Sunday, August 20, 2017

स्वधीनता की तरफ लौटने का समय

स्वतंत्रता का पौधा शहीदों के रक्त से फलता है लेकिन स्वतंत्रत हुए पौधें को स्वाधीन रहने के लिए किस तरह के हवा, पानी की जरुरत पड़ेगी ये विचार अपने आप में स्वतंत्रता के सही अर्थ को परिभाषित करने के लिए एक कदम साबित हो सकता है।

ये विचार अगर हमने स्वतंत्रता के पूर्व ही कर लिया होता तो ज्यादा अच्छा था तब शायद हमें स्वतंत्रता दिवस की रस्म अदायगी की जरुरत ही नहीं होती क्योंकि तब हम सही मायने में स्वतंत्रता को जी रहे होते।

हम स्वतंत्र तो है पर क्या हम स्वाधीन है? ये प्रश्न एक बार सामान्य नागरिक को जो आधा-अधूरा स्वतंत्र है और जो स्वतंत्रता दिवस मनाने की रस्म अदायगी सबसे कम करता है  अचंभित कर सकता है क्योंकि उसके लिए आज भी स्वतंत्रता, स्वाधीनता में कोई अंतर नहीं है।
'स्वतंत्रता' एवं 'स्वाधीनता'  महज़ शब्दों का हेर-फेर नहीं है न एक मतलब है जहां स्वतंत्रता हो वहां स्वाधीनता हो ऐसा जरुरी भी नहीं, लेकिन लोगों ने इन दोनों शब्दों के घालमेल से जीवन और जीने के मायने जरूर बदल लिए है या यूं कहें कि उनके लिए बदल दिए गए है।

1947 के बाद भारत ने लोकतंत्र को अपना कर ये समझा कि अब हम जनता के लिए एक ऐसा देश बना रहे है जिसमे जनता सर्वोपरि होगी और ये गलत भी नहीं था क्योंकि लोकतंत्र का ढांचा जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा की परिभाषा पर टिका हुआ है ये वो परिभाषा है जो लोकतंत्र क्या है बताती है पर वो असल में भी यही है इसके बारे में संदेह है।

हमने सोचा था कि हम एक ऐसे भारत का निर्माण करेंगे जिसमे धर्म, भाषा, जाति सब को लोकतंत्र में समाहित करके राष्ट्र निर्माण में सामुदायिक भावना का विकास करेंगे लेकिन शायद हम ये भूल गये थे की शताब्दियों तक सामंती संस्कारों में पले हम इतने ढल चुके है जो समाज में लोकतान्त्रिक हेतू अपेक्षित प्रयासों की और से मुंह मोड़ कर लोकतांत्रिक गतिविधियों को गड़बड़ी में बदलते रहेंगे या हम में से कुछ लोगों को ऐसी गड़बड़ी में बदलने के लिए बाध्य करते रहेंगे।

असल में इसकी शुरुआत स्वतंत्रता के समय से ही हुई जब स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका निभाने वाले कुछ नायकों ने स्वतंत्रता एवं स्वाधीनता को आलोचनात्मक प्रसंग की तरह लिया और उसे समय-समय पर ख़ारिज किया उन्हें समान मताधिकार का विचार ही बड़ा विचित्र लगता था ऐसा लगना उनके लिए कोई विचित्र बात नहीं थी क्योंकि उनमें से कुछ समाज के ऐसे तबके से थे जो स्वतंत्रता पूर्व शासक था तो कोई शासक का  सलाहकार ऐसे लोगों को लोकतंत्र अवगुण तंत्र लगने लगे ये बड़ी बात नहीं थी। 

ऐसे में लोकतंत्र  के प्रति जो निष्ठा बनी वो इतनी गैरजिम्मेदार थी कि हम राज्य और नागरिक के आपसी संबंधों को पहचानने तथा उनकी मजबूती के लिए उपयुक्त तंत्र खड़ा करने में अक्षम रहे ।

नागरिक सरकार की जिस व्यवस्था के अंतर्गत रहता है वही उसके जीने का अधिकार बन जाती है ये ऐसी बात होती है जो किसी भी अन्य बात से ज्यादा प्रभावित करती है अर्थात धर्म से दर्शन तक ।
हमने लोकतंत्र तो अपनाया लेकिन अपनाते समय हमें अपने बोध का इस्तेमाल जो आधा-अधूरा किया उसने लोकतंत्र को सिर्फ सरकार चुनने के अधिकार का तंत्र बना दिया।

नागरिकों को इस तंत्र में कितनी स्वतंत्रता व कितनी स्वाधीनता मिलती है इसका मंत्र अगर हम समझ लेते तो शायद आज इसके मायने कुछ अलग होते जनता इतने नुकसान में नहीं रहती।

घर लौटने के कई रस्ते है जो एकांत में मुझे अपना हाल सुनाते है थिक नात (कवि एवं बौद्ध भिक्षु)ने सही कहा  है । हमें वास्तविक लोकतंत्र की तरफ लौटना ही होगा सिर्फ मतदान वाला लोकतंत्र नहीं बल्कि ऐसा लोकतंत्र जहां नागरिक ये महसूस करें कि उनके पास एक नागरिक के रूप में सामान अवसर है वो विज्ञान, कला, व्यापार आदि सभी क्षेत्रों में समान रूप से अवसर पा सकते है।

ये क्षेत्र कोई भ्रष्टाचार का दलदल नहीं जिसमे वो डूब जाएंगे उन्हें अब किसी भी क्षेत्र में अपनी योग्यता को सिद्ध करने के लिए किसी गॉडफादर की जरुरत नहीं ये बात एक आशा जागती है तो क्या आशा वापस आने की उम्मीद रखी जानी चाहिए ?

इन सब में एक बात बहुत महत्वपूर्ण है शक्ति का संतुलन हो न शक्ति संचित हो न क्षीण हो ।

सरकार और अन्य संस्थाएं न तो अपनी स्वतंत्रता का दायरा लांघकर नागरिकों की स्वाधीनता और अधिकारों को अवरुद्ध करें  और न ही नागरिक शासन–प्रशासन को अपने कृत्यों से आहत करें ये विचार  लोकतंत्र की स्वाभाविक दुर्बलता को दूर करके एक स्वस्थ लोकतंत्र का निर्माण करेगा तभी स्वतंत्रता, स्वाधीनता की अवधारणा सच साबित होगी।

4 comments:

  1. कल वाइरल हुए उस रोती हुई बच्ची के वीडियो पर सलिल वर्मा जी की बेबाक राय ... उन्हीं के अंदाज़ में ... आज की ब्लॉग बुलेटिन में |

    ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, गुरुदेव ऊप्स गुरुदानव - ब्लॉग बुलेटिन विशेष “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. बहुत सही विश्लेषण है.

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