Wednesday, July 5, 2017

सूफ़ी पात

दरवेश से होते है पत्ते
यहां वहां बिचरते हुये
बेनियाज़
शाखों पर लगे ये करते हैं जुहद
अतीत के गुम ये यायावर
निकल आते है
कच्ची दीवारों पुराने खंडहरों से
और पहुंच जाते है सर्द रातों में
दहकते आवा में
इंतजार करते लोगो को
देते है दिलासा और करते है गर्म रिश्तों को
इनके दिल पर जो लकीरें है
दरअसल ये युगों की कविता है
बंद डायरी के बीच बैठे
ये सुनाते है किस्से
तेरे मेरे प्रेम के
ये दरवेश है तो कहां ठहरेंगे
चल देते है किसी और
पगडंडी पर
जहां प्रतीक्षा की पंक्तियां
गुनगुनाता प्रेम
इन्हें भर लेता है बाहों में
कहानी सुनने को
शुरू होती है
एक और नई कहानी....।

(बेनियाज़-- किसी भी चीज़ की चाह न होना।
जुहद-- तपस्या )


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