Tuesday, January 30, 2018

घनघोर अंधेरे में

घनघोर अंधेरे में जो दिखती है,
वो उम्मीद है जीवन की

हिंसक आस्थाओं के दौर में प्रार्थनाएं डूब रही है
अन्धकार के शब्द कुत्तों की तरह गुर्राते
भेड़ियों की तरह झपट रहे है
उनकी लार से बहते शब्द
लोग बटोर रहे है उगलने को

जर्जर जीवन के पथ पर पीड़ा के यात्री
टिमटिमाती उम्मीद को देखते है
सौहार्द्र के स्तंभ से क्या कभी किरणें फूटेंगी

उधेड़बुन में फँसा बचपन
अँधेरे  की चौखट पर ठिठका अपनी उँगली से
मद्धिम आलोक का वृत खींचना चाहता है

एक कवि समय की नदी में
कलम का दिया बना कविताओं का दीपदान कर रहा है।
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#यहदेशहैवीरजवानोंका
कैसे -कैसे सपन सँजोय,
टुकड़ा-टुकड़ा गगन समोय।

5 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, दूल्हे का फूफा खिसयाना लगता है ... “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०५ फरवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

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  3. वाह
    बहुत सुंदर सृजन
    सादर

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