझाया अरे 100 रु की ही बात है मुझसे ले ले लेकिन न अपने सिद्धान्त आड़े आ गये। घर आकर सहेली ने मां को बताया तो माँ ने कहा ये ऐसी ही है ,जानती हूं ले ये रु और जाकर इसके लिए वही वाली पायल ले आ, मैं ने सुना तो, माँ को मना कर दिया मां कल आप ही ले आना बोल कर अपने कमरे में चली गयी ,बात आई- गई हो गयी ।
कुछ सालों बाद शादी तय हो गई घर वालो ने जो जेवर दिया अपन ने बिना पसंद किए भाई पर पसंद की जिम्मेदारी डाल कर इतिश्री कर ली।
ससुराल आकर देखा मायके से सुंदर सी पायल मिली पर डिजाइनर नही..
मन की ख़्वाहिश मन मे ही दबी रही ।
पहली होली पर घर गई तो मां ने पिता से कहा गुड़िया के पैर सुंदर से छोटे से है, देखिए इस तरह की पायजेब लाकर दीजिए, मेरा बहुत मन है उसके पैरों पर सुंदर लगेगी और पिताजी पायजेब लेने चले गये।
आलता लगे पैरो पर सात लड़ी की पायजेब जिसने मेरे पैरों को ढक लिया था और मेरे पैरों की शोभा भी बड़ा रही थी लेकिन मन मे फिर वही डेलिकेट सी डिजाइनर पायल दस्तक दे रही थी...।
वैसे भी मुझे डेलिकेट से ही जेवर पसंद है ।
नई- नई शादी के बाद एक दिन हम गृहस्थी सजाने के लिए शॉपिंग कर रहे थे, कि एकाएक मेरी नज़र पास ही दुकान पर लटकी डिजाइनर पायल पर पड़ी ...
मैं ने जल्दी से दाम पूछे दुकानदार ने बताए पर्स में देखा फिर से सौ रु कम थे, मन मसोस कर मैं चलने को हुई कि पतिदेव आ गये बोले कुछ लेना है अपनी संकोची प्रवति से शायद पर्दा हटाती तभी पतिदेव के शब्द सुनाई पड़े सब तो है और क्या करोगी लेकर और मैं चुपचाप उनके पीछे चल पड़ी ...।
आज जब बेटी ने डिजाइनर पायल की फ़ोटो दिखाई तो एक बार फिर से अपने पैरों पर नज़र गई समय की धूल ने चाहें वैसा रूप रंग न रहने दिया हो पैर भी शायद उतने सुंदर न रह पाये हो लेकिन ख़्वाहिश आज भी वैसी ही है नई सी ...
लेकिन संकोच का पर्दा आज भी नही उठा सच कहा था पिता ने विदा के समय मेरी बेटी ने हम से कभी कुछ मंगा नही ये इसका अहं नही संकोच है वो कभी कुछ मांगेगी नही ये बात ध्यान रखना।
पिछले 14 सालों में कितनी बार संकोच को परे हटाने की भरपूर कोशिश की लेकिन अपने लिए कुछ मांगना ....।
हजारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पर दम निकले...
Sunday, April 28, 2019
अधूरा प्रणय बंध
बेजुबान लब्ज
झुकी डाल
ढीठ सी लाज
चीरती जब मधुर भय को
रचती अधलगी महावर
तुम विवश
मैं अवश
झुकी डाल
ढीठ सी लाज
चीरती जब मधुर भय को
रचती अधलगी महावर
तुम विवश
मैं अवश
बचपन में मालवा के बिताए सालों में मां के साथ जब भी बाज़ार जाती थी तो काकीजी के हाथ से बनी डबल लौंग सेव खाना कभी नही भूलती वो मुझे इतने पसंद थे कि उनके लिए मैं कुछ भी छोड़ सकती थी। लेकिन खाते ही जो मुंह जलता सो बस की बोलती बंद ।
जबान की बोलती बंद आंखे बोलती वो भी आंसुओ की भाषा.... तब काकी रामजी की मूरत के सामने से मिश्री की डली उठा कर मेरे मुहं में रख देती... अब दोनों स्वाद मेरी जबान पर होते।
मिश्री की डली मैं ने भी उठा कर अपने मुंह में रखी मुझे क्या पता था डबल लौंग वाले सेव का स्वाद भी चला आएगा....😊
बाप रे बाप तुम्हारा गुस्सा पहली बार जब मेरा इससे सामना हुआ तो... तुम किसी को डांट रहे थे और मैं अंदर ही अंदर कांप रही थी कुछ कहना चाहती थी लेकिन सब भूल गई थी समझ नही आ रहा था पहली बार मोहिनी मुस्कान लिए जो मिला था वो क्या यही है....। लो मैं कहां फंस गई।😊
मिश्री की डाली कब की घुल गई थी अब केवल लौंग का स्वाद ही जुबा पर था। लेकिन प्यारा था।
न तुम भाई, न बंधु, न सखा न...।
लेकिन मन साध रहा था शायद कोई रिश्ता....।
गंगा के जलोद मैदानों पर पहली बार तुम्हें देखा तो जाना फाल्गुन पंचाग का अंतिम महीना नही पहला महीना होता है
कुछ था जो मन से चित्त की तरफ चलने लगा था ।
आसमान कितना ऊपर था धरती कितनी नीचे कुछ पता ही नही चला जैसे हर तरफ क्षितिज ही क्षितिज....जाती ठंड मुझ में एक सिहरन छोड़े जा रही थी।
अजीब जगह थी जहां तुम मिले थे वहां अलसाई सुबह थी उदास शाम थी और तन्हा रात ,लेकिन रात की सारी उदासी सुबह की मीठी आवाज़ में गुम हो जाती... कितनी कशिश थी उस बुलावे में.... उफ़्फ़
दोपहर की रौनकों का कस्बा है ये जगह जहां एक दिन दोपहर में मैं ने तुम्हारी आहट को पहचाना था आहट क्या थी रिफ़त- ए- चाहत थी जो लम्हा लम्हा रूह में समा रही थी.... पल पल रहत में दिन निकल रहे थे।
धूप के साए कम होने लगते थे कि फिर आने के लिए तुम चले जाते और मैं तुम्हें देखती उसी खिड़की से । बस उसके बाद शुरू होता तुम्हें देखने का सिलसिला तुम्हारा आना पल पल देखती ये जानते हुए भी कि तुम अभी नही आओगे।
तुम्हारे आने की आहट कैसे तो मन मे गुदगुदी लाती मैं अपने को बमुश्किल संभाल पाती....।
फ़क़त बिजनिस में उलझे तुम, तुम कविता लिखने वाली लड़की के मन की बात पता नही समझते थे या नही लेकिन डूबता सूरज दिखाने पर तुम्हारी मुस्कान गहरी होती ।कभी कभी मेरी कुछ कविता सी बातें पढ़ते तुम मुझे कोई और ही लगते.... तुम भी अब रच रहे थे ,कविता नही मुझे और मैं रच रही थी पल- पल हर पल मन में पलते तुम्हारे अहसासों को।
कैसे तुम्हें बताती कि तुम्हारे साथ बिताए पल सितारों की तरह टंक गये है मेरे अंतस में या
कि मेरी सीधी- सुलझी बातें और तुम्हारा उलझे- उलझे मुझे देखना
कि मेरी ढेर सी अभिलाषाएं कि तुम्हारी विवशताएं....।
कि वो दो आंखे जो मुझे सच बयान करती थी और जिन्हें मैं चूमना चाहती हूं मरने से पहले।
कि तुम्हारे सामने झुकता मेरा सर लाज थी उस प्यार की जो अब मन से चित्त में उतर चुका था।
कि जब भी मैं तुम्हारे पीछे- पीछे चलती मैं मन ही मन रचती अपने अंदर पग पग तुम्हारे प्यार को ..।
ढलता हुआ सूरज मैं देखा करती और तुम अपने लैपटॉप में काम करते रहते शायद खुद से मुझ से बेख़बर और मैं हर लम्हा संभाल रही होती इस आशा में कि कभी तो तुम उन अहसास से गुजरोगे जिन से मैं गुजर रही हूं।
प्रेम तो प्रकृति है
ये कोई व्यवहार थोड़ी है कि,
तुम करो तो ही मै भी करू
तुम्हारी आहट से धड़कते इस दिल मे ढ़ेरो स्पर्श लिए मैं जा रही हूं ये जानते हुए कि हमारे बीच मे कोई वादा नही वादा जैसा कोई रिश्ता नही फिर भी कुछ ख्वाहिशें थी , थे कुछ सपनें भी जो मैं ने अंजाने ही में खुली आंखों से देखे थे ।
यकीन करो मेरा में ने आंखे बंद भी की लेकिन न जाने कब कैसे तुम उनमे समा गये।
पता ही नही चला....।
ख्वाहिश थी कि हल्की बारिश में एक लंबी सड़क पर तुम मेरा हांथ पकड़ कर चलो और बारिश की बूंदे हमारे तन मन को भिंगो दे
कि तुम बाइक चलाओ और मैं तुम्हारे पीछे बैठी तुम्हारी पीठ पर अपना सर रखें तुम्हें रूह तक महसूस करूं।
कि किसी गुमनाम से थियेटर में हम साथ- साथ हो और लाइट बंद होते ही हौले से तुम मेरा हांथ थाम लो
कि मैं तुम्हें सोता हुआ देखूं.....।
कि कभी- कभी तुम्हारी डांट खा कर बच्चों की तरह तुमसे ही लिपट जाऊं
कि किसी दिन मैं इठलाकर तुम से रंग बिरंगी चुड़िया लेने के लिए कहूं और तुम उन्हें ले कर मेरे हांथो में पहना दो
कि तुम्हारे नाम की मेहंदी लगा कर तुम्हें दिखाऊं
कि तुम किसी चांदनी रात में मोगरे की वेणी धीरे से मेरे बालों में लगा दो ।
तुम जानते हो न मुझे सफेद रंग पसंद है.....।
कि किसी दिन दूर कहीं किसी जगह तुम्हारी पीठ पर अपने प्यार का चुम्बन टांक दूं
कि....।
ख्वाहिशों का क्या ... जानती हूं मौन का धर्य साथ लेकर चलना ही होगा इस अधूरे प्रणय बंध में किस ठौर कहां तुमको जोडू ,बोलूं तो क्या बोलूं।
अब विदा लेती हूं दोस्त विदाई के इन पलों के शुक्रिया करना चाहती हूँ शुक्रिया करना चाहती हूँ उस आहट का जिसके आने से जीने की उमंग आती थी, जिंदगी में सलीका आता था, आती थी रोहानी खुशबू और आता था अपने को शेष रखने का भाव।
यहां से सिर्फ मैं नही जाऊंगी दोस्त 'हम' जाएंगे कहां छोड़ा तुमने कभी अकेला न अलसाई सी सुबह में न भींगती रातों में न पूर्ण चांद में न अमावस में।अब हर पल तुम मेरे साथ ही रहोगे ।
जानती हूं जीवन की आपा-धापी गंगा छोड़ते ही शुरू होगी लेकिन इस बार इस आपा-धापी में पुर-सुकूँ मिलेगा
चांद अब पूरी कलाएं दिखाएगा अमावस की काली रातें मेरे हिस्से नही होंगी।
अब विदा लेती हूं दोस्त तुम्हारी प्यारी सी मुस्कान से, इंतज़ार करती रहूंगी कि मुस्कान से बोल फूटे और तुम वो कहा दो जो में सुनना चाहती हूँ।
विदा अब शायद अलविदा।
Monday, February 25, 2019
कविता सी बातें💗
1-प्रेम 💝
तेरी मेरी जुडी हथेलियां ईश्वर का घर है 🌷
ये जो अंधकार से भरा खालीपन देख रहे हो न
उसी से तो निकलेंगे उल्कापिंड की भांति प्रेम पल
इससे पहले कि ये तुम्हें आशा का क्षणिक आभास देकर छोड़ दे तुम्हारा साथ ,तुम्हें मिलाने होंगे इस लाल धूसर मिट्टी में आस्था के सारे वो चिन्ह
मत बनना अब किसी भी बुत को नही तो करनी ही होगी अर्चना....
अगर देखना चाहते हो जीवन के क्रूर चेहरे के पीछे छिपे सुंदर और कृपालु उस शक्ति को जिसे प्रेम कहते है तो जितनी जल्दि हो सके शाम के सारे पर्दे गिरा दो.....
बोध के रास्ते नज़र तभी आएंगे जो रंगों से भरे है, सिर्फ लाल रंग छोड़ कर , लाल रक्त को बहने दो अपनी शिराओं में क्या पता किसी युग मे ये नफरत की अग्नि का विशाल पुंज बदल कर विचार बने प्रेम का।
2-प्रेम ❤
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रूह को एहसास नहीं हुआ ,जिस्म समझ नहीं पाया, आँखे देख न सकी
बस उसका होना हमारे होने से टकराया और हमारा होना न होना होकर रहा गया I
मानो रूह ने साथ छोड़ा हो जिस्म का I
ऐसा ही होता है प्रेम
किसी अनजाने से गाँव की पगडंडी से चलता हुआ एक उदास घर में एक उदासी से मिलता है , फिर आदान प्रदान होता है ' शेखर एक जीवनी" या 'गुनाहों का देवता' का ।
रात भर बारिश होती है कहानी भींगती है
ठिठुरी हुई लम्बी रातों में दो तारे बारी - बारी से जागते हैंI
कही दूर किसी सिसकी का जवाब होता है तेरे नाम और तेरे ध्यान की कश्ती से मैं दरिया पार कर लूँगा।
ऐसा ही होता है प्यार चाहे तीन रोज का हो या तीन सौ पैसठ दिन का ।
किसी ने आवाज दी
जिन्दगी मुस्काई
कली ने पखुडियाँ खोली
और उदासी ढल गई
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3-प्रेम 💙
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आप की आहट......🍁
कुछ आहटें ऐसी होती हैं, जो सुन्दरतम क्षण से हमें जोड़ती हैं | उन आहटों के कुछ लम्हें हम जी पाये | कितना मधुर था वह क्षण! ... और जो अनसुना रह गया था , वह शायद और मधुर अपूर्ण था| लगता है, मानो हम उन्हीं मोहक लम्हों के क़रीब हैं |
जीवन की इस आपाधापी में धड़कती साँसें बन्द हो, गुमनाम हो जातीं और हम उन्हीं साँसों की मादकता का एहसास तक नहीं कर पाते | हाँ, आज एहसास हो रहा है--- एक क़िस्म की अपूर्णता भी ज़रूरी है, ज़िन्दगी के लिए .......|
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4-प्रेम 💚
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इश्क़ पर आमाल की बुनियाद रख......🌼
जब अमृता की कहानी को जीने लगो, कुछ गीली कुछ सीली सी हवाओं को सुनने लगो। शब्द-शब्द एहसास हो। लफ्जों की इबारतें दश्ते सहरा में सूफी कलाम लगे। दुनियावी शोर सुनाई देना बंद हो जाये। जब सारी मुस्कानें सारे आंसू सारी शरारतें सिर्फ और सिर्फ किसी एक के लिए हो, तब अपने होश के हुनर से पूछ लेना कही मन का रूपांतरण तो नहीं हुआ है।
साज और साजिंदे एक तो नहीं हो गए है ?
लेकिन इसे तुम तभी सुन सकते हो जब भीड़ की दोहरावपूर्ण आदतों की व्यर्थताओं को पहचान कर अपना गीत अपनी अनुभूति से रचने की कला तुम्हें आती हो।
प्रेम ऐसा ही होता है दोस्त
ये मौला के दर से दर्दमंदो के दिल तक यूं ही नहीं बहता ।
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5-प्रेम 💛
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सुर आत्मा को ढालता है और ज़ज्बात का सोना पिघलाता है...🌹
घाटियों दर्रों पहाड़ों और रेगिस्थान में कुछ प्रेमी मरे आयते हो गए
कुछ और मरे चौपाई हो गए
फिर कुछ और मरे वर्स हो गए
अंत में जो मरे वो गुरुवाणी हो गए
पर जो जिन्दा थे उन्होंने न आयते पढ़ी न चौपाई न ही वर्स
और न ही सुनी गुरुवाणी
क्योंकि वो प्रेमी नहीं थे
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6-प्रेम 💜
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निढाल है हम इस इश्क़ के सफ़र में 🌻
प्रेम की निर्जनता में उदासी हमेशा स्लेटी रंग की क्यों होती है?
यही पूछा था न मैं ने
और तुमने हस कर कहा था
बिना संकट के कुछ भी सार्थक की प्रति संभव कहां,
संभव तभी है
जब मन के पथ में दूसरे की गंध भरी हो
शारदीय धूप का केसरिया रंग किन्हीं अक्षांशो पर खिलाना ही होता है मयूख....
सच कहा था तुमने
प्रेम की परिणति तो पहुँच जाने में ही होती है
चाहे इतिहास बने या वर्त्तमान
बस इतना रहे की
मन की निर्जनता में भाद्रपद के चाँद सा झलकता रहे।
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7-प्रेम 💗
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नैना ही अंतर परा, प्रान तुमहारे पास.....
टहलती आती है आवाज़ें अजनबियत की गलियों से
जैसे निभाती हो रस्में उनके लिए जो अपने थे
दौरे इश्क है गुज़र जाएगा
आप ज़र्रा है आफ़ताब बने तो सही
रूहनी खुशबू है अहसास कर के देखिए
नहीं तो सिर्फ गुबार है ये धूल के
नूरी मछुआरिन सरहद के इस पार हो
या कि उस पार
हर बार दीद रहा जाती है इस पार
इश्क के दरिया में बेख़ौफ़ तैरते है
हम वो है जो इसकी आग में भी हहरते है
टंगा जड़ पर तरकस, स्यालों में बांट दिये आप ने तीर
मिर्जा जिन्दा है बस जरा इश्क की तलवार धंसी है
खामोश है, उदास है ,पर बंजर नहीं जमीन
पहले बोसे की बूँदे हरा रखती है
कि स्मृतियों का लोबान बुझ- बुझ के जलता है
अधूरा एहसास है रातों को महकता है
लबालब दिल है बेलौस भी है ये
यादों से रूबरू हो थोड़ा मगरूर भी है ये
शब्द थके, टूटे, गीत बेघर है मेरे
सपने नींद की तलाश करते है
यक़ीनन सफ़र मुश्किल है इश्क का
मुकम्मल यहां कुछ भी नहीं
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