अरावली से मेरा पहला परिचय शायद कक्षा चार या पांच की
हिन्दी की किताब के नाटक “पन्ना धाय” मे हुआ था. पन्ना धाय नाटक के पात्र सोना के मुंह से सुना कि पन्ना
धाय राजमहल मे अरावली पर्वत की तरह अडी खडी है, इस वाक्य ने मेरे नन्हे मन मे ये विचार पैदा किया कि निश्चित
ही अरावली पर्वत बहुत ही विशाल और वन तथा वनजीवो से भरा होगा उस दिन से मेरा सपना
उस पर्वत को देखने का बना रहा. सन 1998 मे इसे देखने का सौभाग्य मिला जब आगरा के
रास्ते मैने राजस्थान मे प्रवेश किया मुझे सोना कि बात बिल्कुल सही लगी सच पन्ना
धाय ना सिर्फ राजमहल मे इतिहास मे जिस त्याग, समर्पन और हिम्मत से आज भी खडी है और
हम भारतीय नारियो को गर्व से भर देती है उसी हिम्मत से मुझे तो अरावली राजस्थान की सीमा मे अडा हुआ दिखा उसकी विशालता मे सुरक्षित होने के अहसास को मैने राजस्थान
की धरती पर महसूस किया. हमारी व्यवस्था मे ना जाने कितने “बलबीर” आते जाते रहते है
पर एक पन्ना धाय राजवंश को ना सिर्फ जिन्दा रखती है बल्कि उन्हे देती है श्रेष्ठ
परम्पराये, संस्कार और त्याग. अरावली को देखते हुये भी मुझे इसी परम्परा का अहसास
हुआ उसे देख कर लगा मानो घर के बुजुर्ग जिसने अपने श्रम से ना सिर्फ परिवार को
परम्परा संस्कार व त्याग की सौगात दी है बल्कि अपनी कठोरता का दिखावा भले ही बाहर
से किया हो घर के लोगो की कोमलता को बचाया है राजस्थान के नागरिको को अरावली ने
कुछ ऐसा एहसास कराया है तभी तो मेरी उस राजस्थान की यात्रा मे पास मे बैठी मेरी सहयात्री
अरावली पर्वत को हाथ जोड कर कहती है ये तो हमारे बुजुर्ग है ना जाने कब से खडे है
हमारी सुरक्षा मे मैने भी उनके साथ हाथ जोड लिये और एहसासो से भर उठी. विषम
परिस्थितियो मे वो क्या था जिसने पन्ना धाय् को थामा था अरावली भी राजस्थान के विषम
मौसम को थामे रहता है तभी तो हरियाणा गुडगांव जैसे शहर मे राजस्थान हवाओ की रेत को
छान कर भेजता है लेकिन कब तक? दैनिक जागरण मे पढी एक खबर ने मुझे चौंका दिया. अब
अटल अविचल खडे अरावली पर होटल काम्पलेक्स बनेगे ............ क्या भूमंडलीकरण ने हमारी नैतिक सम्पदा को
बिल्कुल ही समाप्त कर दिया है अरावली कोई भौतिक सम्पदा नही है उसे छिन्न भिन्न
करने का मतलब हमारी परम्परओ हमारे संस्कारो को छिन्न भिन्न करना है राजस्थान की
धरती पर पन्ना धाय के साथ खडे इस प्रहरी को समाप्त मत करिये हमारी श्रेष्ठ
परम्पराये तो यही कहती है.
किरण कोई व्यक्तिवाचक संज्ञा न होकर उन तमाम व्यक्तियों के रोजमर्रा की जद्दोजहद का एक समुच्चय है जिनमे हर समय जीवन सरिता अपनी पूरी ताकत के साथ बहती है। किरण की दुनिया में उन सभी पहलुओं को समेट कर पाठको के समक्ष रखने का प्रयास किया गया है जिससे उनका रोज का सरोकार है। क्योंकि 'किरण' भी उनमे से एक है।
Monday, February 10, 2014
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