पीड़ा की नीव में दबी वासना सुखी हो उठी
जब जब स्त्री कराही ,चिल्लाई
और इस तरह बर्बर दंड ने जन्म लिया इस पृथ्वी पर
हर कराहने के बाद शिकारी बढते गए
पहला शिकारी कोई आदि अमानुष था
ढेंकुल ने मधुर वचनों के दंड में फरेब घोला
प्रेम की रस्सी से वासना का कुंड भरा
कुइयां अब रीती थी
ये बुद्धिजीवी थे
धर्म की कृपालु आत्माओं ने कहा
स्त्री तेरे शरीर में स्वर्ग का फाटक है
हम उसे स्वर्ग की कुंजी से बंद करेंगे
तब वो विभिन्न धर्मों के साथ
स्वर्ग की कुंजी से ताले जड़ते गये
ये धर्म के ठेकेदार थे
वेश्यालयों की दीवारें धर्म के पत्थरों से सजी थी
मंदिर अक्षत योनि से
फिर सारे बर्बर दंड
कराहने ,चिल्लाने से निकल कर
फैल गये धर्म ग्रंथों तक
कारागार खड़े हुए न्याय की नींव पर
सारी निर्दयता का अंत
स्त्री की जांघ पर जा बैठा
अब स्त्री की उतनी ही जरुरत थी
जितनी खाट की ,सवारी की, छत की।
स्त्री अब कोई चीज बड़ी है मस्त मस्त थी।
जब जब स्त्री कराही ,चिल्लाई
और इस तरह बर्बर दंड ने जन्म लिया इस पृथ्वी पर
हर कराहने के बाद शिकारी बढते गए
पहला शिकारी कोई आदि अमानुष था
ढेंकुल ने मधुर वचनों के दंड में फरेब घोला
प्रेम की रस्सी से वासना का कुंड भरा
कुइयां अब रीती थी
ये बुद्धिजीवी थे
धर्म की कृपालु आत्माओं ने कहा
स्त्री तेरे शरीर में स्वर्ग का फाटक है
हम उसे स्वर्ग की कुंजी से बंद करेंगे
तब वो विभिन्न धर्मों के साथ
स्वर्ग की कुंजी से ताले जड़ते गये
ये धर्म के ठेकेदार थे
वेश्यालयों की दीवारें धर्म के पत्थरों से सजी थी
मंदिर अक्षत योनि से
फिर सारे बर्बर दंड
कराहने ,चिल्लाने से निकल कर
फैल गये धर्म ग्रंथों तक
कारागार खड़े हुए न्याय की नींव पर
सारी निर्दयता का अंत
स्त्री की जांघ पर जा बैठा
अब स्त्री की उतनी ही जरुरत थी
जितनी खाट की ,सवारी की, छत की।
स्त्री अब कोई चीज बड़ी है मस्त मस्त थी।
स्त्री तेरी यही कहानी ,सच लिखा
ReplyDeleteआभार रंजू जी।
ReplyDeleteकड़वा सत्य ! जो गले नहीं उतरता गंभीर परिस्थिति ! विचारणीय ,आभार "एकलव्य"
ReplyDeleteगहरा कडुवा पर केवल सच ... समाज के कठोर सत्य से जूझती हुयी रचना ... पुरुष सत्ता के दोगलेपन को बाखूबी लिखा है ...
ReplyDeleteकड़वा सच !!
ReplyDeleteआभार,गगन जी,दिगम्बर जी,ध्रुव जी 😊💐🙏
ReplyDeleteसमाज का कठोर सत्य
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’हिन्दी ग़ज़ल सम्राट दुष्यंत कुमार से निखरी ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDeleteआज दुबारा पढी कविता, और फिर जी चाहा कि कमेंट लिखूं। लेकिन क्या लिखूं, यह समझ नहीं आ रहा।
ReplyDeleteसमाज का कठोर सत्य से जूझती हुयी रचना