Tuesday, May 9, 2017

ताजा गोस्त

हुंअ
बंद करो चीख पुकार
ये लोकतंत्र है
और वो स्वतंत्र
उन्हें खाने पीने चाटने स्वाद लेने की
पूरी आजादी है
सुन्दर स्वाद रुचिनुसार
अपना मनपसंद माल
पड़ोस, दफ्तर, बाज़ार, गलियों से
उठा लेना
उनका मूलभूत अधिकार है
उन्हें पसंद है
ताजा गुलाबी गोस्त
अगर जावा न भी हो तो
भूण या एक दो तीन....
बरस का भी चलेगा
ये विकसित दुनिया है
अब गुलाबी गोस्त का भक्षण
ज्यादा मुमकिन ज्यादा आसान है
कितना सुखद और बनाने में आसान भी
देह से आत्मा तक को छीलना है
फिर स्वाद धीरे धीरे लेना है
उन धारदार पालो का
और तब तक लेना है जब तक
पौरुष आप के अन्दर प्रकट न हो जाये
और खुद को आप
पुष्ट होते हुए महसूस न करे
आखिर आप पुरुष है
आप लोकतंत्र में है
आप को खाने पीने स्वाद लेने की
छुट है
संवैधानिक अधिकारों के साथ

एक वैधानिक चेतावेनी- मादा देह नहीं गोस्त है
उन्हें देह समझने की भूल न करे
क्षमता अनुसर भक्षण करे।

1 comment:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’ओ बुद्ध! एक बार फिर मुस्कुराओ : ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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