Saturday, April 23, 2011

चलो दोनों चले वहां










बड़े -बड़े पहाड़ो के 
सकरे से रास्तो के बीच 
ना कोई आता जाता जंहा 
चलो दोनों चले वहां 
जहा दर्रो से निकले धवल  पानी 
जहा सन्नाटे की ही हो वाणी 
चलो चले वह 
ना कोई आता जाता जहा
जहा पैरो के नीचे पत्ते करे चरर मरर 
जहा हवा की हो सनन-मनन 
ना कोई आता जाता 
चलो दोनों चले वहा
सुन्दर -सुन्दर परिंदों का हो जहा आवास  
जंहा धरती के साथ -साथ हो आकाश 
वही करे निवास 
न  कोई आता जाता जहा 
चलो चले वहा 
अब ना रुके यहा   
चलो चले वहा 

  

Saturday, April 16, 2011

मन पर छाई धूसर धूप सी














वृक्ष्र से विलग हुई पतियों का कोई अस्तित्व ही नहीं रहता लेकिन उस छन जब पत्तिया विलग होती है वृक्ष  का भी अस्तित्व न के बराबर होता है. ऐसा ही है हमारा मन जब  प्यार नहीं पता तब हम  दुःख के सतत प्रवाह में बहने लगते  है. धरती में बिखरी पतियों के उड़ने जैसे  हमारी जिन्दगी का भी कोई अस्तित्व नहीं होता.    




झरने लगा पत्ते जैसे  मन 
बढ़ने  लगी उदासी मन की 
उड़ने लगी चेहरे की रंगत 
बुझने लगी मन की रंगीनी 

मन पर छाई धूसर धूप सी 
मन की सुधियाँ  हुई अनबनी 
उन से बिछड़ के रुक गई
जैसे  प्रगती  जीवन की 

साँस रुकी हम खड़े है जैसे 
पतझड़ के बाद खड़े वृछ जैसे 
लुटी -लुटी सी प्रकति जैसे  
मन मेरा तरसा हो ऐसे  

चिल चिली धूप  में बिन पानी के 
साँस अटकती गौरैया  सी 
मन ऐसे  तरसा है जैसे  
ठहर  गई गरम दुपहरिया जैसे  

आग बरसती मन में ऐसे  
गरम लू चलती हो जैसे  
मन के इस वीराने में 
अब न हरियाली छाई 

छ गई यादो की  पतझड़ 
बीत गई रहनुमाई बसंत की      
          

Monday, April 11, 2011

हे मानव यात्रा चल चला चल



साधारण सी यात्राओं पर जाने को हम छुट्टियाँ  मानाने का साधन भर मानते है . शायद  ये ठीक नहीं है, यात्रा एक ख्वाब की तरह होती है . एक अच्छा ख्वाब जो पूरा होने  पर आप को एक सुखद अहसास में भर देता  है .

अगर हम सभ्यता की यात्रा की गहराई में उतरे तो पाएंगे की यात्रा ही वह चीज है जिसने मानव समाज को विकसित किया . यात्रा ने विज्ञान ,कला ,व्यापार  संस्कृति  के साथ-साथ मूल्यों का भी विस्तार दिया . हमारे अन्दर विचार भरे उन विचारो को विश्लेषित करके कारणों तक पहुचाया।
ये विचार ही तो थे की एक राजकुमार बुद्ध बन गया और संसार को एक नया धर्म दिया , बोध की इस यात्रा ने न जाने कितने संत, महात्मा हमें दिए।
एक बार फिर हमें यात्रा के खोये अर्थ तलाश करने होंगे . आज हमारी यात्राएँ कर्मकांडो या शायद व्यस्त जीवन से कुछ फुर्सत के समय बिताने के लिए छुटिया मानाने का एक माध्यम भर है पर हमें यात्रा के इस मानसिकता को थोड़ा बदल कर देखना होगा।
असल में यात्रा हमें धरा से जोडती है इतिहास ,संस्कृति आप से बाते करने को बेताव  रहते है लेकिन तब जब आप एक यात्री होते हैं ,पर्याटक नहीं । यात्रा एक तलाश है, अपने को जानने की समझने की , ये प्रकृति की
पुकार है जो आप को पहाड़ो की चोटिया नापवाती अजनवी घाटियों में घुमती है।  महल ,झीले किले, दर्रे . मंदिर मीनारे . सागर . गंगा सागर से गंगोत्री जहाँ भी जाये इनके बीच  इनकी बाते सुनिए ध्यान से, ये कुछ कहते है।
ये अपनी कहानी कहते है अपनी व्यथा अपनी कथा आप को सुनाएगे अगर आप सिर्फ इन्हें देखने जाते है तो ये खामोश खड़े रहेगे। इस बार इनको भी सुनिए ,यात्रा करिए।
ये यात्राए पसंद नहीं तो अनंत की यात्रा कीजिये आप अनंत के यात्री हैं  ध्यान करिए यह यात्रा अंतहीन है। परमात्मा अनंत है उसकी कोई सीमा नहीं ये यात्रा भोगोलिक नहीं ये अंतर -मन की यात्रा है। अब ये आप के ऊपर है की आप को कौन सी यात्रा पसंद आती है भौगोलिक या अनंत से अनंत की।

हे मानव यात्रा पर चल,
चला चला चल 
यात्रा ने संस्कृति  का विस्तार किया , 
विज्ञानं और विचार दिया.
तेरी यात्रा से संहार हुआ ,
युद्द हुआ विध्वंस हुआ .
सम्वेदना दी ज्ञान दिया 
बुद्ध दिया बोध  दिया . 
खुद को जाना खुद को माना 
तलाश की अछोर जीवन की ,
यात्रा की विराट प्रकृति की  
मंदिर से माजिद से , 
हर पग से हर डग से 
कुछ मिला कुछ सीखा  ,
इसलिए हे मानुष यात्रा कर ,
यात्रा पर चल ,चला चल .

Friday, April 8, 2011

बसंत में पतझड़

आँखों के कोरो से कुछ गीला- गीला गिरता है.
दिल से भी कुछ रुकता-रुकता झरता है .
कसक सी होती है दिल में , 
बसंत में पतझड़ सा लगता है .
आँखों के कोरो से कुछ गीला- गीला गिरता है .
हर बार कहा हर बार रहा ,
उनसे मेरा जो नाता है 
ना माना मीत मेरा वो सब ,
उसे बंधन भी जकड़न लगता है .
आँखों की कोरो से कुछ गीला- गीला गिरता है .
ना जाने वो प्यार की भाषा ,
ना जाने मन की अभिलाषा ,
कसक सी होती है दिल में ,
शहर अन्जाना लगता है .
आँखों के कोरो से कुछ गीला-गीला गिरता है .
ना समझ सकी ना समझा सकी उनको ,
ये प्यार बेगाना लगता है .
आँखों की कोरो से कुछ गीला-गीला गिरता है .       
      

Monday, April 4, 2011

भष्टाचार के विरुद्ध : दे घुमा के

एक सबसे बड़े गुनाह की कोई सजा नहीं है . भ्रस्टाचार एक एसा गुनाह है जिसमे देश की अदालतों में करीब १७ हजार से ज्यादा मामले लंबित पड़े है . एन मामलो के हल होने की रफ्तार इतनी धीमी है की साल दो साल में एक हजार भ्रष्टलोगो को भी सजा नहीं मिल पति .एन .सी .आर .बी . की तजा रिपोर्ट ये बताती है की आई पीसी की धाराओ के तहत लगभग २९११७ लोगो पर मामले चल रहे है .वर्ष २००९ में इनमे से करीब ३२२८ लोगो के मामले की सुनवाई तो हुयी लेकिन मात्र ९६३ ही दोषी करार दिए गये . एस समय अकेले सी .बी .आई . के पास ९९१० भ्रस्ताचार के मामले लंबित पड़े है .एन मामलो में सबसे ज्यादा १७५९ दिल्ली और १०६२ महारास्ट में है एन आकड़ो का ये मतलब नहीं क़ि अन्य प्रदेश पाकसाफ है बल्कि वहाँ भ्रस्टाचार इतना है क़ि भ्रस्टाचार के मुकद्दमे भी दर्ज नहीं हो पाते .                
                  भ्रस्टाचार में अंकुश लगाने के लिए ये जरुरी ही जाता है क़ि हम भ्रस्टाचार निरोधक कानून १९८८ को बदले क्योकि एस कानून के प्रावधान के तहत मात्र पाँच वर्ष क़ि सजा का प्रावधान है पर इसमे मुजरिम की सम्पति को जब्त करने का कोई प्रावधान नहीं . एक इंटरनेश्नल रिपोर्ट का कहना है कि भारत में सरकारी महकमो में कम करने के लिए कम से कम ५० फीसदी लोगो को अपना वाजिब काम  निकलने  के लिए अधिकारियो को घूस   देनी पडती है .एस कारन भ्रटाचार की सूचि में भारत ८७ वे स्थान पर है पि. आर. सी. का सर्वे यहा बताता है कि भारत नंबर ४ पर एशिया प्रशांत के सबसे भ्रष्ट १६ देशो में है .लगभग ७० लाख करोड़ रूपये जमा है भारत का स्विस बैंक के खातो में ये एस बात का गवाह है कि हमारे देश के तथाकथित बड़े लोग कितने भ्रष्ट है. आज हमें जरूरत है गाँधीवाद कि सच्ची परम्परा के अनरूप आचरण करने की. क्रिकेट की तरह एकजूटता के साथ यह वक्त हम सब के उठ खड़े होने का है .भ्रस्टाचार के खिलाफ . अन्ना हजारे की आपिल पर धयान दीजिए यहाँ वक्त आपके आत्मबलिदान का है .आप एक ,दो दिन या जैसी सुविधा हो ५ अप्रैल से उपवास राखिये ,उपवास के साथ भ्रस्टाचार से देश मुक्त हो भगवान से कहे . प्रधानमन्त्री से अनुरोध कीजिए की जन लोकपाल विधेयक को पारित कराये नहीं तो अगले चुनाव में हम मजबूरन उनकी पार्टी को वोट नहीं देगे .शांत रहा कर अपनी बात कहे . एक बार फिर भ्रस्टाचार से स्वतंत्र होने के लिए इस अगले स्वतंत्रता आन्दोलन में जेल जाने का साहस जुटाए. आप हम सब जिस जुनून की हद से क्रिकेट को प्यार करते है उसी जुनून से भ्रस्टाचार को ख़त्म करने की मुहिम में अन्ना हजारे की टीम का साथ दीजिए .भ्रस्टाचार को ख़त्म करके भ्रष्ट मुक्त समाज का विश्वकप जीतिये दीजिये दे घुमा के .
                                                                                                                                                                                       

Sunday, April 3, 2011

बेटियों को अपने घरों में आने दीजिये

हर बार की जनगणना में शुन्य से छह साल के शिशुओं का लिंग  अनुपात ये बताता  है की हमने कन्या भ्रूण  हत्या रोकने के लिए प्रसव  पूर्व निदान तकनीक अधिनियम (पी .एन .डी.टी. एक्ट) को सख्ती से लागु किया उसके  बावजूद  हम बेटियोको बचा नहीं पाए .सारे   उपाय   कानून बेअसर साबित हुए . आंकड़े बताते  है की देश में प्रति एक हजार लडको पर लडकियों की संख्या सिर्फ ९१४ है.जबकि दस साल पूर्व यहा ९२७ थी .२०११की जनगणना के आंकड़ो के अनुसार पिछली जनगणना की तुलना में शून्य  से छह साल के बच्चो की संख्या घटी  है लेकिन लडको की संख्या बड़ी है . ये आजादी के बाद से सर्वाधिक गिरावट है जो हमारे लिए शर्म की बात है. पंजाब ,हरियाणा में पहले से ही लडकियों की संख्या कम है . एस बार की जनगणना में प्रति हजार पुरुषो पर महिलाये दमन व दीव में ,दादर ओर नगर हवेली में भी लगातार अनुपात कम होता जा रहा है .प्रति हजार पुरषों पर ७७५ महिलाये है .एक दशक पहले ये आंकड़े १००० पुरषों पर ९३३ था जबकि २०११ में १००० पुरषों पर मात्र ९४० महिलाये है . एस बार उतर - प्रदेश में महिलाओं की तादाद ठीक है . २००१ में १००० पुरषों पर ८९६ महिलाये थी आज २०११ में १००० पुरषों पर ९०८ महिलाये है . महिला एवं पुरुष बराबर अनुपात के लिए हमे पी. एन. डी. टी . एक्ट के साथ -साथ लोगो की सोच को बदलना पड़ेगा उन्हें ये समझाना होगा  की एक महिला अधिक जागरूक अधिक कर्मशील एवं अधिक जिम्मेदार होती है वो किसी भी हल में समाज से   अपना तारतम्य बिठा कर घर -परिवार की जिम्मेदारी का  निर्वहन कती है . जरूरत है समाज में रहने वाले सभी उन लोगो को अपनी सोच बदलने की जो लडके को अपना पालनहार समझते है और  लडकी को बोझ आएये नए सिरे से समाज की एस समस्या लिंग अनुपात पर विचार करे .स्त्री ओर पुरुष इश्वर ने इसलिए बनाये है की वे सृष्टि  को चला सके फिर हम क्यों होते है ये तय करने वाले की दोनो में कौन श्रेष्ठ है है और दूसरे का आना ही इस  धरती पर बंद करा दे अगर हम ऐसा   करते है तो खालीपन ,कुछ छुट जाने का एहसास हमेशा इस  धरती पर कायम रहेगा . बेटियों  को अपने घरों में आने दीजिये यकीन मानिये आपके घर ,आपकी ,जिन्दगी खुबसूरत ,व्यवस्थित और  सम्पूर्ण  बन जाएगी .                       
डॉ पवन कुमार मिश्र की ये दो पंक्तियाँ सारे समाज की सोच हो
"कई जनम के सत्कर्मो का जब मुझको वरदान मिला
  परमेश्वर से तब मैंने सीता सी बेटी मांग लिया"