tag:blogger.com,1999:blog-303805385814959792024-03-13T20:42:10.878+05:30किरण की दुनियाकिरण कोई व्यक्तिवाचक संज्ञा न होकर उन तमाम व्यक्तियों के रोजमर्रा की जद्दोजहद का एक समुच्चय है जिनमे हर समय जीवन सरिता अपनी पूरी ताकत के साथ बहती है। किरण की दुनिया में उन सभी पहलुओं को समेट कर पाठको के समक्ष रखने का प्रयास किया गया है जिससे उनका रोज का सरोकार है। क्योंकि 'किरण' भी उनमे से एक है। Dr Kiran Mishrahttp://www.blogger.com/profile/15153901070894116636noreply@blogger.comBlogger209125tag:blogger.com,1999:blog-30380538581495979.post-87498003043663484872024-02-29T17:52:00.000+05:302024-02-29T17:52:19.661+05:30ब्रह्माण्ड का घोषणा - पत्र एवं अन्य कविताएँ<p> प्रत्यक्ष अस्तित्व की आंतरिक गतिविधियों का परिणाम यह मेरा पहला काव्य- संग्रह है। ब्रह्मांड का घोषणा- पत्र एक संकेत है ऋत को जानने का जिसके माध्यम से हम दैनिक जीवन में नियमबद्ध होते हैं। प्रचलित के अलावा भी एक चलित तत्त्व इस ब्रह्माण्ड में है जिसकी खोज सतत चलती रही उसी पथ पर खड़े होकर मैंने कुछ लिखने का प्रयास किया है, आशा करती हूँ इस लोक रचना की संतृप्ति का सुख आप सब को भी मिलेगा।</p><p><br /></p><div style="text-align: left;">पुस्तक के इतने सुंदर और अर्थयुक्त आवरण पृष्ठ को आज महाष्टमी के दिन लाने के लिए श्री केशव मोहन पांडेय जी का हार्दिक आभार।</div><p><br /></p><p>🙏🙏</p>Dr Kiran Mishrahttp://www.blogger.com/profile/15153901070894116636noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-30380538581495979.post-72433943947801422492023-12-31T12:57:00.001+05:302023-12-31T12:57:58.522+05:30ब्रह्माण्ड का घोषणा पत्र<p> प्रत्यक्ष अस्तित्व की आंतरिक गतिविधियों को समझने के प्रयास में अंतकरण में अनेक अनुभव आते हैं । समझने के प्रयास में अनेक कविताएं स्वतः स्फूर्त प्रकट हो जाती हैं । ऐसी कविताएं हमारे प्रयास का परिणाम नहीं होती है। बल्कि वह भीतर ही भीतर स्वयं रचती हैं । रचनाकार उन्हें सिर्फ अपनी ओर से संवारने के क्रम में कुछ शब्द देता है। शब्दों का आत्मिक संयोजन 'ब्रह्मांड का घोषणा-पत्र एवं अन्य कविताएँ' है। </p>Dr Kiran Mishrahttp://www.blogger.com/profile/15153901070894116636noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-30380538581495979.post-35868228765273491422023-11-29T20:41:00.000+05:302023-11-29T20:41:04.832+05:30कॉसप्लेयर्स<div>मन का अंधकार ले साहित्य का अंधकार दूर करने निकले अपने- अपने विचार को सर्वोत्तम बताते एक मीडिया मंच पर लड़ते धाराओं के साहित्यकार आत्मचेतना और मूल विचार से कोसो दूर सिर्फ लिखे हुए को पुनः लिख कर अभिमान में गरज रहे थे और </div><div>पृथ्वी हँस रही थी</div><div>अपनी पूरी घृणा के साथ</div><div><br /></div><div>प्रकृति से मनुष्य का संबंध बदल गया</div><div>हमारा ही सर्वाधिक सत्य और हमारा आंतरिक सारतत्व ही पृथ्वी को भरपूर जीवन- सौंदर्य दे सकता है। इस बात को हम समझना ही नही चाहते। दुनिया मे किसी भी दर्शन को पढ़ा जाए या किसी कवि या लेखक को मनुष्य और प्रकृति का सर्वोच्च सत्य यही है। </div><div><br /></div><div>द ट्रायम्फ ऑफ लाइफ कविता का आरंभ करते शेली इसी सत्य की बात करते दिखाई देते है। वहीं दूसरी ओर एंगेल्स अपने चेतन स्वरूप जिसे वे idea कहते है को पहचान कर उसकी सर्वजयी शक्ति का उद्घोष करते दिखते है।</div><div><br /></div><div>मीडिया मंच के इस तरह के कार्यक्रम का हासिल क्या होता है यह बताने की जरूरत नही लेकिन कम से कम मीडिया मंच इतना तो करे कि ज्ञान उड़ेलने वाले ज्ञानियों के ज्ञान के ज्ञान को एक बार टटोले तो तब उन्हें मंच दे।</div><div>और आदरणीय मंचीय साहित्यकार आप भी सचेत हो भावी पीढ़ी का मन प्रश्नाकुल है तो आप भी प्रीतिकर तर्क प्रतितर्क करना सीख लीजिए , क्योंकि अब विरूपित तर्क नही चलेगा।</div><div>दर्शन और काव्य की सुदीर्घ परम्परा से सीखने का प्रयास कीजिये। ज्ञान का ज्ञान आपको बेहतर वक्ता बनाएगा। तब आपको सुनने का आनन्द वरीय होगा।</div><div><br /></div><div>साहित्य में सारा भावबोध कवियों, लेखकों का है। विचार के साक्षात्कार के लिए मनुष्य को पहले स्वयं को जीतना होता है तभी उसे विचार के दर्शन होते है।</div><div>अपनी चेतना और अनंत अक्षय विचार में अगर अन्तर नही रखना है तो पहले आत्मचेतना के उपाय करें तथाकथित महान साहित्यकार नही तो आगे से आने वाली पब्लिक वही कहेगी जो मेरे एक मित्र ने प्रश्न के उत्तर में कहा था </div><div><br /></div><div>Everything was a Funny in literary democracy</div><div><br /></div><div>■■■</div><div>#किरणमिश्रा</div>Dr Kiran Mishrahttp://www.blogger.com/profile/15153901070894116636noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-30380538581495979.post-43536701807895395942023-05-25T15:14:00.000+05:302023-05-25T15:14:15.603+05:30उदास मन पर चिपकी हुई चीखों के शव के मानिंद कविताएं -डॉ किरण मिश्रा (बाबरी मस्जिद तथा अन्य कविताएँ) <p>“बाबरी मस्जिद तथा अन्य कविताएँ” अनिल अनलहातु की ऐसी पुस्तक है जिसे हम कालकथा कह सकते है, इसमे रची- बसी उनकी कविताएँ उनके तीखे अनुभव- संघर्ष का दस्तावेज है।उनकी कालकथा अतीत- बोध से शुरू होकर वर्तमान- बोध तक आती है। स्मृति- बिम्ब के रूप में टुकड़े- टुकड़े में आए अतीत कवि के मानवीय पीड़ा से बने लगते है जो गूँगे लोगों की एक सदी की अभिव्यक्ति हैं।अनिल अनलहातु की कविताएँ उनके गहरे सामाजिक चिन्तन को दर्शाती है। उनके जीवन-जगत के साथ सम्बन्धो व कर्तव्यों के सम्बन्ध में किये गये सम्पूर्ण विचार उनकी कविता में गहरे से आते है। कविता में उनका चिन्तन एक सुनिश्चित स्थान या समय पर न होकर यत्र – तत्र बिखरे हुए किरदारों को लेकर है जो समाज के सब से नीचे के पायदान से है।उनकी कविता पढ़ते हुए आप सामाजिक चिन्तन के विकास के विभिन्न चरणों मे पहुंच जाते है। कहीं उनका धार्मिक चिन्तन है तो कहीं दार्शनिक, कहीं अचानक वो मनोवैज्ञानिक दृष्टि से समाज को देखते है तो कहीं उनका भौतिकवादी चिन्तन, उन्हें समाज मे फैले आत्मकेंद्रित दृष्टि में डूबे लोग नज़र आते है। फिर अचानक ही वो सामाजिक - वैज्ञानिक दृष्टि से समाज की समस्याओं का विश्लेषण अपनी कविताओं में करते दिखाई देते है।यहां पर अनायास ही मुझे इंग्लैंड की वरिष्ठ कवियत्री कैथनीन रैन की बात याद आती है कि भारत ही एक ऐसा देश है जहां धर्म की उत्पत्ति के मूल में काव्य है और जहां की संस्कृति और सभ्यता के आधारभूत मूल्यों की रचना ही कवि प्रतिभा के माध्यम से हुआ है ।मुझे लगता है संस्कृति और सभ्यता के खोये हुए मूल्यों की पुनर्स्थापना ही बाबरी मस्जिद तथा अन्य कविताएँ है। भौतिक साधनों की दृष्टि से अक्षम मनुष्य उनकी कविताओं में ऐसा प्राणी है जो समाज के कार्य- व्यापार के समक्ष निरीह है। जिसकी आवाज कहीं गुम है , उस गुम आवाज़ को खोजने की क़वायद ही यह कविताएँ है।अनिल अनलहातु की कविताओं में तर्क प्रधान है । वह अपनी कविताओं में कहीं- कही कार्य कारण संबंधों की स्थापना करते दिखाई देते है। सामाजिक प्रघटनाओं को अपनी सूक्ष्म दृष्टि से देखते और एक नई समाजवैज्ञानिक विचारधारा को लेकर कविता रचते है।</p><p>जब आप 'बाबरी मस्जिद व अन्य कविताएँ' पढ़ना शुरू करते है, तब वह सिर्फ एक कविता की किताब होती है और जब आप पढ़ना समाप्त करते है तब भी शायद वह आपको एक कविता की ही किताब लगे लेकिन अचानक ही आप उसे फिर से पढ़ेंगे और इस बार पढ़ने की प्रक्रिया में आपको ऐसे अनुभव होंगे, ऐसे- ऐसे दृश्यों से आपका सामना होगा कि आप लगातार उन पात्रों के दर्द, बेचैनी में उनके साथ होते है। उनकी कविताओं के पात्रों के कोई नाम न हो, चाहें वो अपनी पहचान के संकट से जूझ रहे है लेकिन यह नाम रहित पात्र कविता से निकलकर आपके पास जब आते है तो बिना कुछ कहे अपने मौन से आपकी शांति, गर्व और आपके मनुष्य होने पर प्रश्नचिन्ह लगाकर आपके 'मैं' को हिलाकर वापस कविता में चले जाते है और पीछे छोड़ जाते है आपके मरे हुए अहंकार को।उनके पात्रों का आप कोई भी नाम रख लीजिए , किसी भी नाम से आवाज दीजिए उन्हें, वो इतिहास से गायब है , अब वो आप के आस- पास है लेकिन यकीन मानिए, आप , हम ,हम सबकी लोलुपता के कारण वो इतिहास से फिर गायब हो जाएंगे और वर्तमान में वहीं पाए जाएंगे जहां आप जाति, गोत्र, पन्थ, मत और मज़हब में स्वयं को सम्पूर्ण मानवता का अविभाज्य अंग मानते है। वो उन बेशर्म परम्पराओं से टकराते दिखेंगे जहां असमानता के तत्व समत्व के मूल तत्व पर हावी हैं। या फिर चुनौती देते दिख जाएंगे ब्राह्मणवादी सोच को ।यह कवि की धृष्टता है ,या है कि उसका अपना संघर्ष कि कवि उन्हें आप के आस- पास से ही आप तक भेजता है। जो इतिहास में नही वे सिर्फ कवि के पास ही जा सकते है।यहां पर एक ध्यान देने की बात और है कि ऐसा नही है कि सिर्फ अनिल अनलहातु ही अपनी कविता में हाशिये में पड़े लोगों के लिए दरवाजा खोलते है, अन्य रचनाकार भी ऐसा करते है लेकिन अनिल अनलहातु की कविता के पात्र उस दरवाजे से आपके दिमाग पर चोट करते है, और तब तक करते है जब तक कि आप आत्मकेंद्रित स्वार्थी दुनिया से निकलकर आपको मनुष्य होने का बोध नही कर देते है और बहुत ही मजबूती से मनुष्य होने और न होने के बीच अपने मूलभूत प्रश्नों के साथ खड़े हो जाते है। कवि कोई इन्द्रजाल नही रचता लेकिन यह कवि की लेखन शैली का कमाल है कि आप उनकी कविताएँ पढ़ते हुए गहरे सम्मोहन में चले जाते है और खुद ही दृष्टा व दृश्य हो जाते हैं।उनकी कविता द्वन्द हैं, जड़- चेतन का द्वैत है, ढेर सारे कालजयी प्रश्न है, ढेर सारी जिज्ञासाएँ हैं। ढेर सारी इच्छाएं हैं। प्रीतिकर कथा है।जीवन सत्य की खोज है। कविता में उठे कवि के प्रश्न भारतीय दर्शन, समाज जीवन और मनुष्य होने का सारभूत तत्व विश्लेषण हैं।</p><p>उनकी कविताएं आत्म रूपान्तरण देती है । आप आम आदमी, ईश्वर, मनुष्य की प्रकृति और सृष्टि, दृष्टि पर उनकी कविता पढ़कर दार्शनिक सवाल खुद से करने लगते है और जिज्ञासु बन आपका मन प्रश्नाकुल बन जाता है। यह अव्याख्येय और अनिर्वचनीय ' सत्य' को भाषाबद्ध करने का कवि का आश्चर्यजनक कविकर्म हुआ है। सत्य प्राप्ति की पीड़ अगर आप मे गहन है तो यह कविता आपके लिए हैं। यह कविताएँ रचनाकार से भी प्राचीन है । यह शून्य से नही उगी बल्कि यह प्रशनाकुल संस्कृति परम्परा से उपजी है।</p><p>उन्हें पढ़ना आकस्मिक ही हुआ लेकिन यह शायद इसलिए भी था क्योंकि दिमाग मे लगातार एक प्रश्न था कि हमारे दिनों में कौन सी ऐसी कविता है जो पाखंडी दुनिया को अपनी चीख के साथ उठने और मंथन करने पर बेबस कर रही हैं। और कविता पढ़कर मुझे बहुत ही विस्मय हुआ और गर्व भी की कवि की कविताएँ समकालीन निर्णयों को चाहें ख़ारिज न भी करें लेकिन युगों के निर्णयों को अपनी दृष्टी से देखने का साहस करती है। बक़ौल उदय प्रकाश अनिल अनलहातु की कविताएँ मुक्तिबोध की कविताओं की पंक्ति में जगह बनाती है। मैं इसमें जोड़ना चाहूँगी और अपनी अपरिवर्तनीय घोषणा करती है। वे खुद से लड़ते- लड़ते लिखते है और लिखते- लिखते लड़ते है बिना किसी संगठित पंथ का राजमार्ग तलाशते चलते है भविष्य घटित करने को।बाहर और भीतर के यथार्थ का अंकन करते अपनी थकान, अकेलेपन, बेबसी, अनपहचानेपन की साक्षी हैं यह कविताएँ इन्हें सिर्फ पढ़ा नही स्मृतियों में भी रखा जाना चाहिए ।</p><p>◆मानवीय पीड़ा का ज़िगुरत—आदिम ज़िन्दगी की आधुनिक हत्या की कहानी है यह कविता</p><p>यह कहने से पहले की लेखक ने यथार्थवादी प्रतिनिधित्व के सिद्धांतों को अपनी कविता में व्यक्त किया है, मैं कविता के शीर्षक ' ज़िगुरत' शब्द का ध्यान दिलाना चाहूँगी। वैसे तो 'ज़िगुरत' का अर्थ कवि ने कविता के अंत मे राजा उर नाम्मू द्वारा निर्मित 'सिन' (चंद्रमा) देवता का मंदिर बताया है लेकिन जैसा कि यथार्थवादी कविता में अनुपस्थिति का महत्व है और भाषा का मौन ही अपनी बात कहता है तो यहां द्रष्टव्य रहे कि दुःख हर बार विध्वंस होता है नये दुख से।कविता में दुःख मूल तत्व है जो भावात्मक घटनाओं की नकारात्मक संयोजकता बनाता है। पूरी कविता में जीवन एक घटना है जो पुनः पुनः प्रेषित होता है। कवि मूर्मु के अप्रत्यक्ष दुःख को प्रत्यक्ष बना पाठकों के सामने लाता है।अनिल अनलहातु अपनी कविता में Noumen की बात करते नज़र आते है। Noumen एक घटना है जो स्वतंत्र रूप से मानव भावना है।'मानवीय पीड़ा का ज़िगुरत' कविता निराश, हताश का हवन कुंड है जो कर्तव्य के इर्द- गिर्द घूमती है यहाँ कर्तव्य वह कर्तव्य है जो मकलू मूर्मु को जन्म जात मिला है या इस वर्ग को मिलता है एक बेबसी के साथ --</p><p>“सिल हुए होठों, खौफजदा बरौनियों</p><p>उदास लंबोतरे चेहरे पर चिपकी</p><p>अवश बेबसी व बेकली के बीच भी</p><p>ज़िन्दगी जीने की गहरी ललक</p><p>(हम विस्मित थे)”</p><p><br /></p><p>मूर्मु की ज़िन्दगी जीने की सभी क्रियाएं एक अंत निर्हित रुदाली है जो वह जन्म लेते ही शुरू करती है अपने मारने तक।मूर्मु के अधिकतम पर ध्यान केंद्रित करता कवि है उसे ग्वाटेमाला से एंडीज तक और दुमका गोड्डा के आदिम जंगलों और घरों के शयन कक्ष तक देखता है।अंतिम दो पंक्तियों में कवि बिम्ब का सामान्यीकरण करता दिखाई पड़ता है --</p><p>उसके होठों पर हँसी देखना</p><p>एक लम्बा और उबाऊ इन्तज़ार है</p><p><br /></p><p>कवि अपनी अर्ध- चेतना में मूर्मु के दुःख उसकी अनुभूति को इतनी गहराई से महसूस करता है कि कहीं कहीं तो अनुभूति कवि के मानसिक धरातल पर हुए विस्फोट के मलबे लगते है जिन के टुकड़े- टुकड़े जोर कर रचनाकर्म हुआ है। कवि के शब्द दृश्य से जुड़ा तीखा और त्वरित असर करने वाला है कि एक गहरी उदासी छोड़ जाता है।हमारे पीड़ित या पीड़ा के प्रति दृष्टिकोण व्यापक रूप से भिन्न हो सकते है, इस बात के अनुसार की इसे कितना परिहार्य या अपरिहार्य, उपयोगी या अनुपयोगी , योग्य या अयोग्य माना जाता है।प्राणियों के जीवन मे दुख कई तरह के होते है। नतीजन, मानव गतिविधि के कई क्षेत्र दुःख के कुछ पहलुओं से संबंधित हैं। इन पहलुओं में पीड़ा की प्रकृति, इसकी प्रक्रिया, इसकी उत्पत्ति और कारण, इसका अर्थ और महत्व, इसके संबंधित व्यक्तिगत, सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवहार इसके उपचार, प्रबंध और उपयोग शामिल हो सकते हैं। लेकिन पीड़ा के अंत में हम सब आनंद की अभीप्सा, प्रेम प्राप्ति की साधना और मुमुक्षु भाव लेकर ही जीवन का दर्शन करना चाहते है।कवि मूर्मु की सारी क्रियाओं को कविता में रेखांकित करता है, भौतिक दुनिया को यह बताने के लिए हम इस त्रासद समय के लिए अपनी जवाबदेही सुनिश्चित कर लें।</p><p><br /></p><p>◆विद्रोही आत्माएँ -- उदास मन पर चिपकी हुई चीखों के शव है यह कविता। </p><p>"केवल एक समझौताहीन यथार्थवाद, जो सच्चाई पर, यानी शोषण, उत्पीड़न पर पर्दा डालने के सभी प्रयासों से जूझेगा। केवल वही शोषण और उत्पीडन की कलाई खोल सकता है।"</p><p>--- थीसिस ऑन ऑर्गनाइजर द वॉचवर्ड "फाइटिंग रियलिज्म</p><p><br /></p><p>कोई उम्मीद बर नही आती</p><p>कोई सूरत नज़र नही आती</p><p>मौत का एक दिन मुअय्यन</p><p>नींद क्यूँ रात भर नहीं आती</p><p><br /></p><p>ज़िन्दगी का नैराश्य समझे बिना कोई लेखक ज़िन्दगी को समझ नही सकता। यह मानवीय विरोधाभास भले ही लगे, असहनीय भी लग सकता है किन्तु इसी विरोधाभास को सहते हुए समाज के मानवीय स्वभाव को पूरी शिद्दत से महसूस कर सकते है।बेशक इसे महसूस करने भर से दुश्वारियां बढ़ सकती है, पर कुछ भी आसाँ कहाँ होता है।दश्त- ए- सुखन में सिर्फ फूल ही नही खिलते कवि यह जनता है इसलिए वह अपनी कलम के उजास से साये का पता लगा ही लेता है।</p><p>जिंदगी अब भारी है शायद खुशहाल हो</p><p> मयस्सर हो शायद आदमी का इसाँ होना</p><p>गाँठे खोलते कवि अनिल अनलहातु अपनी कविता में इतिहास खंगालते हुए इंसानियत को खोजते दिखाई देते है। लेकिन ज़िन्दगी है कि उसकी गाँठें कड़ी और कड़ी होती जाती है।गाँठे जो उन्हें मुक्तिबोध ने, रघुवीर सहाय ने खोलने को दी है।प्रश्न यह है कि क्या हर युग मे यह गाँठें मजबूत और मजबूत होती जाएगी?कवि निराश है, थका है लेकिन हताश नही बेशक वह नही खोल पा रहा है इन गाँठो को। इतना सहज भी तो नही समाज की इन गाँठो को खोलना। ज़िन्दगी की खुशहाली का पता ज़िन्दगी की बर्बर अभिव्यक्ति में ही समाया है।</p><p>अब कवि खुद से ही शर्मसार है</p><p>मैं एक शर्म में जीत हूँ</p><p>एक शर्म को जीता हूँ</p><p>जी..ता नहीं हूँ मैं</p><p>हारा हूँ/ हारता ही रह हूँ</p><p>कभी अपने को हारता देखता है एक शर्मनाक दुर्गन्ध से युक्त समय से हम क्या उम्मीद कर सकते है सिवाय इसके की इस समय का पोस्टमार्टम कर दें।</p><p>कि ज़िन्दगी यही रही है सदियों से </p><p>उदास खाली / निरर्थकता और कमीनेपन से भरी</p><p>हमारी सब से बड़ी असफलता यही है कि हम इंसान नही हो सके सदियाँ स्तब्ध है, इतिहास लड़खड़ाया हुआ है, बर्बरता उच्च आसान पर विराजमान है, साधारण आदमी उसके पैरों तले दबा असहाय है और सृष्टि और सृष्टा उदासीन।जब जुबान खोलने का मतलब मौत हो तब कवि ही है जो ज़िन्दगी का पता देता है।साहित्य के रूप में समाज की जो छाया प्रकट होती है वह लेखक के व्यक्तित्व के माध्यम से ही आती है।साहित्य के निर्माण में इस बीच की कड़ी एवं लेखक के व्यक्तित्व का बहुत महत्व है और इस महत्व की महत्ता इस वजह में है कि एक और इसका सम्बन्ध समाज से है तो दूसरी और साहित्य से। साहित्य रचना की प्रक्रिया में समाज लेखक और साहित्य परस्पर एक दूसरे को इस तरह प्रभावित करते है कि इनमें से प्रत्येक क्रमशः परिवर्तित और विकसित होता रहता है।समाज से लेखक, लेखक से साहित्य और साहित्य से पुनः समाज ।</p><p>--- (मार्क्सिस्ट क्वॉर्टलो मिसलेनिन्न में दैट पैयालाइजिंग एपेरिशन ब्यूटी निबंध)</p><p>'विद्रोही आत्माएँ' कविता में कवि समाज के वजनी नियमों के ऊपर जड़ीभूत दबाव से दवा हुआ लगभग खुद स्पन्दनहीन लेकिन लचर, बेबस लोगों का स्पंदन महसूस करता हुआ बदहवास सा चला जा रहा है खुद को भूलता दिल्ली से उज्जैन, मुक्तिबोध से रघुवीर सहाय तक ,एक शून्य में, शून्य से निकल कर दूसरे शून्य तक, अनन्य से न्याय तक, शोषित से शोषक तक, संघर्ष से शांति तक, दुख से सुख तक, अशुभ से शुभ तक।अब कवि बदल रहा है-</p><p>टटोलता हूँ खाँगालता हूँ अपने आप को</p><p>और पाता हूँ कि मैं वो नही हूँ</p><p>मैं वो नही रहा.... नही रहा वह</p><p>साहित्यकार जीवन संग्राम के योद्धा होता है तटस्थ दर्शक नही। बदलना उसकी नियति है इंसान होने के लिए और अन्य को इंसान बनाने के लिए।</p><p>मैं मुक्तिबोध का 'सफल' उर शिष्य होना चाहता हूँ।</p><p>एक चाहत के साथ जीता कवि मुक्तिबोध की विचारधारा को खोज निकलना चाहता है ताकि जीवन के प्रति निष्ठा न डिगे संवेदना का उत्ताप बना रहे और वो समाज के मुखौटा को एक एक कार नोचता जाए।किसी भी रचनाकार की अभिव्यक्ति उसके अंतर्मन की खामोशी में दबी होती है , जब वह खामोशी को तोड़ता है तभी फ्रायड के शब्दों में पौ फटती है।</p><p>सारी ज़िन्दगी एक ज़लालत गर्क है</p><p>कि धरती का एक इंच, एक कोना नही छोड़ा</p><p>जहाँ तनकर खड़ा हो सकूँ और</p><p>एक बच्चे की मासूम मुस्कराहट जज़्ब कर सकूँ</p><p>जब एक गहरी ख़ामोशी पर्त्त- दर - पर्त्त कवि की चेतना में जमती है तब एक चिंगारी सी पाठक के सीने में अटक जाती है। ज़लालत भरे इस समय मे हाशिए पर पड़ा हुआ आदमी, राजनीति में मिली हुई रंगनीति, समाजवाद में मिला हुआ पूँजीवाद को देख निराश हो खुद से भी यही कहता दिखाई देता है।कवि आवाज़ है आम आदमी की।रक्त से सनी इस कविता में आतंक में लिपटा समाज, राजनीति, संस्कृति, अमानवीय तत्व, हिंसा, जघन्य अपराध दिखाई देता है।कवि जो कभी(मुक्तिबोध है तो कभी रामदास) जनता है कि हर युग मे ऐसे जघन्य समय का पर्दाफ़ाश करते हुए ' डोमजी उस्ताद' द्वारा मारा जाना तय है।डोमजी उस्ताद व्यक्ति नही प्रतीक है उस प्रकृति, उस स्वभाव, उस आन्तरिक प्ररेणा की जो आदिम काल से ज्यों की त्यों है। उनकी पहचान कठिन नही उनका विरोध ही कठिन है।सामाजिक यथार्थ की सच्ची पकड़ तथा मानवता के प्रति अदम्य विश्वास की व्यथा है कविता । कवि पीड़ित आत्माओं के नष्टप्राय शक्तियों के समुच्च को अपने अंदर समेट खुद को तिल- तिल कर मरते हुए जीने को मजबूर है।विद्रोही आत्माओं का रामदास या मुक्तिबोध का ब्रह्मराक्षक, परसाई की चीख हो या हो कि आम आदमी, सभी पीड़ा के जंगल मे जलते हुए अपने ही धुएं से धुआँ- धुआँ होते मानवीयता, प्रेम,उल्लास,उमंग की घटा के इंतज़ार में बैठे है।</p><p><br /></p><p>गुलज़ार ने सही ही कहा है</p><p>आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने है...</p><p>इन पुराने मरासिम को एक कवि ही होठों की हँसी से रूबरू करा सकता है। उम्मीद तो यही की जानी चाहिए।</p><p><br /></p><p>◆विन्सेन्ट वैनगॉग – प्रकृति का चितेरा</p><p>अलविदा उसने कहा </p><p>और वो चला गया</p><p>अलविदा खुद अपने साए को जब कहना पड़े तो समझ लेना चाहिए कि ज़िंदगी में अब अपना हमनवा कोई नही है। हमारे युग का सत्य जिसे जानना मानो अपने हाथों अपना कलेजा चीर देना। लेकिन सत्य को नकारे कैसे ? चलो नकार भी दें तो भविष्य तो कवि को कलम पकड़ा कर कहेगा लिखो कि तुम चुप्प क्यों हो। चुप्पी ज़िंदगी का अदृश्य लिहाफ़ है जिसे ओढ़कर ज़िंदगी में लौटा तो जा सकता है, किन्तु ज़िंदगी को लौटाया नही जा सकता।कवि कहता है कि विद्रूपताओं के विरुद्ध अनवरत अंतहीन संघर्ष की अंत: प्रेरणा से रची जाती है कविताएं । ह्रदय को दहकाकर लावा बना कर लिखता है कवि वैनगॉग पर। अब भाव लावा है ।शब्द उभर रहें है। एक डच इंप्रेशनिष्ट चित्रकार विंसेंट वैनगॉग के लिए।</p><p>कवि अनिल अनलहतु कविता रचते है कि मानो ज़िंदगी का सच रचते है।</p><p><br /></p><p>“वैनगॉग को हम नवा मिल गया</p><p>बेबसी अब मुकद्दर नही</p><p>खौफ़ ऐसा है कि कोई शख़्स कुछ कहता नही</p><p>जाने किस तुफ़ान के सब मुंतशिर हैं।‘</p><p><br /></p><p>कवि हर खौफ़ को लांघ जाता है।</p><p><br /></p><p>“वहाँ उस और खेत की मेड़ों पर</p><p>कौए मंडरा रहे,</p><p>कैनवास के अधूरे चित्र</p><p>खून के कुछ छीटें पड़े हुए थे;</p><p>पता नहीं जीवन की किन स्थितियों का</p><p>चित्रण करते वह किस जंगल से</p><p>होकर गुज़रा कि...”</p><p><br /></p><p>ऐसे ही लोग हमारे बीच से अलगाव का शिकार होकर गुज़र जाते है और समाज तसल्ली के साथ उन्हें जाता देखता है। समाज के इस क्रूर कठोर रवैया को नज़रंदाज़ करते हम किसी की मृत्यु जो आत्महत्या है सजग नही होते।</p><p>सभ्यता की प्रगति की एक ही निशानी है कि समय समय पर आदमी ने हत्या के प्रति उदासीनता दिखाई है।तभी तो ज़िंदगी की बर्बर अभिव्यक्ति का फ़लसफ़ा लिखा गया।</p><p>किसी व्यक्ति की चेतना यानी इच्छा या कल्पना का चरित्र जो भी हो सामाजिक अस्तित्व लोगों के साथ उनके संबंधों और जीवित रहने की सुविधा देने वाली चीजों से वातानुकूलित होता है,जो मूल रूप से दूसरे के साथ सहयोग पर निर्भर होता है। लेकिन हम मनुष्य तो अलगाव के लिए ही जैसे बना है तभी तो हम महान चित्रकार, कवि को खो देते है।</p><p>किसी को उसकी आवश्यक प्रकृति से अलग करना फिर उसके जीवन में अर्थ की अनुपस्थिति, आत्मपूर्ति के अवसर के बिना जीने के लिए मजबूर करना उसको उसकी वास्तविकता से दूर करता समाज हत्यारा है। मार्क्स हो, गोरख हो,राजकमल हो ये तो सिर्फ नाम है असल में जो आज के दौर में जो मनुष्य होना चाहते है वह तो अधूरी रचना मात्र है क्योंकि उन्हें जीवन और मैं के साथ जीने ही नही दिया जाता। समाज तो चेतना रखता ही नही। जड़विहीन समाज से हम उम्मीद भी क्या रख सकते है। कभी व्यक्ति और समाज की शक्तियों के बीच एकात्मक प्रति के सेतु थे। व्यक्ति और समाज परस्पर पूरक थे इसलिए जीने की जिजीविषा भी थी। मार्ग के प्रतिबन्ध नहीं थे। </p><p><br /></p><p><br /></p><p>नथिंग केन इवाल्व व्हिच इज नॉट इनवाल्ड</p><p><br /></p><p>चित्रकार लड़ रहा है अपने चित्र के ज़रिए और कवि अपनी लेखनी के</p><p>रियालिज्म ब्रेटोल्ट ब्रेष्ट लिखते है ; "लेखन के लिए लड़ो! जीवन को बोलने दो।</p><p>समाज की विद्रूपताओं से ही लेखनी बद्ध होकर मुखर होती है। पर डर इस बात का है कि कवि की क्रांति दमन का मुखौटा लगाकर कहीं आम आदमी के ही खिलाफ़ न खड़ी हो जाए। और एक बार फिर वैनगॉग</p><p>न मारा जाए।क्योंकि संस्कृति राजनीति के साथ स्थाई भले ही संबंध न बनाएं लेकिन आंशिक समझौते के साथ, साथ साथ खड़ी तो हो ही जाती है। </p><p>सत्य की विजय मात्र सुभाषित है।</p><p><br /></p><p>“उसने "आलुखोरों"1 व "सिएनों"1 के बीच</p><p>अपने वसंत गवाएं थें;</p><p>उसकी रातें "नाईट कैफे"1 की टूटी उजड़ी</p><p>वीरान ख़ामोशी में गुजरी थीं,</p><p>अपने लाश पर मंडराते कौओं को वह</p><p>"गेहूँ के खेत"1 में देख चुका था</p><p>और "तारों भरी रात"1 में सबसे ज़्यादा</p><p>अपने-आप से डरता था।“</p><p><br /></p><p>तभी तो पूरा जीवन अपनी कला में गॉग जैसे चित्रकार अपनी चरम पीड़ा में विघटन का विरोध करने के लिए, लोगों को संगठित करने के लिए गहन प्रयास करते है और मर जाते है। गेहूं न केवल लोगों के भरण पोषण का प्राथमिक रूप है बल्कि मानव जीवन के पकने का भी प्रतीक है। गॉग इसके ज़रिए एक ईमानदार, शारीरिक श्रम का भी प्रतिनिधित्व करते अपनी पेंटिंग में दिखाई देते है।</p><p>एक कवि हो या चित्रकार या हो मूर्तिकार सिर्फ सौंदर्य बोध की कला ही नही रचता वह यथार्थवाद को भी रचता है । इसलिए गॉग गेहूं के खेत की चमकदार गुणवत्ता गति को दर्शाते है। </p><p>गेहूं की बालियों से चमकदार जीवन पर कौए रूपी अशांति जब उड़ती है तब जीवन बेतरतीब हो कर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।</p><p>प्रकृति चाहें कितनी ही सुंदर क्यों न हो मनुष्यता की खुशबू जैसे ही ख़त्म होती है तब ज़िंदगी में रहा जाने का कोई रास्ता ही नही बचता।</p><p><br /></p><p>“वह अपने ही आत्म-चित्रों (सेल्फ-पोट्रेट्स) से होकर</p><p>गुजरता रहा हर बार, बार–बार,</p><p>जिस क्षण जीवन को बचाने की</p><p>अंतिम आकुलता में</p><p>मारी थी गोली उसने वैन्गाग को,</p><p>ठीक उसी क्षण</p><p>विएना की किसी बदनाम गली के</p><p>आखिरी छोर पर</p><p>एक व्यभिचारिणी के गर्भ में</p><p>चीखा था हिटलर।“</p><p><br /></p><p>प्रत्येक पथ मानवीय नही होता। हम न जाने कितने पथ का अनुकरण करते है। कभी रास्ते अहंकारी राजमार्ग बन जाते है तो कभी विनम्र पगडंडी। लेकिन हर बार या यूं कहें की बार बार हमें अपने आत्म तत्व की ही तरफ लौटते है । यही एक जीवनशक्ति, वाईटल फोर्स ही "संभावनाओं" को सम्भवन और चरम तक ले जाता है। एक कवि इस आत्म तत्व से पहुंचता है हर दर्द ,दुख तक।</p><p>लेकिन ऐसा क्यों होता है जबकि हम में से कुछ लोग इस तत्व को नकार देते है और खड़े हो जाते है पूरे मानवता के विरुद्ध। उनके नाम कोई भी हो सकते है लेकिन सत्य तक पहुंचाने का कवि का विश्वास वनपंथो, अरण्यों में छिपे सत्य को खोज कर समाज के सामने ले ही आता है। </p><p> </p><p>“बहुत दिनों तक वह एक शून्य पर</p><p>न्यूटन की सोच मुद्रा में</p><p>बैठा सोचता रहा</p><p>जीवन के धुंध और धुंधलके में आँखे गड़ाए,</p><p>और जब उसने पाया कि</p><p>सारी दुनिया ही</p><p>अंधेरे से होकर अंधेरे तक</p><p>जाती है</p><p>तो वह शुन्य को उल्टा कर</p><p>उसके भीतर घुस गया।“</p><p><br /></p><p>आदमी की पीड़ा को शब्द देना बड़ा मुश्किल है । उसके लिए शून्य से शुरू करके धीरे धीरे मनुष्य हुआ जाता है । इस महान सत्य को कवि अनिल अनलहतु ही समझ सकते है ।</p><p>एक रहस्मयी आत्मा की चाहत लिए कवि अनलहतु खोज निकलाते है गॉग जैसे लोग, जो सिर्फ मनुष्य थे । उनकी गलती मनुष्य होना थी। </p><p>कवि की जीवन के प्रति निष्ठा न डिगे, संवेदना का उत्ताप बना रहे इसलिए अपने अंतर्मन की अभिव्यक्ति में उन सभी चीखों को शामिल करता है जो क्षणिक सुख के लिए ऊंटों की पीठ से फिसल कर गेहूं के खेत में मृत्य पाई गई।</p><p><br /></p><p>“चीख पड़ता हूँ मैं एकबारगी</p><p>की समाज के माथे</p><p>और आदमी के चेहरे के नकाब के पीछे</p><p>जो छिपा बैठा है</p><p>निकालो उसे, बाहर करो,</p><p>कौन है वह</p><p>जो छोटे-छोटे बच्चों को</p><p>ऊँटों की पीठ से बांधता है?</p><p>इस शताब्दी के सबसे बड़े कवि को</p><p>दिल्ली की अँधेरी कोठरियों में ढकेलता</p><p>सिजोफ्रेनिया तक ले जाता है,”</p><p><br /></p><p>जिंदगी के करवा में मौत की ठिठोली एक दम नही होती। निर्माण, उच्चाटन और श्रेय की परिभाषा अलगाव का कारण बनती है। यही सिजोफ्रेनिया तक ले जाती है। यही राजकमल को गंजेडी बनाती है । यही वैन गॉग को आत्महत्या करने पर मजबूर करती है।</p><p>कवि एक और मौत का साक्षी बना उसके साथ साथ अंतिम गंतव्य तक जा रहा है, और मैं जा रही हूं साक्ष्य इकठ्ठा करने क़ब्र के मुहाने पर जिन्हे कवि वहाँ छोड़ आया है।</p><p>आज एक बार फिर 29 जुलाई है और यह है, डच चित्रकार वॉन गॉग जो कहा रहा है शुक्रियां कवि और उतर रहा है अपनी अंतिम पेंटिंग के साथ क़ब्र में ।</p><p>और अंत में यह कविता न जिंदगी का मंत्र है न कोई आख्यान न ही पीड़ा का दस्तावेज बल्कि आदमी की जीने की चाहत की मासूम अभिव्यक्ति है और श्रद्धांजलि है उन तमाम रचनात्मक कार्य करने वाले लोगों के लिए जिन्हें समाज ने उनके मनुष्य होने की सज़ा दी।</p><p><br /></p><p> बक़ौल</p><p> कैफ़ी आज़मी</p><p>रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई</p><p>तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई</p><p><br /></p><p>निष्कर्ष</p><p> वैदिक वाड्मय का कहना है कि जो ज्ञान अथवा अनुभाव अन्तर्मन की गुहा में निहित है, वही शब्द प्रतीक के माध्यम से मूर्तरूप धारण कर लेता है।</p><p>Transcendental consciousness is an impersonal spontaneity.</p><p>ज्यां-पाल सार्त्र ने इसे निर्वेयक्तिक चेतना का सार्वभौम स्पंदन यूँ ही नही कहा क्योंकि इस प्रकार के प्रकटीकरण से ही व्यक्तिगत संवेदना के परे उसमे एक सर्वजनीनता आ जाती है।"बाबरी मस्जिद तथा अन्य कविताएँ" की कविता रचनात्मक आवेश की ऐसी चित दशा की संकेत है जो कवि की उंगली पकड़कर शब्द रूप में स्फुरित हो उठी है।</p><p>The linguistic sign unites, not a thing and a name but concept and a sound image.</p><p>एक भाषागत शब्द वास्तव में किसी वस्तु को उठाकर नही रखता बल्कि विचार और बिम्ब को जोड़ देते है।</p><p>कवि अनिल अनलहतु आंतरिक संघर्ष और बाह्य संघर्ष के बीच द्वंद्वात्मक भौतिकवादी के यथार्थ बोध से ज्ञानात्मक धारा में डूबते है, और एक फैंटेसी से रचते चले जाते है। लेकिन यह फैंटेसी वह है जोकवि के काव्य- बोध को सघन शिल्प, संवेदना में रचा बसा कर उद्वलित करता है। अनिल अनलहतु का शिल्पविधान बहुत ही मौलिक है जो जादू से जगता है।विरल कवि दृष्टि के कारण घटित हुए जीवन का उत्कृष्ट अनुभव अनिल अनलहतु करते हुए भावनात्मक अंतर्द्वंद के बहुत बारीक व मर्मस्पर्शी चित्र खिचते है।कवि ने मुक्त छंद की कविताओं में भाषाशैली, काव्यभाषा, बिंब, प्रतीक, अलंकार का बेहतरीन चित्रण किया है।भारतीय जीवन शैली की त्रासदी पीड़ा और सामाजिक तनाव को फैंटेसी के द्वारा यथार्थ का चित्रण किया है।प्रतीकों द्वारा कथ्य को स्पष्ट तो कहीं- कहीं रहस्यात्मक व काव्य शिल्प को जीवंत बनाया है।</p><p>निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि वर्तमान समय मे जबकि यथार्थवादी विचारशीलता की प्रासंगिकता लगातार बढ़ रही है ऐसे में कवि अनिल अनलहतु की कविता का मूल्यांकन बेहद जरूरी है। वह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि कवि ने समाज मे मुख्य धारा से कटे एवं साधारण भारतीय समाज के तबके को अपनी कविता में महत्व दिया है।"बाबरी मस्जिद तथा अन्य कविताएँ" का पुनः पुनः पाठ, होना चाहिए यह कहना जरूरी है लेकिन उससे भी बेहद जरूरी है कि कवि का कथ्य या संदेश तो स्पष्ट है लेकिन कविताओं की बनावट बेहद जटिल जो आम पाठकों को कम समझ मे आती है। कवि को अपनी इस दुरूह लेखन शैली पर ध्यान देना चाहिए ताकि आम पाठक भी उनकी कविता को समझ सके।</p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p>Dr Kiran Mishrahttp://www.blogger.com/profile/15153901070894116636noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-30380538581495979.post-13230494032174386722023-03-12T19:29:00.000+05:302023-03-12T19:29:50.988+05:30पानी का पहरुह -- अनुपम मिश्र <p>जीवन मुट्ठी की रेत की तरह फिसलता है। पल- पल निकलते लम्हें ज़िन्दगीं की तलाश करते है।समय की चाल बेअसर हो आगे सरकती रहती है।शैने- शैने जीवन यूँ ही निकल जाता है, निष्प्रयोजन।</p><p>हमारी कामनाओं का आकाश तो हमेशा खुला रहता है लेकिन कर्मों और विचारों की पगडंडिया बंद रहती है।टूटे मन और खंडित व्यक्तित्व की इस भीड़ में लेकिन कुछ लोग ऐसे होते है जो न सिर्फ अपने बारे में बल्कि पूरे समाज के बारे में जीवन के बारे में भी सोचते है और ऐसे जीते है जो पानी पर भी अपनी कहानी लिख जाते है।</p><p>जी हां मैं बात कर रही हूँ, भारतीय गाँधीवादी, लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद, Ted व्यक्ता व जल संरक्षणवादी अनुपम मिश्र की।</p><p><br /></p><p>"भाषा लोगों को तो आपस मे जोड़ती ही है, यह किसी व्यक्ति को उसके परिवेश से भी जोड़ती है। अपनी भाषा से लबालब भरे समाज मे पानी की कमी नहीं हो सकती और न ही ऐसा समाज पर्यावरण को लेकर निष्ठुर हो सकता है। इसलिए पर्यावरण की बेहतरी के लिए काम करने वाले लोगों को अपनी भाषाओं के प्रति संजीदा होना पड़ेगा। अपनी भाषाओं को बचाए रखने, मान- सम्मान बख़्शने के लिए आगे आना होगा। यदि भाषाएं बची रहेंगी तो हम अपने परिवेश से जुड़े रहेंगे और पर्यावरण के संरक्षण का काम अपने आप आगे बढ़ेगा।" -- अनुपम मिश्र</p><p><br /></p><p>पर्यावरण के प्रश्न को पारंपरिक दृष्टि से निकाल कर उसमें एक नये विचार का समावेश करना और उसे भाषा से जोड़ने की अनुपम दृष्टि "अनुपम मिश्र" जैसे पर्यावरणविद की ही हो सकती है। तकनीकी साँचो से सुलझा कर स्वभाषा के साथ जोड़ने की कवायद कोई पर्यावरणविद कैसे कर सकता है जब तक उसमें साहित्य की लोकभाषा की समझ न हो।</p><p>इस बात पर कितना आश्चर्य होता है न कि लोकभाषा हमारे बीच से कितनी तेजी से विस्मृत हो रही है। शायद आज के समय ही ऐसा है जो हर चीज को विस्मृत करता चला जा रहा है , तब भाषा को बचा कर पानी को बचाने की बात एक पर्यावरणविद ही कर सकता है या कोई छिपा साहित्यकार।</p><p>यह जानने के लिए की आख़िर अनुपम मिश्र ने क्यों, कैसे भाषा को पानी से जोड़ा हमें उनके बारे में जानना होगा।</p><p>अनुपम मिश्र का जन्म महाराष्ट्र के वर्धा में श्रीमती सरला मिश्रा और प्रसिद्ध हिन्दी कवि भवानी प्रसाद मिश्र के यहाँ सन 1948 में हुआ था। हिन्दी के कवि के यहाँ जन्म लेना ही उन्हें भाषा के पास ले लाया। एक लेख में अनुपम मिश्र ने बताया कि उनके पिता घर पर कभी भी अंग्रेजी का प्रयोग नही करते थे। शायद यही कारण रहा होगा कि उन्होंने कभी लोक भाषा एवं हिन्दी भाषा का साथ नही छोड़ा।</p><p>सन १९६८ में संस्कृत में स्नातकोत्तर उपाधि दिल्ली विश्वविद्यालय से लेने के बाद अनुपम मिश्र दिल्ली स्थित गाँधी शांति प्रतिष्ठान से जुड़ गए। संस्थान के मंत्री राधाकृष्ण के कहने पर एक चिट्ठी लेकर बीकानेर सिद्धराज ढ़डढ़ा जी के पास गए। वहाँ जाकर अनुपम जी ने पहली बार बरसात के पानी को जमा किया हुआ देखा, जो उनके लिए बहुत ही आश्चर्य का विषय था। पहला तो यह कि बरसात का पानी इकठ्ठा करने की जरूरत को देखकर यानि कि पानी की इतनी असुविधा और दूसरा की पानी जमा करने का तरीक़ा जो बहुत ही प्राचीन था। उन्होंने एक कुंड ( टांका)में जो घर के आंगन में स्थित था और जिसमें बरसात का पानी लगभग एक साल के लिए इकठ्टा किया गया था, उसे देखा तो जाना कि पानी की किल्लत और उसे सहेजना क्यों जरूरी है। </p><p>मरुभूमि में पानी का संग्रह उन्होंने क्या देखा उनका जो आंतरिक रूपांतर हुआ उससे उनकी ज़िन्दगीं ही बदल गई। इसी घटना के बाद अनुपम मिश्र पानी और पानी अनुपम मिश्र दोनों ही एक दूसरे के पर्याय बन गये।</p><p>अनुपम मिश्र इस घटना के बाद ही पर्यावरण संरक्षण के प्रति सचेत हो गये और उन्होंने इस और कार्य की भी शुरुआत कर दी जो उनकी मृत्यु तक चलती रही।</p><p>यह वह समय था जब देश मे पर्यावरण रक्षा का कोई विभाग नही खुला था। सरकार और जनता का शायद ही इस विषय पर ध्यान जाता हो।लेकिन अनुपम मिश्र पर्यावरण- संरक्षण के मुद्दे पर बहुत ही गंभीर थे, और निरन्तर जनचेतना और सरकार को जागरूक करने में लगे हुए थे।</p><p>अनुपम मिश्र लगातार बिना सरकारी मदद के पर्यावरण पर पूरी तल्लीनता से कार्य कर थे। जैसे सूखाग्रस्त अलवर में जल संरक्षण का काम , सूख चुकी अखुरी नदी का पुनर्जीवन। इसी तरह उत्तराखण्ड और राजिस्थान के लापोड़िया में परंपरागत जल स्रोतों को पुनर्जीवन, बाढ़ के पानी के प्रबंधन और तालाबों द्वारा उसके संरक्षण की युक्ति के विकास का कार्य भी किया है। तरुण भारत संघ के अध्यक्ष रह कर उनके पानी के लिए किये गए कार्य भी अद्वितीय है।उनके काम को देखें तो उन्होंने पर्यावरण पर क़ाबिले तारीफ़ काम किया है।</p><p>अद्भुत, अतुलनीय, अनोखा, अप्रतिम, बेमिसाल, अनुठा, अपूर्व, बेजोड़ उनके नाम के समानार्थी उनके व्यक्तित्व को दर्शाते हैं। सोये, ऊबे, उदासीन समाज मे लुप्त होते पानी के प्रति चेतना जागृत करने का काम कोई अनुपम ह्रदय वाला ही कर सकता है। उनकी हर कोशिश सिर्फ पर्यावरण के लिए ही थी। वह पानी के लिए ही अपनी कोशिश के जरिए पहचाने गये। उनकी सबसे बड़ी बात यह रही कि उन्होंने ऐसे लोग तैयार किये जो बिना किसी शौर शराबे के अपने - अपने अंचलों में, समुदाय के बीच उनकी आवाज बन कर पानी की पहचान बन कर काम मे लगे है।</p><p>वह खुद पर्यावरण के किसी एक कार्य तक सीमित नही रहे। उन्होंने न सिर्फ पानी के संरक्षण का कार्य किया बल्कि बाढ़ जैसी भयावह समस्या का हल बताया। उनका पर्यावरण को देखने व समाधान का तरीक़ा बिल्कुल ही अलहदा था। उन्होंने जल संकट का समाधान ऐसे रूप में प्रस्तुत किया कि जल संकट समाधान विश्वसनीय व कम लागत वाला लगा।</p><p>अनुपम मिश्र हर बार कहते थे कि पर्यावरण की समस्याओं का समाधान उसका हल हमारे पास सदियों से हमारे लोक में है। बस हमें इतना भर करना है कि हम उन बिसार दिये को पुनः याद करें और उन्हें थोड़ा सा झाड़- पोछ कर अपना लें। उनका कहना था कि मुश्किल यह है कि लोक के यह तरीक़े हमारी कुंजी थे , हम ने उस कुंजी को दूर फेंक दिया है अब पर्यावरण का सुधार हो तो कैसे ?</p><p>अनुपम मिश्र ने उस कुंजी को न सिर्फ खोजा बल्कि उससे पर्यावरण को खोला भी। उन्होंने ऐसे सभी लोक कार्य जो जल को संरक्षित करते है, उस पर कार्य किया। उनका कहना था कि जीवन पांच महाभूत से बना है अगर उस पर संकट आएगा तो सामाजिक, आर्थिक, ऐतिहासिक संकट भी उठ खड़े होंगे।इसलिए जरूरी है कि हम पांच महाभूतों की बेहतरी के लिए कार्य करें।</p><p>मध्यकालीन भारत मे जल व्यवस्था का विश्वकोश जो अनुपम मिश्रा ने तैयार किया था। जिसमें जल संग्रह के भूले- बिसरे तरीक़ों को ही नही पुनर्जीवित किया बल्कि अप्रचलित हो चुके शब्दों को भी पुनर्जीवित किया। अपनी अनुसंधान प्रक्रिया में उन्होंने प्राचीन भारत की जाति व्यवस्था उसके आर्थिक आधार के ढांचे का भी प्रामाणिक आधार खड़ा किया।</p><p>किसी भी कार्यक्षेत्र में कार्य करना बहुत ही महत्वपूर्ण है लेकिन उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है उस कार्य को ही जीवन मे उतार लेना लेकिन शायद उससे भी बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है दूसरों को अपने कार्य से इस कदर बदल देना की वह एक परम्परा बन जाए।</p><p>बस यही अनुपम मिश्र ने पर्यावरण पर किया, जो उन्हें दूसरे से जुदा करता था। उन्होंने भाषा और साहित्य के साथ पर्यावरण को तो जोड़ा ही उन्होंने खुद को प्राचीन लुप्त पर्यावरण परम्परा से खुद को जोड़ा कर इतिहास रच दिया।</p><p><br /></p><p><br /></p><p>एक बानगी देखिए -- "आज भी खरे है तालाब" </p><p>तालाब निर्माण करने वाली अनेकानेक जातियों में से एक है – गजधर. गजधर वास्तुकार थे. गांव-समाज हो या नगर-समाज, उनके नवनिर्माण की, रख-रखाव की जिम्मेदारी गजधर निभाते थे. नगर नियोजन से लेकर छोटे से छोटे निर्माण के काम गजधर के कंधों पर टिके थे. वे योजना बनाते थे, कुल काम की लागत निकालते थे, काम में लगने वाली सारी सामग्री जुटाते थे और इस सबके बदले वे अपने जजमान से ऐसा कुछ नहीं मांग बैठते थे जो वे दे न पाएं. लोग भी ऐसे थे कि उनसे जो कुछ बनता, वे गजधर को भेंट कर देते. काम पूरा होने पर पारिश्रमिक के अलावा गजधर को सम्मान भी मिलता था. सरोपा भेंट करना अब शायद सिर्फ सिख परंपरा में ही बचा है पर अभी कुछ ही पहले तक राजस्थान में गजधर को गृहस्थ की ओर से बड़े आदर के साथ सरोपा भेंट किया जाता रहा है. पगड़ी बांधने के अलावा चांदी और कभी सोने के बटन भी भेंट दिए जाते थे. जमीन भी उनके नाम की जाती थी. पगड़ी पहनाए जाने के बाद गजधर अपने साथ काम करने वाली टोली के कुछ और लोगों का नाम बताते थे, उन्हें भी पारिश्रमिक के अलावा यथाशक्ति कुछ न कुछ भेंट दी जाती थी. (पृ. १८, आ.ख.ता.) </p><p>"आज भी खरे है तालाब" हमारी लुप्त होती जल सम्पदा को दर्शाती पुस्तक है। जो कहीं न कहीं हमें इस भाव से भारती है कि हमारी लोक संस्कृति बेहद समृद्ध थी। इस पुस्तक में जलाशयों का ज्ञान ही नही बल्कि जिन्हें जलाशयों ज्ञान था उनकी लोक संस्कृति, अंधविश्वास, लोक मान्यताएं, लोक साधनाएं, मेले- ठेले ( जो अधिकाशतः मंदिर, तालाब, नदी आदि के पास लगते थे ) लोक विश्वास, जातियां, मिथक, खानपान, प्रेम, विवाह, न्याय, अन्याय इसमें संदर्भित है।</p><p>असल मे भारत मे लोक- मान्यताएं ही ऐसी है जिसमें कोई भी कार्य चाहें वह तालाब बनाने का हो या कुआँ खोदने का उसमें हमारे आपसी संबंध, खानपान, उत्सव, शामिल हो जाते है। इसे हम आज भी छत ढलते समय देख सकते है।</p><p>अनुपम मिश्र ने पर्यावरण को साहित्य में भी समेटा है जिसमें पुस्तक हैं--</p><p>◆राजिस्थान की रजत बूँदे</p><p>◆साफ माथे का समाज</p><p>◆ आज भी खरे है तालाब</p><p><br /></p><p>"आज भी खरे है तालाब ब्रेन लिपि सहित तेरह भाषा मे प्रकाशित हुई है। इसकी एक लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं।</p><p><br /></p><p>पुरुस्कार और सम्मान --</p><p>अनुपम मिश्र को २००९ में टेड ( टेक्नोलॉजी एंटरटेनमेंट एंड डिजाइन द्वारा आयोजित एक सम्मेलन को संबोधित किया था।)</p><p>"आज भी खरे हैं तालाब" के लिए उन्हें २००११ में देश के प्रतिष्ठित 'जमनालाल बजाज पुरस्कार' से समानित किया गया था।</p><p>१९९६ में उन्हें देश के सर्वोच्च पर्यावरण पुरस्कार 'इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था। उन्हें 'कृष्ण बलदेव वैद' पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।</p><p><br /></p><p>प्रकृति सदा से है। सदा रहेगी। लेकिन संस्कृति मनुष्य का सृजन है। मनुष्य और अस्तित्व की प्रीति रीति और चित्त का संस्कार भी। अनुपम मिश्र को यह चित्त के संस्कार अपने पिता भवानी प्रसाद मिश्र से मिले थे। तभी उन्होंने संस्कृति के सतत सृजन कर्म और उसके सबसे बड़े फल भाषा को अपने कार्य का आधार बनाया। असल मे भाषा अद्भुत लब्धि है। लोक भाषा हमें गढ़ती है। बेशक हमनें ही भाषा गढ़ी लेकिन उस भाषा ने जिन मनुष्यों को गढ़ा उन्होंने भाषा को सामाजिक संपदा बना दिया। इसके सबसे बड़े उदाहरण अनुपम मिश्र थे। उन्होंने लोक भाषा के लोक व्यवहार से ही जाना कि एकाकी की कोई संस्कृति नहीं होती। इकाई होना दुख और अनंत होना आनंद है। इसलिए उन्होंने पर्यावरण के प्रश्न पर लोगों को जोड़ा साथ ही जोड़ा अपने साथ परंपरागत भाषा व्यवहार। जिससे उन्हें परंपरागत जल सहजने के तरीक़े, बाढ़ से निपटने के तरीक़े आदि पता चले।</p><p>उन्होंने लोक भाषा के माध्यम से लोक व्यवहार को और फिर पर्यावरण को समझा।असल मे वेद की ऋचाएं ही मानव और प्रकृति की प्रथम ध्वनियाँ थी। जो धीरे- धीरे लोक में बसी, और इसी लोक को पकड़ कर अनुपम मिश्र ने हमें हमारी भारतीय संस्कृति के प्राणतत्व पर्यावरण से मिलवाया।</p><p>अनुपम मिश्रके लिए यही सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी कि हम इस मिलन को स्थाई बना लें और पर्यावरण की इस धुन को सुनते रहे। जो कह रही है कि --</p><p>जलम् एव जीवनम् और लोक ही भारतीय अनुभूति का परम तत्व।</p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p> </p><p> </p><p>.</p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p> </p><p><br /></p><p> </p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p> </p><p> </p><p>.</p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p> </p><p><br /></p>Dr Kiran Mishrahttp://www.blogger.com/profile/15153901070894116636noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-30380538581495979.post-74411251378086330272022-11-14T08:03:00.000+05:302022-11-14T08:03:05.281+05:30भारतीय अनुभूति का प्राणतत्त्व -- प्राणवायु<p><span style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">नेशनल जियोग्राफिक की एक डॉक्यूमेंट्री देख कर उठी हूँ। चीन के प्रदुषण, भारत की घटती बारिश, मैक्सिको का जल संकट फ्लोरिडा अमेरिका के मौसम की विचित्रता और भी कुछ है लेकिन मैं घबरा कर अब भारत की राजधानी के राजपथ पर खड़ी हूँ भूलना चाहती देखा हुआ, जीवन को महसूस करना चाहती हूं। सांझ को विदा करना चाहती हूं सुबह का स्वागत करना चाहती हूं। </span></p><div class="mail-message expanded" id="m#msg-a:r-545372249863897844" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;"><div class="mail-message-header spacer" style="height: 88px;">लेकिन देखती हूँ धुंध में खोती जा रही हूँ हर तरफ धुँआ ही धुँआ, गैस चेम्बर में बदलता हुआ शहर की हालत देख जैसे ही गहरी सांस लेती हूँ तो तमाम जहरीले कणों व प्रदूषक गैसों का तमाम हिस्सा मन मस्तिष्क को जैसे हिला देता है। दिल मे गुबार होठों पर उदासी लिए मैं खोज रही हूँ उस जगह को जहां जाने पर सांसों को सुकून मिले दिल का गुबार निकले।</div><div class="mail-message-content collapsible zoom-normal mail-show-images " style="margin: 16px 0px; overflow-wrap: break-word; user-select: auto; width: 448px;"><div class="clear"><div dir="auto"><div dir="auto">किसी शायर का शेर याद आता है कि</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">सांस लेता हूँ तो दम घुटता है</div><div dir="auto">कितनी वे- दर्द हवा है।</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">ऐसा क्यों हुआ ???</div><div dir="auto">कैसे हुआ ??</div><div dir="auto">इस पर चिंतन करना बेमानी है। कैसे ठीक हो सिर्फ इस पर बात होनी चाहिए। इसलिए जान लेते है कि हमारी जान को जान आए वो चीज क्या है ? तो चलिए रूबरू होते है प्राणवायु से --</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">ऑक्सीजन या प्राणवायु या जारक रंगहीन, स्वादहीन तथा गंधहीन गैस है। यह एक रासायनिक तत्त्व है जिसके प्रारम्भिक अध्ययन में जे. प्रीस्टले और सी. डब्ल्यू . शेले ने महत्वपूर्ण कार्य किया है। प्रिस्टले ने मर्क्युरिक - ऑक्साइड को गर्म करके ऑक्सीजन गैस तैयार किया।एन्टोनी लौवोइजियर ने इस गैस के गुणों का वर्णन किया तथा इसका नाम ऑक्सीजन रखा, जिसका अर्थ है 'अम्ल उत्पादक' ।</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"><span style="background-color: white; color: #3a3a3a; font-family: "noto sans", sans-serif;">ऑक्सीजन अपने प्रकार का एक अलग और महत्वपूर्ण तत्व माना जाता है वातावरण में पांचवा हिस्सा अक्सीजन का ही है अक्सीजन तकरीबन सभी तत्वों के साथ मेल कर सकती है संजीवों में ऑक्सीजन, हाइड्रोजन , कार्बन और अन्य के साथ मेल से रहती है मनुष्य के शरीर के भार का 2/3 हिस्सा पूर्णता ऑक्सीजन मिले तत्वों का ही है।</span></div><div dir="auto"><span style="background-color: white; color: #3a3a3a; font-family: "noto sans", sans-serif;"><br /></span></div><div dir="auto"><span style="background-color: white; color: #3a3a3a; font-family: "noto sans", sans-serif;">वैज्ञानिक व्याख्या है लेकिन इससे इतर प्राणवायु की विस्तृत व्याख्या हमारे ऋषियों ने की है प्राचीन ग्रंथ वेदों में। आइए जानते है जिसे हमारे ऋषि प्राणवायु कहते थे वो क्या है ? और कहाँ से गमन करती है ? </span></div><div dir="auto">प्राणवायु का मूल स्रोत सूर्य है, सूर्य से निःसृत ऑक्सीजन अर्थात प्राणतत्त्व समस्त विश्व को अनुप्राणित करता है। प्राणतत्त्व अति सूक्ष्म है। इसी का स्थूल रूप प्राणवायु है। प्राणों को स्थिर या संचालित रखने के इसी गुण के कारण ऑक्सीजन प्राणवायु कही जाती है।</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">क्या ऑक्सीजन के स्तर में वृद्वि ने प्राणियों के जीवन के विकास को बढ़ावा दिया है, या इसके विपरीत हुआ? यह एक बड़ा प्रश्न है जो जीवों के जीवन के लिए बेहद जरूरी है। यह मनुष्य के पशु- पक्षियों के कीट- पतंगों के इस पृथ्वी पर रहने रूपने की विकास यात्रा भी है।</div><div dir="auto">नियोप्रोटेरोज़ोइक युग के दौरान ऑक्सीजन के स्तर में एक साधारण वृद्धि के बजाय, वातावरण में ऑक्सीजन स्तर में काफी बदलाव आया है। दस लाख वर्षो में, ऑक्सीजन का स्तर 0•3 प्रतिशत रह गया है। वायुमंडलीय ऑक्सीजन का स्तर काम होना बेहद दुःखद है मनुष्य के लिए लेकिन डायनासोर जैसे जीवों के विलुप्त होने के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है।</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">पृथ्वी और प्राणी के लिए के लिए बेशक यह महत्वपूर्ण है कि ऑक्सीजन का स्तर बढ़ाने पर विचार हो। पृथ्वी और प्राणी पर यह केंद्रित दृष्टिकोण है।</div><div dir="auto">पृथ्वी पर ऑक्सीजन का मुख्य स्रोत एक प्रक्रिया के जरिए ही पैदा हुआ जिसे प्रकाश संश्लेषण कहा जाता है। यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा पौधे और सूक्ष्म जीव सूर्य के प्रकाश पानी और कार्बनडाइऑक्साइड का उपयोग शर्करा के रूप में ऑक्सीजन और ऊर्जा बनाने के लिए करते हैं।</div><div dir="auto">वायुमंडल में उपस्थति ऑक्सीजन की 60 से 80 प्रतिशत तक आपूर्ति समुद्र में तैरने वाले छोटे हरे पौधे से होती है जिन्हें 'प्लवक' (फयटोटले कटान) कहा जाता है। शेष अपूर्ति जंगलो से होती है। विशेषकर अमेजन के विशाल एवं संघन वनों से जिन्हें "धरती का फेफड़ा" कहा जाता है। </div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">एक अध्ययन के अनुसार दुनिया में 03 खरब पेड़ है जो हर वर्ष 60 अरब टन ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। ऑक्सीजन के लिए पेड़ पौधों के निकट जाना कितना जरूरी है यह जितना जल्द आत्मकेंद्रित एवं भौतिकवादी इंसान समझेगा उतना ही अच्छा होगा।</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">वायु के महत्व को उल्लेखित करते हुए अथर्ववेद में कहा गया है कि वायु आकाशीय जल को सर्वत्र पहुंचाने में सहायक होती है जिससे अन्नादि में समृद्वि आती है।</div><div dir="auto">वेदों में वायु को सम्मान देते हुए कहा गया है कि वायु हमारी रक्षा करें</div><div dir="auto">त्रायन्ता मस्तां गण:</div><div dir="auto">अर्थात हे वायु हमारी रक्षा करो। प्रकृति में रहे असंतुलनों में वायु के रौद्र रूप जैसी आंधी तुफान से होने वाले नुकसान के प्रति वेदों में प्रार्थाना की गई है। कि हे वायु देवता हमारी प्रार्थना है कि आप हमेशा ही प्राणिमात्र के लिए अनुकूल रहें।</div><div dir="auto">पञ्च वायु को पंच प्राणवायु के नाम से भी जाना जाता है। आकाशादि पञ्च महाभूतों के राजस अंश से समष्टि रूप में पंच वायु की उत्पत्ति होती।</div><div dir="auto">एतत्प्रणादि पञ्च कमाकाशादिगतर जोडशोभ्ये मिलितेभ्य उत्पछते</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">जीव प्राणियों के शरीर मे विचरण करने वाली वायु ही पञ्च वायु है।</div><div dir="auto">शरीर में प्राणादि पञ्च वायु के प्राण अदान, समान, त्यान और रसादि को प्रेरित करने वाली तथा सम्पूर्ण शरीर मे विचरण करने वाली त्यान वायु है। यह वायु स्वेद एवं रक्त का संचार करती है। इस वायु की पांच प्रकार की चेष्टाएं है-- </div><div dir="auto">१. प्रसारण</div><div dir="auto">२.आकुंचन</div><div dir="auto">३.विन्नमण</div><div dir="auto">४.अन्नमन</div><div dir="auto">५.तिथर्यम गमन</div><div dir="auto">वायु को हम तीन तरह से समझ सकते है--</div><div dir="auto">१. अधिभौतिक</div><div dir="auto">२.आधिदैविक</div><div dir="auto">३.आध्यात्मिक</div><div dir="auto">आधिदैविक शब्द आधि उपसर्ग पूर्वक दिव धातु से निष्पन्न है। दिव का अर्थ है प्रकाशित करना या चमकना।</div><div dir="auto">ऋग्वेद में वायु शब्द देवता का बोधक है। पाप विमोचक वायु समस्त पापों से मुक्ति दिलाने वाले है " विमुमुक्तमसमे।" ।</div><div dir="auto">असीम शक्तियों के अधिवति होने के साथ- साथ वायु अमृत तुल्य भी है अतः वायु से प्रार्थना की गई है कि तुम्हारी जो आमरण की शक्ति है वह हमारे जीवन के लिए दो क्योंकि तुम हमारे पिता, भाई, और बन्धु हो। इस आमरण शक्ति के कारण ही तुम लोक कल्याणकारी कर्म में नियुक्त किये गये हो।</div><div dir="auto">उपरोक्त बातों से हम समझ सकते है कि वेदों के ऋषि वायु के प्रति क्या अनुराग रखते थे असल मे उनकी यही संवेदनशीलता उन्हें न सिर्फ वायु जैसी जरूरी तत्व बल्कि सृष्टि के प्रत्येक तत्व के प्रति ग्रहणशील बनाती थी और ऐसा क्यों न हो क्योंकि पञ्च तत्व जीवनशक्ति, वाईटल फोर्स ही जीवन की सारी संभावनाओं को सम्भवन पर ले जाते है। इसलिए पञ्च तत्व प्राणऊर्जा है।</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">हे धावा पृथिवी, मधु मिमिक्षत्तम <br /></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">प्रकृति की सभी शक्तियां एक सुनिश्चित विधान में चलती है। ऋत नियमों से बड़ा कोई नही होता। वायु से आयु है। लेकिन दूषित वायु से आयु खोते हम जीवन- मरण के प्रश्न में उलझ गए है। </div><div dir="auto">विश्व का यह प्रश्न कितना जरूरी यह हम कोरोना काल मे देख चुके है। </div><div dir="auto">पूर्ण से पूर्ण को अगर घटा दिया जाए तब भी पूर्ण ही बचता है। यह प्राण को अगर समझना हो तो केवल आधात्म से ही समझा जा सकता है और प्राणवायु को भी। प्राण ब्रह्मांड का स्पंदन है। यह ब्रह्मांड ग्रहों व नक्षत्रों के माध्यम से सांस लेता है और मनुष्य भी अपनी सांसों के माध्यम से इस ब्रह्माण्ड से जुड़ा है प्राण के कारण ही जीव को प्राणी कहा जाता है और सांस को प्राणवायु।</div><div dir="auto">जीवन नृत्य की शुरुआत क्या प्राणवायु बिना की जा सकती है। प्राण-वायु का संयोग जीवन और वियोग मृत्यु है। सघन वायु है तो गहन है जहां है तो अन्न है। शरीर के भिन्न अंगों में प्रवाहित पांच वायु का वर्णन चरक संहिता में आता है जो हमारे विनाश और विकास, सुख और दुख का भी कारण बनती है।</div><div dir="auto"> </div><div dir="auto">ऑक्सीजन का महत्व एवं उपयोग --<br /></div><div dir="auto">१.धातुओं को जोड़ने एवं तोड़ने के लिए ऑक्सीजन का उपयोग किया जाता है।</div><div dir="auto">२.ऑक्सीजन जल में घुलनशील होती है जो श्वसन के लिए उपयोगी है।</div><div dir="auto">३. वो लोग जो पर्वतारोही होते है वो अथवा अधिक ऊंचाई पर उड़ान में सिलेंडर का उपयोग किया जाता है।</div><div dir="auto">४.रॉकेट ईंधन में द्रवित ऑक्सीजन का उपयोग किया जाता है।</div><div dir="auto">५.सल्फर से सल्फ्यूरिक अम्ल व अमोनिया से नाइट्रिक अम्ल के उत्पादन में ऑक्सीजन का उपयोग किया जाता है।</div><div dir="auto">६. वैल्डिंग के लिए प्रयुक्त की जाने वाली ऑक्सी-- एसिटिलीन में भी ऑक्सीजन का प्रयोग होता है।</div><div dir="auto">७.सल्फर से सल्फ्यूरिक अम्ल व अमोनिया से नाइट्रिक अम्ल के उत्पादन में ऑक्सीजन का उपयोग किया जाता है।</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">इन उपयोग से भी बढ़कर ऑक्सीजन का उपयोग प्राणों को संजोने के लिए किया जाता है । जीवों की उत्पत्ति उनके जीवित रहने के लिए इस प्राणवायु का होना कितना जरूरी है यह बताने की जरूरत नही। अब जबकि हम प्राकृतिक युग से निकल कर भौतिकयुग में भटक रहे है और कोरोना जैसी महामारी से दो- चार हो चुके है तो हमें यह समझ लेना चाहिए कि माशूका की सांसों की खुशबू के आगे की महत्वपूर्ण चीज है ऑक्सीजन या प्राणवायु सभी प्राणियों का जीवन है इसलिए शेर सिर्फ सांसों तक नही जीवन की आस तक हो, नही तो जीवन नृत्य की शुरुआत, शुरुआत होने से पहले ही खत्म हो जाएगी।</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"> वो कहा गया है न कि -</div><div dir="auto">पहली साँस पे मैं रोया या आख़िरी साँस पे दुनिया</div><div dir="auto">इन साँसों के बीच मे हम ने क्या खोया क्या पाया।</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">मनुष्य प्रकृति का योग है। शरीर प्रकृति की शक्तियों से ही निर्मित है। शरीर को त्यागकर प्राणवायु सूत्रात्मा को प्राप्त होने की चाहत भारतीय मरणोन्मुख साधक की प्रार्थना है लेकिन जीवन से मृत्यु के बीच जो हम ठहरे रहते है उसके लिए प्रार्थना ऐसी हो जिसमें पांच तत्वों का सर्जन होता रहे क्योकि इन तत्वों का विसर्जन प्रत्यक्ष मृत्यु है। मृत्यु के बाद प्राण वायु से जा मिलते है लेकिन उससे पहले जीवन की बात करें ,वायु से ही हम तक प्राण आते है तो यह जरूरी हो जाता है कि वायु शुद्ध हो।</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">जीवन उत्सव को कायम रखने के लिए यह जरूरी है कि शरीर मे वायु की उपस्थिति शुद्ध हो सही मात्रा में हो। प्राण मूल शक्ति है उनकी शक्ति वायु है। प्रकृति से सतत सृजन इन से ही चलता है। ऋग्वेद में सृष्टि सृजन के पहले देवता नही है लेकिन प्राण है। ऋषि कहते है दिन - रात भी नही है, लेकिन साँस है मतलब वायु है।</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">अनादीवातं स्वधया...</div><div dir="auto">दो तरह की वायु हमारे पास है एक मनुष्य के शरीर को संचालित करने वाली और दूसरी अनिल सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त वायु। हमारी वायु जब अनिल से मिलती है तो हम जीवन- मरण के चक्र से झुटते है। यद्यपि जीवधारी में विद्यमान वायु सम्पूर्ण प्रकृति की वायु से भिन्न नहीं है लेकिन जीवधारी में विद्यमान वायु शरीर बन्धन में है और प्रकृति में सब तरफ उपस्थित वायु सर्वव्यापी है। यह और कुछ नही अनुभूत प्राण है। प्राणियों को पुनर्नवा प्राण शक्ति देते है और जगत का प्राण समृद्ध होता है। मनुष्य के भीतर की वायु को प्राण, अपन, समान,व्यान और उदान कहा गया है। यह एक प्राण ही पाँच रूप में कहा जाता है।</div><div dir="auto">मनुष्य में प्राण है इसलिए वह प्राणी है । सारी शक्तियां प्राणवायु के कारण ही किसी न किसी रूप में बनी रहती है।हमारा लेहकन महकना प्राणवायु की देन है। यह ऐसा देव है जो अंधविश्वास नहीं प्रत्यक्ष अनुभूती है।</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">प्राण अग्नि है, यही सूर्य है ,यही पर्जन्य- वर्ष्या के मेघ है और यही वायु भी है। प्राणवायु को अनेक आयामों में हमें देखना चाहिए अंतर्जगत का भाव बनाना ध्यान देने योग्य है।</div><div dir="auto">भारती ऋषि तभी तो बारम्बार 'नमस्ते वयो, त्वमेव प्रत्यक्ष ब्रहमासि, त्वामेव प्रत्यक्ष ब्रहा वदिष्यामि।' कहते नही थकते। वो इसे सर्वशक्तिमान यूँ ही तो नहीं बताते।क्या अब भी आप कहेंगे भारतीय अनुभूति का ब्रह्म अंध आस्था है ? मैं कहूंगी यह प्रत्यक्ष है।<br /></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">मानव की प्रथम ध्वनि बनी रहे, जीवन उत्सव यूँ ही चलता रहे, साँस, साँस ॐ का उदघोष होता रहे। मानव जाग्रत बना रहे पंच तत्वों के प्रति, पंचघा स्वरूपों में प्राण जगत से सम्बद्ध रहे । यही हमारी सयुक्त प्रार्थना हो। यही शिव संकल्प है--</div><div dir="auto">तन्मे मन: शिव संकल्पमस्तु ।</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"><ul style="background-color: white; border: 0px; color: #3a3a3a; font-family: "noto sans", sans-serif; font-size: 16px; list-style: none; margin: 0px 0px 1.5em 3em; padding: 0px;"><li style="border: 0px; margin: 0px; padding: 0px;"><b> </b></li></ul></div><div dir="auto"><div dir="auto" style="border: 0pt none; height: 0px; margin: 0px; padding: 0px; width: 300px;"></div><ins style="border: 0px; display: inline-block; height: 250px; margin: 0px; padding: 0px; text-decoration-line: none; width: 300px;"></ins><b> </b><br /><div dir="auto" style="border: 0pt none; height: 0px; margin: 0px; padding: 0px; width: 320px;"></div> <br /><div dir="auto" style="border: 0pt none; height: 0px; margin: 0px; padding: 0px; width: 250px;"></div><ins style="border: 0px; display: inline-block; height: 250px; margin: 0px; padding: 0px; text-decoration-line: none; width: 250px;"></ins><div dir="auto"><p style="background-color: white; border: 0px; color: #444444; font-family: "open sans"; font-size: 18.28px; line-height: 1.6; margin: 0px 0px 15px; outline: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;"> </p></div></div><div dir="auto"><span style="background-color: white; color: #202122; font-family: -apple-system, blinkmacsystemfont, "segoe ui", roboto, lato, helvetica, arial, sans-serif; font-size: 16px;"><br /></span></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"><br /></div></div></div></div><div class="mail-message-footer spacer collapsible" style="height: 0px;"></div></div>Dr Kiran Mishrahttp://www.blogger.com/profile/15153901070894116636noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-30380538581495979.post-41283829686382118752022-06-17T18:14:00.000+05:302022-06-17T18:14:49.463+05:30आषाढ़ की आस<p> आषाढ़ बनकर ही अधर के पास आना चाहता हूं</p><p>मैं तुम्हारे प्राणों का उच्छ्वास पाना चाहता हूं।💚</p><p>■■■</p><p>आषाढ़ तो धरती और अंबर का मिलन दिवस तो आइए हम इस मिलन दिवस के गवाह बने, फागुन के लड़कपन और सावन के यौवन में डूबे आषाढ़ को धरती के ताप को हर लेने दीजिए। गर्मी की कसक को अगर कम करना है तो आषाढ़ को ठसक के साथ आने दीजिए इसलिए जरूरी है कि पर्यावरण को लेकर हम सब बेहद जागरूक हो जाएं।</p><p>तो ज्येष्ठ की रोहिणी की तप्तता को मृग की बौछार संतृप्त करें और प्रकृति हरीतिमा के गीत गाये, धारा- अंबर एक हो तभी तो किसी दूर गांव की हरियाली पर आषाढ़ की बून्दे देख कोई किशोरी अपनी सखी से कहेगी-</p><p>कारी सियाही बदरी, झक झालर आयो मेह</p><p>बरसे आषाढ़ी मेहरा,कोई कोई उत बालम परदेश।</p><p>■■■</p><p><br /></p>Dr Kiran Mishrahttp://www.blogger.com/profile/15153901070894116636noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-30380538581495979.post-48451873165602458002022-06-11T19:05:00.000+05:302022-06-11T19:05:51.734+05:30तपती धरती बदलता मौसम<p>सत्यम वृहदृमुग्नम दीक्षा तपो ब्रह्म यज्ञः पृथिवी धारयन्ति सा नो भूतस्य भव्यस्य पल्युमरू लोक प्रथिवी नः कृनोती ।</p><p>(पृथ्वी ने भूत काल में जीवों का पालन किया था और भविष्य काल में भी जीवों का पालन करेगी। इस प्रकार की पृथ्वी हमें निवास के लिए विशाल स्थान प्रदान करे। ) </p><p>आह्वान करते ऋषियों ने कहां सोचा था कि हम जिन पीढ़ियों के निवास के लिए पृथ्वी पर विशाल स्थान मांग रहे है उन्हें इस स्थान की कद्र ही नही होगी। वो पृथ्वी को अपना अस्थाई घर ही मानेंगे। आज सारी पृथ्वी रोष में है पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। पृथ्वी, आकाश, जल,जंगल को प्रदूषित कर दिया है। पेड़- पौधे कट रहे है, वनस्पतियां खत्म हो रही है, कीट- पतंगे तितलियां गायब हो रहीं है। गौरैया मर रहीं है।</p><p>सावन में धमक नही ,फागुन में महक नही, , वसंत हताश है , भादों में बारिश की आस है।गंगा निराश है, यमुना उदास है । विकास के उद्योग से प्रकृति का विनाश है।</p><p>सयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार जीवाश्म ईंधन पर वर्तमान समाज की निर्भरता पृथ्वी को इस तेजी से गर्म कर रही है जो पिछले दो हजार वर्षों से अभूतपूर्व है। इसके प्रभाव के कारण वर्षा की कमी यानी सूखा, जंगल की आग, बाढ़ के रूप में देख सकते है।</p><p>आईपीसीसी के आंकलन के अनुसार ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन के कारण स्थितियां और भी गंभीर होने वाली है। 1850- 1900 के औसत की तुलना में पृथ्वी की वैश्विक सतह के तापमान में लगभग 1.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है।</p><p> जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभाव बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं।कई प्रभाव अपरिहार्य हैं और दुनिया की सबसे कमजोर आबादी को सबसे ज्यादा प्रभावित करेंगे। तो पृथ्वी की जलवायु मानव अनकूल करने के लिए क्या किया जाए ? ये जानने के पहले आइए ये जान लें कि जलवायु परिवर्तन क्या है ?</p><p>जलवायु परिवर्तन मौसमी दशाओं के बदलाव को कहते है जो दीर्घ कालीन होता है । यानी किसी विशेष स्थान के लिए आमतौर पर कम से कम 30 वर्षो के मौसम का औसत पैटर्न होता है। मुख्य रूप से, सूर्य से प्राप्त ऊर्जा के कारण ही पृथ्वी की जलवायु का निर्धारण एवं तापमान का संतुलन निर्धारित होता है। यह ऊर्जा हवाओं, समुद्र की धाराओं एवं अन्य तंत्र द्वारा विश्व भर में वितरित हो जाती है तथा अलग- अलग क्षेत्रों की जलवायु को प्रभावित करती है।</p><p> पृथ्वी सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करती है और यही ऊर्जा इसकी सतह को गर्माती है। इस ऊर्जा का लगभग एक तिहाई भाग पृथ्वी को घेरने वाले गैसों के आवरण, जिसे वायुमंडल कहा जाता है, से गुजरते वक्त तितर-बितर हो जाता है। इस प्राप्त ऊर्जा का कुछ हिस्सा धरती और समुद्र की सतह से टकराकर वायुमंडल में परावर्तित हो जाता है। शेष हिस्सा, जो लगभग 70 प्रतिशत होता है, धरती को गर्माने के लिए रह जाता है। इसलिए, संतुलन बनाए रखने के लिए जरूरी है कि सौर ऊर्जा का कुछ भाग पृथ्वी से वापस वायुमंडल में परावर्तित हो, वरना धरती असहनीय रूप से गर्म हो जाएगी। </p><p>वायुमंडल में भी जलवाष्प और कार्बन डाइऑक्साइड सरीखी कुछ गैसें इस परावर्तित ऊर्जा के कुछ अंश को सोख लेती हैं जिससे तापमान का स्तर ‘सामान्य सीमा’ में रखा जा सके । इस ‘आवरण प्रभाव’ की अनुपस्थिति में पृथ्वी अपने सामान्य तापमान से 30 डिग्री सेल्सियस अधिक सर्द हो सकती है।</p><p>चूंकि जलवाष्प, कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी गैसें हमारे विश्व को गर्म रखती हैं, इसलिए इन्हें ‘ग्रीनहाउस गैसें’ कहा जाता है। यहां यह तथ्य बहुत महत्वपूर्ण हैं कि इस प्राकृतिक ‘ग्रीनहाउस प्रभाव’ की अनुपस्थिति में हमारे ग्रह का औसत सतही तापमान यहां जीवन के लिए प्रतिकूल होता और इस ग्रह पर भी जीवन की संभावना नही रहती।</p><p>जलवायु परिवर्तन के वैश्विक खतरे--</p><p>◆ विश्व ने अपना कार्बन स्पेस दो तिहाई इस्तेमाल कर लिया है, जबकि पैतीस प्रतिशत जीवाश्म ईंधन के भंडार की खपत एवं वैश्विक जंगलों के एक तिहाई हिस्से को काटा गया है ।</p><p>◆ वर्ष 1750 के बाद से विकसित देशों ने ऐतिहासिक उत्सर्जन का 65 फीसदी के आस- पास उत्सर्जित किया है ।</p><p>◆कीप द क्लाइमेट, चेंज द इकोनॉमी के अनुसार पारम्परिक जीवाश्म ईंधन भंडार का उपयोग करके एवं जंगलो को एक तिहाई काटते हुए विश्व वातावरण से 2,000 Gtco2e बाहर निकाल चुका है।</p><p>◆हर साल लगभग दस बिलियन मैट्रिक टन कार्बन वायुमंडल में छोड़ा जाता है।</p><p>भारत में होने वाले खतरे---</p><p>◆वर्ष 2018 में एचएसबीसी ने दुनिया की 67 अर्थव्यवस्थाओं पर जलवायु परिवर्तन के खतरे का आंकलन किया उसमें कहा गया कि मौसम के बदलाव का भारत मे व्यापक रूप से असर पड़ेगा। ग्लोबल वार्मिंग के कारण भारत की अर्थव्यवस्था को क्षति हो सकती है जो कई लाख करोड़ तक जा सकती है।</p><p>◆जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा प्रभाव कृषि पर होगा क्योंकि भारतीय कृषि मानसून पर आधारित है । जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून में अनिश्चितता उत्पन्न होगी असामान्य मानसून के कारण कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ जैसी स्थितियों का सामना करना होगा ।</p><p>◆भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के अनुसार प्रति एक सेंटीग्रेट तापमान बढ़ने पर गेहूं के उत्पादन में चार से पांच मिलियन टन की कमी होती है। इसके साथ ही परागणकरी कीटों जैसे तितलियों, मधुमक्खियों की संख्या में कमी से कृषि उत्पादन नकारात्मक रूप में दिखाई देगा।</p><p>◆ जलवायु परिवर्तन पर भारत सरकार की अब तक की पहली रिपोर्ट कहती है कि सदी के अंत तक ( 2100 तक) भारत के औसत तापमान में 4. 4 डिग्री की बढ़ोतरी हो जाएगी जिसका सीधा असर लू के थपेड़ों और चक्रवर्ती तूफानों की संख्या बढ़ने के साथ समुद्र के जल स्तर के उफान के रूप में दिखाई देगा। मौसम विस्मित है और शायद रूठा हुआ भी । हवा में co2 का स्तर बढ़ रहा है तापमान में वृद्धि हो रही है, ग्लेशियर पिघल रहें है। ढेरों प्रजातियां खतरें में है। सांस को आस नही है, तो अब क्या करें ? आइए छोटी- छोटी कोशिशों से इस खतरनाक प्रक्रिया को धीमा करें और उम्मीद रखें कि मौसम एक बार फिर खुशगवार होगा। </p><p>◆कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने, हवा की गुणवत्ता में सुधार करने, तापमान को कम करने, जैव विविधता को सरंक्षित करने के लिए पेड़ लगाइए। ये साधारण लग सकता है लेकिन ये पर्यावरण के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। </p><p>◆कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने के लिए और तापमान को कम रखने के लिए महासागरों को संरक्षण दें। समुद्र तटों को प्रदूषित न करें। मछली को खाद्य रूप में कम अपनाएं। </p><p>◆ ऊर्जा दक्षता में सुधार करें। फोटोवोल्टिक सौर पैनलों का उपयोग करें, एलईडी बल्बों का चयन , पुराने उपकरणों को बदलना आदि। </p><p>◆हरित ऊर्जा का उत्पादन </p><p>◆हाइब्रिड या इलेक्टिक कार,परिवहन के लिए सार्वजनिक साधनों का उपयोग,कम दूरी के लिए साइकिल जैसे वाहन का उपयोग। </p><p>◆प्लास्टिक के उत्पादन का कम उपयोग। </p><p>◆कचरे का सही ढंग से निपटान। </p><p>◆अक्षय ऊर्जा बहुत ही महत्वपूर्ण है। </p><p>◆शाकाहार अपनाएं । </p><p>◆स्थाई आदतें विकसित करें।छोटे और स्थानीय व्यवसायों का विकल्प चुनें, शिल्प उत्पाद खरीदें और गुणवत्ता और स्थायी वस्तुओं में निवेश करें। प्रकृति की सभी शक्तियां एक सुनिश्चित विधान में चलती है। ऋत नियमों से बड़ा कुछ भी नही । आज जीवन- मरण के प्रश्न में उलझे हम भूल ही गये लोक रीति तुलसी पूजा, पीपल पूजा और वटवृक्ष की पूजा के तत्व वन संरक्षण से ही जुड़े हुए हैं। गांवों में आज भी पेड़ काटने को पाप और वृक्षारोपण को पुण्य बताया जाता है। नदियों के दीपदान का अर्थ नदी का सम्मान करना है। यज्ञ हवन के कर्मकाण्ड रूढ़ि नहीं हैं, इनमें प्रकृति की प्रीति और वातायन शुद्धि की ही आकांक्षा है। पर्यावरण संतुलन से तात्पर्य है जीवों के आसपास की समस्त जैविक एवं अजैविक परिस्थियों के बीच पूर्ण सामंजस्य। ऐसा सामंजस्य जिसमें कुछ भी अवांछनीय न हो ताकि जल वायु भूमि के प्रदूषण की समस्या न हो। हमारे भौतिक शरीर मूल रूप से पाँच तत्वों - मिट्टी, पानी, हवा, आग और आकाश - से मिल कर बने हैं पर मिट्टी इन सब में एकदम मूल और स्थिर तत्व है इस स्थिर तत्व की गुणवत्ता को बनाए रखिए ये जीव के लिए बेहद जरूरी है। </p><p>प्रकृति में रूप है, रास है, गंध है, ध्वनियां है उन्हें अवध्वस्त न होने दें।जल, जंगल, जमीन, वनस्पति, हवा सभी मे स्वच्छता हो मधुरता हो ये आह्वान जरूरी है पृथ्वी को अकक्षुण रखने के लिए जीव को बचाने के लिए।</p><p>मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमान् अस्तु सूर्यः । माध्वीर्गावो भवन्तु नः ॥8॥</p><p>मधुमान् नः वनस्पतिः, मधुमान् अस्तु सूर्यः, माध्वीः गावः भवन्तु नः ।</p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p>Dr Kiran Mishrahttp://www.blogger.com/profile/15153901070894116636noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-30380538581495979.post-39276509410068070622022-05-01T09:24:00.004+05:302022-05-01T09:48:13.882+05:30लोरीअँधेरे समय ने
तुम्हारे हाथों से छीन कर <div>पतंग की डोर
और फेक कर कंचे</div><div>रख दिये कुछ निशान गाँठों की शक्ल में, </div><div>खेल के मैदान से दूर तुम अब कैद हो </div><div>अब नहीं सुनाई देते
तुम्हें स्कूल के घंटे </div><div>बस सुनाई देती है सायरन की आवाज </div><div>जो तुम्हारे दिमाग की अंधेरी गुहा में
फोड़ा बन तुम्हें टीसता है </div><div><br /></div><div>यातना का सांघातिक प्रभाव
लेकर अपने मन में</div><div>तुम अपने आप से भी बोलते नहीं </div><div>तुम्हारा दुःख अब तुम्हारी भाषा है </div><div>और तुम्हारी देह जिह्वा है </div><div><br /></div><div>तुम्हारी ढेर सारी जिज्ञासा
तुम्हारे हथोड़े के नीचे दम तोड़ गई है </div><div>और तुम्हारा हँसना तुम्हारे पिता की बोतल में कैद, </div><div><br /></div><div>तुम्हारे हाथ पकड़ना चाहता है बचपन </div><div>लेकिन हर बार
काम से अटे होते है हाथ</div><div>आँखे देखना चाहती है
रंग-बिरंगे सपने
पर थकान से बोझिल होती है, </div><div><br /></div><div>धीरे-धीरे
तुम्हारे सपने को ले
उदास निराश बचपन </div><div>समा जाता है
एक और अंधेरी गली में </div><div>जहां दिनों दिन
दिन के उजाले में
तुम </div><div>थामे बैठे हो अंधेरे का हाथ</div><div><br /></div><div>खांसते खखारते तुम
अपनी आंखो पर फेरते हो हाथ </div><div>छूना चाहते हो अपने फूले हुये गाल </div><div>पर वो अब
हड्डियों की शक्ल में
यम को न्योता दे रहे है, </div><div><br /></div><div>अब तुम्हारी आँखों में हर चीज
धुंधली हो रही है </div><div>तुम नींद के मुहाने पर खड़े
अपनी शिथिल देह को देख रहे हो </div><div><br /></div><div>सो जाओ बचपन </div><div>तुम मुक्त हो
हर मजदूरी से
हर मजबूरी से </div><div>कभी न जगाने के लिए
सो जाओ </div><div>तुम्हारे सारे सपने
मैं तुम्हारे साथ विसर्जित करती हूँ </div><div>इस अंधे युग की हर पीढ़ा से
हो कर मुक्त चैन से सो जाओ।</div>Dr Kiran Mishrahttp://www.blogger.com/profile/15153901070894116636noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-30380538581495979.post-88078186950581820442021-04-23T22:29:00.001+05:302021-04-23T22:54:26.135+05:30 कोरोना महामारी चुनोतियाँ और भारतीय समाज<div class="separator" style="clear: both;"><a href="https://1.bp.blogspot.com/-dtlKK8tnDC0/YIMCttGHblI/AAAAAAAAIXA/20BBCT4GNKEsXfbYxsLcA9CdCFcs0GN5wCLcBGAsYHQ/s720/IMG_20210423_225205.jpg" style="display: block; padding: 1em 0; text-align: center; "><img alt="" border="0" width="320" data-original-height="550" data-original-width="720" src="https://1.bp.blogspot.com/-dtlKK8tnDC0/YIMCttGHblI/AAAAAAAAIXA/20BBCT4GNKEsXfbYxsLcA9CdCFcs0GN5wCLcBGAsYHQ/s320/IMG_20210423_225205.jpg"/></a></div>कोई भी खतरा विनाश में परिवर्तित हो इससे पहले मनुष्य इसे रोक सकता है ,कारण सभी आपदा मनुष्य द्वारा उत्पन्न होती है। मानवीय असफलता का परिणाम ये आपदाएं अनुचित आपदा प्रबंधन के कारण न सिर्फ अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाती है बल्कि समाज मे असन्तुलन व अफरा- तफरी की असामान्य स्थिति को भी जन्म देती है।
आपदा मानव निर्मित वो जोखिम है जो समाज को नकारात्मक रूप से न सिर्फ मानसिक, शारीरिक बल्कि आर्थिक रूप से ज्यादा प्रभावित करती है, जैसा कि अभी कोविड- 19 में हमने देखा और अब 21 में भी देख रहे है।
इस बीमारी ने पूरी दुनिया की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलेकर रख दी है। जाहिर है स्वास्थ्य को लेकर ढुलमुल रवैया अपनाने वाले देश भारत की भी स्थिति विश्व स्वास्थ्य स्थिति से अलग नही।
शीर्ष वित्तीय संस्थान अभी भी कोरोना वायरस महामारी के वास्तविक नतीजे का आकलन कर रहे है । नजरिया अत्यधिक अनिश्चित है, संभावनाएं इस पर निर्भर करती हैं कि स्वास्थ्य संकट की अवधि और महामारी के आर्थिक प्रभावों को कम करने वाली नीतियों की प्रभावशीलता कितनी होगी।
कोविड महामारी एक गहरी वैश्विक घटना है। यह बंद सीमाओं पर नहीं रुकता है और यह बताता है कि हम कितने असहाय हैं। महामारी से निपटने में एक दूसरे देश का सयोग बेहद महत्वपूर्ण है। यह चिकित्सा और प्राकृतिक विज्ञान के क्षेत्र में निश्चित रूप से सच है, वायरस की बेहतर समझ तक पहुंचने के लिए, चिकित्सा उपचार में सुधार, और वैक्सीन होना कितना जरूरी है।
वैश्विक संकट के रूप में, कोविड-19 महामारी ने संभावनाओं के क्षितिज खोले हैं और यह एक अलग तरीके से दुनिया को फिर से आकार देने का अवसर हो सकता है।
कई सामाजिक वैज्ञानिकों ने दुनिया के लिए मनुष्य के प्रति अधिक संवेदनशील, देखभाल, और सामाजिक असमानताओं और मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों के साथ की आवश्यकता पर जोर दिया।
हालाँकि, ये संकट अन्य सामाजिक मॉडल के लिए भी मार्ग प्रशस्त कर सकता है। अब तक, संकट के प्रबंधन में नई प्रतिस्पर्धाओं में वृद्धि हुई है।
व्यापक आर्थिक मदद पैकेजों ने सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने के बजाय राष्ट्रीय निगमों को बचाने पर ध्यान केंद्रित किया है।
महामारी एक नए सत्तावादी युग का मार्ग भी प्रशस्त कर सकती है, जिसमें नई प्रौद्योगिकियों के साथ बायोपॉलिटिक्स की भूमिका होगी।
इस बीमारी के बाद कुछ सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिल सकते हैं मसलन स्वास्थ्य के क्षेत्र में बड़ा सुधार और वैश्वीकरण का तेज़ होना, क्यूंकि एक बात तो तय है कि जब दुनिया इस बीमारी से उबरेगी तो वैसी नहीं रह जायेगी , जैसी अभी है।
कोरोनोवायरस ने विज्ञान को सार्वजनिक स्थान के केंद्र में वापस ला दिया है, यहां तक कि उन देशों में भी जहां अंधविश्वास की जगह गहरी थी। सामाजिक वैज्ञानिक ऐसे तथ्यों के साथ आए हैं जो उतने ही कठिन और निर्विवाद हैं जबकि वायरस स्वयं हम में से किसी को भी संक्रमित कर सकता है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियां और सामाजिक असमानताएं कम से कम उतनी ही मायने रखती हैं, जितनी हमारे शरीर के वायरस के घातक परिणाम के कारण।
महामारी के असली माहौल ने मनुष्यों के बीच, देशों के बीच और नागरिकों और सरकारों के बीच विश्वास में बहुत सी दोषपूर्ण चीजों को उजागर किया है ।
यह समाज, नीति निर्माताओं और नागरिकों पर भी निर्भर करेगा कि वे इस संकट से कैसे निपटें।
ये महामारी न केवल एक सैनिटरी संकट है। यह एक सामाजिक, पारिस्थितिक और राजनीतिक संकट भी है इसलिए इस महामारी को न सिर्फ वैज्ञानिक बल्कि मनोवैज्ञानिक तरह से निपटने की जरूरत है।
यह तय है कि ये समय हमें अपने बारे में, हमारे सामाजिक संबंधों और जीवन के बारे में आम तौर पर बड़े सवाल उठाने के लिए प्रेरित कर रह है ।
यह संकट केवल सार्वजनिक और पर्यावरणीय स्वास्थ्य या अर्थव्यवस्था तक सीमित नहीं है, हम जो देख रहे हैं, वह आधुनिकता के संकट और व्यापक, पैमाने पर उसकी पूंजीवादी व्यवस्था के संकट का एक सच है।
इस संकट से गुजरने के बाद, हम हमेशा की तरह "काम " पर वापस लौटने में शायद वैसे सक्षम नहीं होंगे।
कोरोना आपदा ने हमें परिवार, समुदाय के महत्व पर , और प्रेम, आतिथ्य, और देखभाल एवं नैतिकता, और फिर एक पूरे राष्ट्र-राज्य और मानवता के स्तर तक पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित किया है।
भारत जैसे देश में लोगों के बीच भौतिक सुविधाओं की होड़ भी एक बड़ा प्रश्न है एक से ज्यादा गाड़ियां, बड़े घर, ज्यादा कमरों के घर इस मानसिकता को भी बदलने का समय आ गया है।
प्रकृति के संसाधनो का अन्धाधुंध दोहन ने भी परिस्थियों को और प्रतिकूल बनाया है। भारत जैसे देश में तो स्थिति और भी ज्यादा विकट है. नदियों का दैवियकरण कर के हमने उन्हें समाप्त ही कर दिया है।
पूरे विश्व मे खानपान को जो प्रवत्ति है जिसमे लोग आधा खाना खाकर आधा फेंक देते हैं, आज के समय में अनाज कि किल्लत शायद इस सोच को बदलने को प्रोत्साहित करे।
हमें अपने खान- पान की आदतों पर भी नज़र डालनी होगी ये सिर्फ किसी देश तक सीमित नही है बल्कि पूरे विश्व को इस पर ध्यान देना होगा । हाल ही हमनें देखा कि जानवरों के माध्यम से मानव में वायरस किस तरह फैला। क्या इस तरह का खाना वास्तव में इतने स्वादिष्ट हैं?
सबसे पहले, कोरोना काल की स्थिति में ये बात बहुत अच्छे से स्पष्ट हुई है कि दुनिया वास्तव में कैसे परस्पर जुड़ी हुई है।
एक वैश्विक गांव की छवि को एक रूपक से एक वास्तविकता में बदल देती है, लेकिन हमें अभी भी अधिक वैश्विक एक जुटता और अधिक मानवतावादी वैश्वीकरण उत्पन्न करने की आवश्यकता है ।
ऐसा करने के लिए सफलतापूर्वक एक बहु-स्तरीय अवधारणा की आवश्यकता होती है , जो अंततः अधिक स्वास्थ्य मुसीबतों, महामारी, मृत्यु और आपदाओं के लिए प्रभावी त्वरक के रूप में कार्य करता है।
इन बहु-स्तरीय संबंधों की जांच व्यक्ति, समाज और प्रकृति को फिर से जोड़े बिना नहीं की जा सकती है।
उदाहरण के लिए, जलवायु परिवर्तन और राजनीतिक आर्थिक प्रणाली को संबोधित करते हुए लोगों को पृथ्वी और मानवता के संबंधों पर सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने के बिना ये नहीं किया जा सकता है।
ये सही है कि इस वैश्विक संकट ने शोषण, फैलाव और नवउदारवादी पूंजीवाद को सुदृढ़ करने के लिए नई रणनीतियों को प्रेरित किया और हमारे लालच और स्वार्थ की पहुंच को बढ़ाया, लेकिन इसने हमें अपने सामाजिक न्याय को समझने और पुनः प्राप्त करने के नए तरीकों का पता लगाने और प्रदान करने का अवसर भी दिया है।
हम जानते हैं कि पर्यावरण के लिए संघर्ष हमारी राजनीतिक अर्थव्यवस्था की पसंद से अविभाज्य है, और हमारी वांछित आर्थिक प्रणाली की प्रकृति से - और ये मानव और प्रकृति के बीच के संबंध कभी भी तत्काल या अंतरंग रूप से नहीं जुड़े हैं जैसा कि वे अब हैं।
चिंता करने के लिए बहुत कुछ है। इस महामारी के संकट के बारे में कुछ भी अच्छा नहीं है।इससे हजारों लोगों को जान से हांथ धोना पड़ा है, जिससे लाखों लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा, और अरबों लोगों को महत्वपूर्ण बुनियादी अधिकारों से वंचित होना पड़ रहा हैं।
यह महामारी जितनी अधिक समय तक रहेगी, संस्कृति, समाज और अर्थव्यवस्था पर इसके विनाशकारी प्रभाव उतने ही गंभीर होंगे।
इसलिए, समाज को सरकार को अपनी सोच को व्यापक ढंग से बदलना होगा । सरकार को बड़ी और छोटी कंपनियों पर कुछ ऐसे नियम लागू करना चाहिए जिसमे कोई अतिरेक नहीं, बल्कि अधिमानतः अस्थायी छंटनी की सब्सिडी व सामान्य तौर पर, रोजगार की सुरक्षा महत्वपूर्ण होगी।
कोरोना के बाद, दुनिया - और काम की दुनिया - अलग होगी। हाल के दशकों में आर्थिक नीति के प्रभावी मानक ढह गये है । महामारी के बाद यह बदलाव जारी रहेगा। यह अतिदेय था और कोरोना संकट ने इसे तेज कर दिया है।
हम सभी के लिए यह तय करना भी आसान होगा कि हमें वास्तव में क्या चाहिए। यहां तक कि हम क्रिकेट के बिना पूरी तरह से अच्छी तरह से रह सकते है। लेकिन हम बेकर्स, किसानों, चिकित्सा सहायकों,ड्राइवरों और सहायक पड़ोसियों के बिना नहीं रह सकते थे। इससे पता चलता है कि हम सभी को एक अच्छी तरह से काम करने वाले सामाजिक बुनियादी ढांचे की आवश्यकता है।
यदि आप पेशेवर क्रिकेट खिलाड़ी की मासिक आय की तुलना चिकित्सा नर्स से करते हैं, तो यह तुरंत स्पष्ट हो जाता है कि हमारे समाज में कुछ सही नहीं है।
वैदिक धर्म से निःसृत हिन्दू जीवनशैली जो व्यष्टि से ले कर समष्टि तक तथा सृष्टि से ले कर परमेष्टि तक के समस्त जीवों के प्रति सह अस्तित्व पर कायम है हमें पुनः उसे समझना ही होगा ये हमारे समाज,स्वास्थ्य, पर्यावरण के लिए उसे बचाने के लिए बेहद जरूरी है।
--------------------------------------------------------------------------------Dr Kiran Mishrahttp://www.blogger.com/profile/15153901070894116636noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-30380538581495979.post-49188408438341442282021-03-11T09:17:00.001+05:302021-03-11T09:18:00.532+05:30शिवोऽहम् शिवोऽहम् मनोबुद्धयहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे
न च व्योम भूमिर्न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥🙏
शिव अनन्तता, अपरिमितता और सवोच्चता के परिचायक है । शिव शिवोहम् है - शुभ मंगलकारी ।
वो गृहस्थ है, गुरु है, आदियोगी है, आदिगुरु है, काल है तो कालतीत भी, वो परब्रह्म है, निराकार है।
शिव कालभैरव है, किराट है तो वानर रूप में हनुमान भी।
शिव विराट है, शिव पूर्ण है। वो समस्त गन से युक्त , समय काल, जीवन- मृत्यु, राग- द्वेष, पाप- पुण्य, सुख- दुख, बहुत- भविष्य, भौतिकता- लौकिकता से परे स्वयंभू है।
वो शिव है वो शून्य है, शिव अंतरात्मा है, शिव ॐ है ,शिव ज्योति है।
यत्प्रज्ञानमुत चेतो धृतिश्च यज्ज्योतिरन्तरमृतं प्रजासु
यस्मान्न ऋते किं चन कर्म क्रियते तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु
ज्ञानमय, विज्ञानमय, धृतिशील
प्राणियों में जो रहा करता सदा
है ज्योति बनकर
नहीं किंचित् कर्म होता बिना जिसके
वही मेरा मन
सदा शिव संकल्पकारी हो ।
Dr Kiran Mishrahttp://www.blogger.com/profile/15153901070894116636noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-30380538581495979.post-52255788593406687232020-11-21T13:15:00.001+05:302020-11-21T13:15:20.271+05:30हिन्दी कविता: कोहरा - Sansar News- Online for Global Nepali<a href="https://www.sansarnews.com/236428/">हिन्दी कविता: कोहरा - Sansar News- Online for Global Nepali</a>: हर बार बांची जाती है कोहरे की रति गाथा जिसमे होती है महर्षि पराशर और काली की कहानी जिसे सुनकर प्रेम बन के कोहरा लिपटता है आगोश में नर्म कोहरे में खोते खुद से खुद को जोड़ते धुंध में धुआं धुआं होते अपने में जलते बुझते रचते है प्रेमी प्रेम कहानी लेकिन इससे इतर है …Dr Kiran Mishrahttp://www.blogger.com/profile/15153901070894116636noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-30380538581495979.post-85246784620039893472020-08-27T22:10:00.000+05:302020-08-27T22:10:06.597+05:30फरवरी नोट्स प्रेम के स्पर्शमय क्षण तो नित्य अक्षय होते है वो कहां बिसरते है ।
दिल की कानन मे उगे ये जिंदगी की हर मुश्किल घड़ी में ठंडी बयार से मन को हरा- भरा रखते है।
ये बिछड़ते तो है बिसरते नही , तभी तो काशी में बैठा फक्कड़ कहा उठता है--
कहाॅं भयो तन बिछुरै, दुरि बसये जो बास
नैना ही अंतर परा, प्रान तुमहारे पास।
इसी प्रेम की बयानी को लेकर लेखक अपनी पुस्तक ' फरवरी नोट्स' लेकर आएं है । अगर आप कभी प्रेम में थे , हैं या किसी का इंतज़ार कर रहें है तो इसे अवश्य पढ़ें।
नोट- आप के प्रेम की सौ उलझनों को भी सौ प्रतिशत गारंटी के साथ सुलझा देगी ये पुस्तक😊
https://www.amazon.in/February-Notes-II-%E0%A4%AB%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B8/dp/B08GKHCC2R/ref=mp_s_a_1_1?dchild=1&keywords=february+notes&qid=1598373249&sr=8-1Dr Kiran Mishrahttp://www.blogger.com/profile/15153901070894116636noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-30380538581495979.post-52476589638778933912020-08-15T23:06:00.005+05:302020-08-15T23:06:58.376+05:30लेख शीर्षक- स्वाधीनता की तरफ लौटने का समयस्वतंत्रता का पौधा शहीदों के रक्त से फलता है ,लेकिन स्वतंत्रत हुए पौधें को स्वाधीन रहने के लिए किस तरह के हवा, पानी की जरुरत पड़ेगी ये विचार अपने आप में स्वतंत्रता के सही अर्थ को परिभाषित करने के लिए ,एक कदम साबित हो सकता है।
ये विचार अगर हमने स्वतंत्रता के पूर्व ही कर लिया होता, तो ज्यादा अच्छा था । तब शायद हमें स्वतंत्रता दिवस की रस्म अदायगी की जरुरत ही नहीं होती क्योंकि तब हम सही मायने में स्वतंत्रता को जी रहे होते।
हम स्वतंत्र तो है ,पर क्या हम स्वाधीन है ? ये प्रश्न एक बार सामान्य नागरिक को जो आधा-अधूरा स्वतंत्र है ,और जो स्वतंत्रता दिवस मनाने की रस्म अदायगी सबसे कम करता है , अचंभित कर सकता है, क्योंकि उसके लिए आज भी स्वतंत्रता, स्वाधीनता में कोई अंतर नहीं है।
'स्वतंत्रता' एवं 'स्वाधीनता' महज़ शब्दों का हेर-फेर नहीं है, न एक मतलब है ,जहां स्वतंत्रता हो वहां स्वाधीनता हो ऐसा जरुरी भी नहीं, लेकिन लोगों ने इन दोनों शब्दों के घालमेल से जीवन और जीने के मायने जरूर बदल लिए है ,या यूं कहें कि उनके लिए बदल दिए गए है।
1947 के बाद भारत ने लोकतंत्र को अपनाकर ये समझा कि अब हम जनता के लिए एक ऐसा देश बना रहे है ,जिसमे जनता सर्वोपरि होगी और ये गलत भी नहीं था ,क्योंकि लोकतंत्र का ढांचा जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा की परिभाषा पर टिका हुआ है । ये वो परिभाषा है जो लोकतंत्र क्या है बताती है ,पर वो असल में भी यही है ,इसके बारे में संदेह है।
हमने सोचा था कि ,हम एक ऐसे भारत का निर्माण करेंगे ,जिसमे धर्म, भाषा, जाति सब को लोकतंत्र में समाहित करके ,राष्ट्र निर्माण में सामुदायिक भावना का विकास करेंगे, लेकिन शायद हम ये भूल गये थे ,की शताब्दियों तक सामंती संस्कारों में पले हम, इतने ढल चुके है ,जो समाज में लोकतान्त्रिक हेतू अपेक्षित प्रयासों की और, से मुंह मोड़ कर ,लोकतांत्रिक गतिविधियों को गड़बड़ी में बदलते रहेंगे, या हम में से कुछ लोगों को ऐसी गड़बड़ी में बदलने के लिए बाध्य करते रहेंगे।
असल में इसकी शुरुआत स्वतंत्रता के समय से ही हुई, जब स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका निभाने वाले कुछ नायकों ने ,स्वतंत्रता एवं स्वाधीनता को आलोचनात्मक प्रसंग की तरह लिया ,और उसे समय-समय पर ख़ारिज किया ,उन्हें समान मताधिकार का विचार ही बड़ा विचित्र लगता था । ऐसा लगना उनके लिए कोई विचित्र बात नहीं थी ,क्योंकि उनमें से कुछ समाज के ऐसे तबके से थे, जो स्वतंत्रता पूर्व शासक था ,तो कोई शासक का सलाहकार ।
ऐसे लोगों को लोकतंत्र अवगुण तंत्र लगने लगे ये बड़ी बात नहीं थी।
ऐसे में लोकतंत्र के प्रति जो निष्ठा बनी वो ,इतनी गैरजिम्मेदार थी कि ,हम राज्य और नागरिक के आपसी संबंधों को पहचानने ,तथा उनकी मजबूती के लिए उपयुक्त तंत्र खड़ा करने में अक्षम रहे ।
नागरिक सरकार ,जिस व्यवस्था के अंतर्गत रहता है ,वही उसके जीने का अधिकार बन जाती है । ये ऐसी बात होती है जो किसी भी अन्य बात से ज्यादा प्रभावित करती है ,अर्थात धर्म से दर्शन तक ।
हमने लोकतंत्र तो अपनाया लेकिन अपनाते समय हमें अपने बोध का इस्तेमाल ,जो आधा-अधूरा किया उसने लोकतंत्र को सिर्फ सरकार चुनने के अधिकार का तंत्र बना दिया।
नागरिकों को इस तंत्र में कितनी स्वतंत्रता व कितनी स्वाधीनता मिलती है ,इसका मंत्र अगर हम समझ लेते तो शायद आज इसके मायने कुछ अलग होते ,जनता इतने नुकसान में नहीं रहती।
घर लौटने के कई रस्ते है जो एकांत में मुझे अपना हाल सुनाते है ,थिक नात (कवि एवं बौद्ध भिक्षु)ने सही कहा है ।
हमें वास्तविक लोकतंत्र की तरफ लौटना ही होगा ,सिर्फ मतदान वाला लोकतंत्र नहीं ,बल्कि ऐसा लोकतंत्र जहां नागरिक ये महसूस करें कि उनके पास एक नागरिक के रूप में सामान अवसर है । वो विज्ञान, कला, व्यापार आदि सभी क्षेत्रों में समान रूप से अवसर पा सकते है।
ये क्षेत्र कोई भ्रष्टाचार का दलदल नहीं ,जिसमे वो डूब जाएंगे उन्हें अब किसी भी क्षेत्र में अपनी योग्यता को सिद्ध करने के लिए किसी गॉडफादर की जरुरत नहीं। ये बात एक आशा जागती है तो क्या आशा वापस आने की उम्मीद रखी जानी चाहिए ?
इन सब में एक बात बहुत महत्वपूर्ण है शक्ति का संतुलन हो, न शक्ति संचित हो ,न क्षीण हो ।
सरकार और अन्य संस्थाएं, न तो अपनी स्वतंत्रता का दायरा लांघकर नागरिकों की स्वाधीनता और अधिकारों को अवरुद्ध करें ,और न ही नागरिक शासन–प्रशासन को अपने कृत्यों से आहत करें, ये विचार लोकतंत्र की स्वाभाविक दुर्बलता को दूर करके एक स्वस्थ कदम होगा।
Dr Kiran Mishrahttp://www.blogger.com/profile/15153901070894116636noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-30380538581495979.post-84157220051317043372020-08-14T22:02:00.004+05:302020-08-15T23:10:00.254+05:30स्वतंत्रता का अनुष्ठान 🇮🇳<span style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;">स्वतंत्रता का आलोक</span><br style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;">हर तरफ फैला ही था कि</span><br style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;">अपनी- अपनी पताका के साथ</span><br style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;">अपने -अपने उदघोष हुए</span><br style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;">द्वार पर ही स्वतंत्रता ठिठक गई</span><br style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;">प्रकाश की किरणें धीरे- धीरे काट दी गई</span><br style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;">स्वतंत्रता का सूर्य खंडित हो</span><br style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;">क्षत विक्षत हो गया</span><br style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;" /><br style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;">कुछ उत्साही जाग्रत हुए</span><br style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;">अब सत्ता के शिखरों पर</span><br style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;">अवतार जन्म लेने लगे</span><br style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;">अवसरवाद के पालने में झूलते वो</span><br style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;">अँधेरी सदियों के सपने देखने लगे</span><br style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;" /><br style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;">सारे आदर्शो को सुरिक्षित कर</span><br style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;">अवसरवाद को गले लगाया गया</span><br style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;">एक मूर्च्छित युग की शुरुआत हुई</span><br style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;">और होती ही चली गई</span><br style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;" /><br style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;">मूर्छा का संरक्षण कर</span><br style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;">बुद्ध के मौन को नष्ट कर</span><br style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: arial, tahoma, helvetica, freesans, sans-serif; font-size: 15px;">स्वतंत्रता का अनुष्ठान आरम्भ किया गया।</span>Dr Kiran Mishrahttp://www.blogger.com/profile/15153901070894116636noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-30380538581495979.post-18107156545667461672020-04-22T18:28:00.001+05:302020-04-22T18:28:24.885+05:30पृथ्वी का रुदन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
🌻🐝रात का फक्कड़<br />
आवाज देता है पृथ्वी को<br />
<br />
शांति का प्रकाश सिर्फ एक लहर है<br />
जो रोष के तूफान में खो जाती है,<br />
<br />
असहाय पृथ्वी<br />
निर्दयी आत्माओं से करती है रुदन<br />
जरा ठहरो मेरे दर्द को साझा करो<br />
<br />
बांसुरी बजाता मनुष्य<br />
ओट में हो जाता है<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://1.bp.blogspot.com/-8--seHqtTj0/XqA_WdVH1pI/AAAAAAAAD7A/ao_J_sSGfUs1yk3wuDzofDPzhaa4zRzbQCLcBGAsYHQ/s1600/IMG_20200422_182741.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="578" data-original-width="720" height="256" src="https://1.bp.blogspot.com/-8--seHqtTj0/XqA_WdVH1pI/AAAAAAAAD7A/ao_J_sSGfUs1yk3wuDzofDPzhaa4zRzbQCLcBGAsYHQ/s320/IMG_20200422_182741.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
मैं समय ,समुद्र का एक बेड़ा<br />
अपने डूबने के इंतज़ार में हूं।<br />
----------------------------------------------<br />
🌻🐝पृथ्वी दिवस की शुभकामनाएं🌻🐝</div>
Dr Kiran Mishrahttp://www.blogger.com/profile/15153901070894116636noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-30380538581495979.post-19534968497514197592020-03-30T20:53:00.001+05:302020-03-30T21:35:14.607+05:30ठहराव<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
और एक दिन जब<br />
मनुष्य ने ईश्वर को फड़<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://1.bp.blogspot.com/-5csHX-zifmM/XoIO1SG1RzI/AAAAAAAAD5k/xx_XMyIfKQIaGAO8beujBISfOJoBFs6lwCLcBGAsYHQ/s1600/IMG_20200330_205119.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1009" data-original-width="638" height="320" src="https://1.bp.blogspot.com/-5csHX-zifmM/XoIO1SG1RzI/AAAAAAAAD5k/xx_XMyIfKQIaGAO8beujBISfOJoBFs6lwCLcBGAsYHQ/s320/IMG_20200330_205119.jpg" width="202" /></a></div>
पर बैठने को कहा<br />
ईश्वर ठिठका<br />
मनुष्य की बिछाई बिसात देख,<br />
<br />
पहली चाल मनुष्य ने चली<br />
विकास<br />
सारे अर्थहीन, खतरनाक मुद्दे<br />
उठ खड़े हुए<br />
<br />
दूसरी चाल<br />
विज्ञान<br />
ह्रदय हीन हुए मनुष्य<br />
<br />
ईश्वर हँसा<br />
अब आखिरी चाल उसकी थी<br />
<br />
उसने पासे फेंके<br />
दौड़ते मनुष्यों के पैरों में उसके पासे थे<br />
<br />
अब ईश्वर के सामने मनुष्य था<br />
और मनुष्य के सामने उसकी छाया<br />
<br />
यह देख<br />
पृथ्वी फिर से उठ खड़ी हुई।<br />
<br /></div>
Dr Kiran Mishrahttp://www.blogger.com/profile/15153901070894116636noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-30380538581495979.post-32599897785277465902020-02-20T10:50:00.000+05:302020-02-20T10:50:30.300+05:30निस्तब्ध<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<span style="font-family: "merriweather_extendedltit" , "lailaregular" , "notonastaliqurdu"; font-size: 26.6424px; line-height: 34.6424px; white-space: pre;">धरती को चूमने के हजारों तरीके है</span><br />
<span style="font-family: "merriweather_extendedltit" , "lailaregular" , "notonastaliqurdu"; font-size: 26.6424px; line-height: 34.6424px; white-space: pre;"><br /></span>
<br />
<span style="font-family: "merriweather_extendedltit" , "lailaregular" , "notonastaliqurdu"; font-size: 26.6424px; line-height: 34.6424px; white-space: pre;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://1.bp.blogspot.com/-2rS21LZV_jk/Xk4WPc3oHJI/AAAAAAAAD30/V2sU-E2JSyE9phS09oDzim-rhTOlOIZMQCLcBGAsYHQ/s1600/IMG_20200220_104433.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="835" data-original-width="651" height="320" src="https://1.bp.blogspot.com/-2rS21LZV_jk/Xk4WPc3oHJI/AAAAAAAAD30/V2sU-E2JSyE9phS09oDzim-rhTOlOIZMQCLcBGAsYHQ/s320/IMG_20200220_104433.jpg" width="249" /></a></div>
<span style="font-family: "merriweather_extendedltit" , "lailaregular" , "notonastaliqurdu"; font-size: 26.6424px; line-height: 34.6424px; white-space: pre;">सारी व्याख्याएं खत्म हुई</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-family: "merriweather_extendedltit" , "lailaregular" , "notonastaliqurdu";"><span style="font-size: 26.6424px; line-height: 34.6424px; white-space: pre;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-family: "merriweather_extendedltit" , "lailaregular" , "notonastaliqurdu";"><span style="font-size: 26.6424px; line-height: 34.6424px; white-space: pre;">दिल का ताप बड़ा</span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-family: "merriweather_extendedltit" , "lailaregular" , "notonastaliqurdu";"><span style="font-size: 26.6424px; line-height: 34.6424px; white-space: pre;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-family: "merriweather_extendedltit" , "lailaregular" , "notonastaliqurdu";"><span style="font-size: 26.6424px; line-height: 34.6424px; white-space: pre;">मेरे दिल मे छिपे तारे ने</span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-family: "merriweather_extendedltit" , "lailaregular" , "notonastaliqurdu";"><span style="font-size: 26.6424px; line-height: 34.6424px; white-space: pre;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-family: "merriweather_extendedltit" , "lailaregular" , "notonastaliqurdu";"><span style="font-size: 26.6424px; line-height: 34.6424px; white-space: pre;">सातो दिशाएं रोशन की</span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-family: "merriweather_extendedltit" , "lailaregular" , "notonastaliqurdu";"><span style="font-size: 26.6424px; line-height: 34.6424px; white-space: pre;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-family: "merriweather_extendedltit" , "lailaregular" , "notonastaliqurdu";"><span style="font-size: 26.6424px; line-height: 34.6424px; white-space: pre;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-family: "merriweather_extendedltit" , "lailaregular" , "notonastaliqurdu";"><span style="font-size: 26.6424px; line-height: 34.6424px; white-space: pre;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-family: "merriweather_extendedltit" , "lailaregular" , "notonastaliqurdu";"><span style="font-size: 26.6424px; line-height: 34.6424px; white-space: pre;">गिर जाने पर हाथ बढ़ाकर उठा देना </span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-family: "merriweather_extendedltit" , "lailaregular" , "notonastaliqurdu";"><span style="font-size: 26.6424px; line-height: 34.6424px; white-space: pre;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-family: "merriweather_extendedltit" , "lailaregular" , "notonastaliqurdu";"><span style="font-size: 26.6424px; line-height: 34.6424px; white-space: pre;">ऐसे शख़्स का मिल जाना</span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-family: "merriweather_extendedltit" , "lailaregular" , "notonastaliqurdu";"><span style="font-size: 26.6424px; line-height: 34.6424px; white-space: pre;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-family: "merriweather_extendedltit" , "lailaregular" , "notonastaliqurdu";"><span style="font-size: 26.6424px; line-height: 34.6424px; white-space: pre;">इस धरती की सबसे अद्भुत घटना है</span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-family: "merriweather_extendedltit" , "lailaregular" , "notonastaliqurdu";"><span style="font-size: 26.6424px; line-height: 34.6424px; white-space: pre;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-family: "merriweather_extendedltit" , "lailaregular" , "notonastaliqurdu";"><span style="font-size: 26.6424px; line-height: 34.6424px; white-space: pre;">कि ईश्वर को पता है ये दुनिया कैसे चलती है।</span></span><br />
<span style="font-family: "merriweather_extendedltit" , "lailaregular" , "notonastaliqurdu";"><span style="font-size: 26.6424px; line-height: 34.6424px; white-space: pre;"><br /></span></span>
<span style="font-family: "merriweather_extendedltit" , "lailaregular" , "notonastaliqurdu";"><span style="font-size: 26.6424px; line-height: 34.6424px; white-space: pre;">-----------------------------------------</span></span><br />
<span style="font-family: "merriweather_extendedltit" , "lailaregular" , "notonastaliqurdu";"><span style="font-size: 26.6424px; line-height: 34.6424px; white-space: pre;">Painting by william quincy</span></span></div>
</div>
Dr Kiran Mishrahttp://www.blogger.com/profile/15153901070894116636noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-30380538581495979.post-80321453166935685052019-12-04T12:20:00.001+05:302019-12-04T12:20:20.108+05:30दास्तान-ए- इश्क<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
उस दिन गहन निस्पंद आधी रात में अचानक टहनियों की फुनगी पर पढ़ी बदली से निकलते चांद की रोशनी उतार लाई थी, अतीत का स्वप्न<br />
<br />
अहा! कैसे तो स्वप्न थे बारम्बार बांधते थे मन के सुने द्वार पर पंखों के तोरण<br />
<br />
आज फिर मादल की थाप कानो में गूंज रही है....<br />
पलाश के फूल तारों भरे सफेद दुपट्टे पर गिर रहे है । उधर कुछ दूर बंदिशें अपनी मुस्कान लिए बिखर- बिखर जा रही है।<br />
पलकों की कोरें बंदिशों की छांव बन अपनी आंखों से काजल का टीका लगा रहीं है।<br />
<br />
काजल का टीका आत्माओं के अंधेरों से कहां कभी बचा पाया है?<br />
<br />
बिखरे शब्द जंगल के रास्ते शहर की धूप भरी सड़को पर पहचाने गये लाल स्याही से गोले लगाए जाने लगे.....<br />
बंदिशें भूल गई थी मात्राओं का खेल निराला है इसलिए राजा है तभी न उसकी नीति व अनीति का साया है।<br />
<br />
पलाश तो स्वच्छंद उगता है.... इसलिए जंगल मे ही फलता फूलता है...जंगल मे शब्द नही होते सिर्फ ध्वनि होती है,हर राजा कहां समझ पाता है हर ध्वनि गुरुत्वाकर्षण का भेदन नही करती....।<br />
<br />
आज भी निस्पंद रात में जब कभी बादलों की ओट से चांद की रोशनी टहनियों की फुनगियों पर पड़ती है तो न जाने क्यूं मन के नक्शे पर एक हराभरा जंगल बंदिशें गाने लगता है।<br />
------------------------------------------------------------------------------<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://1.bp.blogspot.com/-Vmk9TGKVvUc/XedXFYF2X3I/AAAAAAAAD0U/0NEaELlEUz8otA4OE3fLBdUYjc6P-_7rQCLcBGAsYHQ/s1600/IMG_20191204_121759.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="799" data-original-width="720" height="320" src="https://1.bp.blogspot.com/-Vmk9TGKVvUc/XedXFYF2X3I/AAAAAAAAD0U/0NEaELlEUz8otA4OE3fLBdUYjc6P-_7rQCLcBGAsYHQ/s320/IMG_20191204_121759.jpg" width="288" /></a></div>
<br /></div>
Dr Kiran Mishrahttp://www.blogger.com/profile/15153901070894116636noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-30380538581495979.post-5490651446393180472019-11-27T20:26:00.001+05:302019-11-27T20:26:17.056+05:30गांधी कहाँ हैं ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-family: sans-serif; font-size: 16px;">गांधी के व्यक्तित्व को लेखों पुस्तकों नही समेटा जा सकता है । गांधी का जीवन तो वह महान गाथा है जिसके द्वारा शब्दों में ब्रह्म की शक्ति को समाहित कर उस गूढ़ मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया से लोगों का परिचय कराया और दिखाया गया कि विचार, वाणी, और कर्म से जो चाहे वो किया जा सकता है । हालांकि जो वह नहीं कर सकते थे उस के लिए उन्होंने कभी किसी से कहा भी नहीं । अपने आचरण से मण्डित शब्दों को उन्होंने मन्त्र से भी ज्यादा प्रभावशाली बना डाला था यही कारण था कि उनके एक -एक कार्य शैली को लोगो ने जिया था। उनका जीवन सदैव आत्मा के प्रकाश से प्रकाशित रहा और उस प्रकाश में ही उन्होंने अपनी जीवन यात्रा तय की। </span><br style="font-family: sans-serif; font-size: 16px;" /><span style="font-family: sans-serif; font-size: 16px;">हम सब जिस गांधी को जानते है वह वो व्यक्ति हैं जिसे समय ने हिन्दुस्तान के लिए चुना और फिर गढ़ा उस भारतीय सभ्यता और संस्कृति से जो राम से चलती हुई बुद्ध तक आई थी। </span><br style="font-family: sans-serif; font-size: 16px;" /><span style="font-family: sans-serif; font-size: 16px;">गांधी ने करोड़ो देशवासियो की संभावनाओं को गढ़ा और भर दिये उनकी आंखो में सपने आजाद भारत के । एक गुलाम देश का फेका गया चोट खाया स्वाभिमान जो एक सूने प्लेटफार्म में अपनी संस्कृती और सभ्यता समेटता हुआ भारतवर्ष के भविष्य को एक नूतन आकार देने के संकल्प के साथ उठ खड़ा हुआ। गांधी ने अपने अपमान को देश और देशवासियों का सामूहिक अपमान को स्वतन्त्रता में बदल डाला। बुद्ध की करुणा को ह्रदय में धारण करके गांधी ने पीड़ित जनमानस के ह्रदय में धंसा तीर निकला था और दुखी संतृप्त देश को आशा की न सिर्फ किरण दिखलाई थी बल्कि उन्होंने उन्हें उनके अस्तित्व से रूबरू भी कराया था। </span><br style="font-family: sans-serif; font-size: 16px;" /><span style="font-family: sans-serif; font-size: 16px;">यह प्रश्न ही काफी है कि हमें गांधी की जरुरत है तो क्या गांधी के विचारो की प्रासंगिकता पर विचार करना चाहिए ? पर हम तो विकास के रास्ते पर चल पढ़े है फिर गांधी के विचारो का आत्ममंथन क्यों करे? पर उन समस्याओं का क्या जो विकास के रास्ते में मजबूती से गढ़ी है ये समस्याएं है- आर्थिक असमानता एवं पर्यावरणीय परिस्थितिकी असंतुलन।क्या ये समस्याएं आर्थिक वृद्धि की सफलता का या बड़े पैमाने पर अपनाई गई प्रौद्योगिकी को अपनाने का परिणाम है? ऐसे ढेरों प्रश्नों के उत्तर गांधी में ही ढूंढा है । आज के समय गांधी की प्रासंगिकता क्या है यह जानने से पूर्व यह जानना आवश्यक है कि गाँधी के व्यक्तित्व एवं विचार दर्शन का मूल आधार क्या है? </span><br style="font-family: sans-serif; font-size: 16px;" /><span style="font-family: sans-serif; font-size: 16px;">गांधी राजनीतिज्ञ हैं, दार्शनिक हैं, सुधारक हैं, आचारशास्त्री हैं, अर्थशास्त्री हैं, क्रान्तिकारी हैं। समग्र दृष्टि से गाँधी के व्यक्तित्व में इन सबका सम्मिश्रण है मगर उनके व्यक्तित्व एवं विचार दर्शन का मूल आधार धार्मिकता है। बक़ौल गांधी- मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है. सत्य मेरा भगवान है। अहिंसा उसे साकार करने का साधन है। एक धर्म जो व्यावहारिक मामलो पर ध्यान नहीं देता और उन्हें हल करने में कोई मदद नहीं करता धर्म नहीं है। </span><br style="font-family: sans-serif; font-size: 16px;" /><span style="font-family: sans-serif; font-size: 16px;">स्वामित्व और प्रबंधन का केन्द्रीयकरण श्रम का अवसर कम होना एवं पर्यावरण का प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों के तेजी से दोहन के कारण वो समाप्ति की तरफ है । इसके फलस्वरूप परिस्थितिक असंतुलन का खतरा तेजी से बढ रहा है ऐसे समय मे हमें गांधी के व्यवहारिक धर्म को अपनाने की आवश्यकता है। आज अगर महात्मा गांधी होते तो इसके समाधान स्वरुप 'स्वदेशी' प्रौद्यौगिकी’ का सुझाव देते जिसका स्थानीय संसाधनों से ही स्थानीय आवश्यकता की पूर्ति करना है । उत्पादन स्थानीय जरुरतो के लिए होने के कारण उसके माल भाड़े,विक्रय और उसके प्रबन्धन आदि की लागत में कमी होती। चूँकि लाभ केन्द्रिकत नहीं होता या सीमित होता तो आर्थिक असमानता में निरंतर कमी होती जाती। </span><br style="font-family: sans-serif; font-size: 16px;" /><span style="font-family: sans-serif; font-size: 16px;">गांधी के विचारो से प्रेरित अमर्त्य सेन विकास का तात्पर्य मनुष्य की स्वतंत्रता को मानते है। यह स्वतंत्रता केवल तभी पाई जा सकती है,यदि हम उसे केवल 'अंतिम मंजिल न' मान कर उसकी प्रक्रिया में ही उसे समाहित कर सके। आर्थिक केन्द्रीयकरण की जरूरतें राजनीतिक, केन्द्रीयकरण के बिना पूरी नहीं की जा सकती है।गांधी ने अपने जीवन के साथ बहुतेरे प्रयोग किये वो अपनी आत्मकथा में लिखते है मेरी आत्मकथा के हर पन्ने में मेरे प्रयोग झलके तो में इस आत्मकथा को निर्दोष मानूंगा। क्या हमारे अर्थशास्त्री एवं राजनेता प्रयोग नहीं कर सकते? मानव -मानव में भेद धर्म -धर्म में भेद राग- द्वेष इन सबको मिटाने का प्रयोग हमें करना होगा ताकि राजनेता लोकतान्त्रिक आकाँक्षाओं व अधिकारों को पोषित करना छोड़ दें और एक हिंसक सोच को अहिंसक रूप देने का प्रयोग शुरू हो। </span><br style="font-family: sans-serif; font-size: 16px;" /><span style="font-family: sans-serif; font-size: 16px;">हमारे देश को प्रशासन की बुनियाद की तरफ देखना ही होगा जनता के निचले तबके की भागेदारी व सरकारी नियंत्रण से मुक्त स्वराज के लिए गांधीवाद को अपनाना ही होगा। एक राष्ट्र की बुनियादी प्रगति के लिए ये सोच बहुत ही जरुरी है इससे विकास की गति बहुपक्षीय होगी जो आर्थिक व सामाजिक आसमनाता की खाई को भर देगी।मार्टिन सुआरेज ने अपनी पुस्तक ' पोप गोज टू अलास्का 'में लिखा है , अगर जीसस या बुद्ध होने की राह चाहिए तो गांधी को समझ लीजिये । अगर इंसानियत की राह चाहिए तो गांधी को सिर्फ समझना ही नहीं होगा बल्कि उनके वाद को लोकतंत्र में स्थापित भी करना होगा। आज के समाज की मनोदशा को दिशा देने के लिए गांधी को फिर से समझना होगा ऐसा न हो कि हम देर कर दे और फिर से बर्बर युग में प्रवेश कर जाएं। </span><br style="font-family: sans-serif; font-size: 16px;" /><span style="font-family: sans-serif; font-size: 16px;">स्वीडिश अर्थशास्त्री गुर्नार मिर्डल का कहना है, जिस सामाजिक और आर्थिक क्रांति का स्वप्न गांधी ने देखा उसमे गहन दूरदर्शिता थी। आज समानाताओं की बड़ी वजह दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली है । ऐसी प्रणाली जो श्रमिक और शिक्षित के बीच की दूरियों को पाट नहीं पाई ।ये कैसी शिक्षा है जो डिग्री धारक को श्रमिक बना देती है और श्रमिक को श्रम का मूल्य नहीं दे पाती है ।ऐसी स्थिति में गांधी तकनीकी शिक्षा का रास्ता सुझाते हैं जिसमे शिक्षा का मापदंड डिग्री नहीं ज्ञान हो ताकि व्यक्ति अपने कार्य से अर्थ अर्जित आसानी से कर सके। </span><br style="font-family: sans-serif; font-size: 16px;" /><span style="font-family: sans-serif; font-size: 16px;">भारत ने सदा ही अपना सर्वोतम दुनिया को दिया है। यह वह धरती है, जहां बुद्ध ने जन्म लिया था। वही बुद्ध, जिन्हें मानने वाले करोड़ो देश के बाहर है तो मुठ्ठी भर देश के अन्दर है । कालांतर में यही मिटटी दुनिया को गांधी जैसा द्रष्टा सौंपती है लेकिन वह भी कही गुम हो जाता है। गांधी कहां है? क्यों हमारे अन्दर या हमारे सिद्धांतो में दिखाई नहीं देते? </span><br style="font-family: sans-serif; font-size: 16px;" /><span style="font-family: sans-serif; font-size: 16px;">भारत देश में जो गांधीवाद है क्या वह सच में उनकी राह पर चल रहा है ? कहीं गांधी खोया हुआ महात्मा तो नहीं ।क्या इस फरिश्ते की चमक अपनी ही धरती पर मिट रही है? सच है गांधी किताबो में गुम है जो निकल आते है कभी -कभी विशेष दिनों में । यह कैसी बिडम्बना है हम गांधी को अपनाना चाहते है उन्हें समझना चाहते है पर कहीं न कहीं भाग रहे है खुद से समस्याओं से । हमें खुद को जांचना होगा ।आने वाली पीढ़ी के लिए उन्हें वह सपने देने होंगे जिनका सपना बापू ने देखा था । क्या जवाब हम बच्चो को देंगे जब वो कहेंगे कि बापू जो अहिंसा का पाठ आप को पढ़ा गए थे तब भी इतना हिंसक समाज क्यों है? गांधी को वाद, विचार, सिद्धांत से मत जोडिये गांधी को इंसानियत से जोडिये क्योंकि यहीं से शुरुआत होगी बेहतर जीवन की, बेहतरीन समाज की.....। </span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://1.bp.blogspot.com/-ms7RWejt3Kk/Xd6OeJ0mT5I/AAAAAAAADzY/8jznBkCbn0oxkL4XNhdHVkgL9uvDlBZlACLcBGAsYHQ/s1600/IMG_20191127_202506.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="802" data-original-width="720" height="320" src="https://1.bp.blogspot.com/-ms7RWejt3Kk/Xd6OeJ0mT5I/AAAAAAAADzY/8jznBkCbn0oxkL4XNhdHVkgL9uvDlBZlACLcBGAsYHQ/s320/IMG_20191127_202506.jpg" width="287" /></a></div>
<br style="font-family: sans-serif; font-size: 16px;" /></div>
Dr Kiran Mishrahttp://www.blogger.com/profile/15153901070894116636noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-30380538581495979.post-68140980053560933172019-10-30T16:24:00.001+05:302019-10-30T16:24:42.355+05:30यात्रा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
<br />सभ्रम के साथ हम साथ यात्रा पर निकले राही है</div>
<div dir="ltr" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
<br /></div>
<div dir="ltr" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
कहीं से गुजरना और गंतव्य तक पहुंचना<br />दोनों यात्राएं अलग-अलग होती है<br />यात्रा में दूरी की जांच-पड़ताल नहीं की जाती<br />बस यात्रा की लहरों के<br />के साथ कदमताल मिलाया जाता है</div>
<div dir="ltr" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
<br /></div>
<div dir="ltr" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
जीवन के खुरदुराहट के भीतर<br />मन की अँगुलियों ने<br />यात्रा सुखद हो<br />इसलिए कितने ही रास्ते बनाएं<br />सारे संताप उलीचने की कोशिश की<br />और यात्रा जारी रखी</div>
<div dir="ltr" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
<br /></div>
<div dir="ltr" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
न जाने कब से यात्रा चल रही है<br />हर कोई यात्री है अपने सपनों के साथ<br />वो कहाँ भस्माभूत होते है सिर्फ चेहरा बदलते है<br />वक्त के साथ उनकी यात्रा भी चलती रहती है</div>
<div dir="ltr" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
<br /></div>
<div dir="ltr" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
सूर्य यात्रा के आधे रस्ते पर<br />अँधियारा दूर करता आगे बढ़ रहा है,<br />अंधियारा ,सितारों को रास्ता बताने के लिए यात्रा पर है</div>
<div dir="ltr" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
<br /></div>
<div dir="ltr" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
इश्क की बिसात पर रांझे कश्ती खे रहे है<br />रात आईने में बदलती है<br />पर बारिश सबके लिए नहीं होती</div>
<div dir="ltr" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
<br />चाँद हर यात्रा में बताता है इश्क की हक़ीक़तें<br />तब देह की यात्रा<br />पाक हो पहुँचती है आत्मा तक</div>
<div dir="ltr" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
<br /></div>
<div dir="ltr" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
सुदूर सितारों की भट्ठी से<br />धरती पर चली आई धूल की यात्रा<br />अज्ञात में सिमटी है</div>
<div dir="ltr" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
<br />मिट्टी की यात्रा उस बूँद के इंतज़ार में है जो जीवन को आगे बढ़ाएं।</div>
<div dir="ltr" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
पुरुष की देह से गुज़री एक बिंदु की यात्रा<br />स्त्री देह तक आकार अगर ख़त्म हो जाती तो<br />यात्रा के महत्त्व को कैसे समझते हम</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://1.bp.blogspot.com/-aLvyKvc0V90/Xblr1tF9SOI/AAAAAAAADok/WGjmNPeM2MsdmNmLncdJxzoo85hj9UBtwCLcBGAsYHQ/s1600/IMG_20190825_200148.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1493" data-original-width="1080" height="320" src="https://1.bp.blogspot.com/-aLvyKvc0V90/Xblr1tF9SOI/AAAAAAAADok/WGjmNPeM2MsdmNmLncdJxzoo85hj9UBtwCLcBGAsYHQ/s320/IMG_20190825_200148.jpg" width="231" /></a></div>
<div dir="ltr" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
<br /></div>
<div dir="ltr" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
कोई भी यात्रा यूं ही नहीं होती<br />प्रशांत नयन से भाद्रपद के चंद्रमा तक<br />साँस से आस तक।<br />------------------------------<wbr></wbr>-------------</div>
</div>
Dr Kiran Mishrahttp://www.blogger.com/profile/15153901070894116636noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-30380538581495979.post-62665349437933864022019-10-16T20:44:00.000+05:302019-10-16T20:44:41.501+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: left;">
मेरी प्रकृति और तुम्हारी प्रकृति से</div>
<div style="text-align: left;">
हमारा सह - अस्तित्व बना है.</div>
<div style="text-align: left;">
तुमने मेरे अन्दर प्रेम के बीज बोये है </div>
<div style="text-align: left;">
और मैने प्रेम पूर्ण उत्पादन करा है </div>
<div style="text-align: left;">
तुम्हे दी है प्रसन्नता की फसल </div>
<div style="text-align: left;">
तुम्हारा प्रेम मेरी रचना मे हमेशा प्रवाहमान रहा है </div>
<div style="text-align: left;">
कभी वृक्ष, वन, सागर,
</div>
<div style="text-align: left;">
कभी परबत, हवा, बादल मे</div>
<div style="text-align: left;">
बस इतना करना </div>
<div style="text-align: left;">
अपने अंतर्मन के सत्य से</div>
<div style="text-align: left;">
मेरे मन को बाँध कर </div>
<div style="text-align: left;">
मेरे भौतिक मन को </div>
<div style="text-align: left;">
प्राकृतिक मन मे बदल देना </div>
</div>
Dr Kiran Mishrahttp://www.blogger.com/profile/15153901070894116636noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-30380538581495979.post-69431960386403101672019-10-03T17:57:00.000+05:302019-10-03T17:57:01.392+05:30षोडशोपचार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; font-family: arial; font-size: 17px; text-align: justify;">लोक संस्कृति हो या वैदिक संस्कृति मानव के मन मे जब जब इच्छा उठेगी तब तब वो उसकी पूर्ति के लिए ईश्वर का आहवान करेगा आराधना का तरीका भिन्न हो सकता है जैसे पूर्णरूप से भौतिक या दिव्य आनंद से युक्त या पूर्ण आधयात्मिक।</span><br />
<div dir="auto" style="font-family: arial; font-size: 17px;">
</div>
<div dir="auto" style="font-family: arial; font-size: 17px;">
<span style="color: #222222; font-family: -apple-system, blinkmacsystemfont, "segoe ui", roboto, lato, helvetica, arial, sans-serif; font-size: 16px; text-align: justify;"><b>हिन्दू धर्म </b></span><span style="color: #222222; font-family: -apple-system, blinkmacsystemfont, "segoe ui", roboto, lato, helvetica, arial, sans-serif; font-size: 16px; text-align: justify;">में किसी भगवान को प्रसन्न करने के लिए कई प्रकार की पूजा के विधान है पर मुख्य रूप से </span><span style="color: #222222; font-family: -apple-system, blinkmacsystemfont, "segoe ui", roboto, lato, helvetica, arial, sans-serif; font-size: 16px;">पूजन के मुख्य छ: प्रकार है--</span></div>
<div dir="auto">
<ul style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: none; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; border: 0px; color: #222222; font-family: -apple-system, blinkmacsystemfont, "segoe ui", roboto, lato, helvetica, arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: inherit; list-style-position: initial; margin: 0px; padding: 0px 0px 0px 1em; vertical-align: baseline;">
<li style="background: none; border: 0px; font-family: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: inherit; margin: 0px 0px 10px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">पंचोपचार (5 प्रकार)</li>
<li style="background: none; border: 0px; font-family: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: inherit; margin: 0px 0px 10px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">दशोपचार (10 प्रकार)</li>
<li style="background: none; border: 0px; font-family: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: inherit; margin: 0px 0px 10px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">षोडशोपचार (16 प्रकार)</li>
<li style="background: none; border: 0px; font-family: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: inherit; margin: 0px 0px 10px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">द्वात्रिशोपचार (32 प्रकार)</li>
<li style="background: none; border: 0px; font-family: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: inherit; margin: 0px 0px 10px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">चतुषष्टि प्रकार (64 प्रकार)</li>
<li style="background: none; border: 0px; font-family: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: inherit; margin-bottom: inherit; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">एकोद्वात्रिंशोपचार (132 प्रकार)</li>
</ul>
<div>
<span style="color: #222222; font-family: -apple-system, blinkmacsystemfont, segoe ui, roboto, lato, helvetica, arial, sans-serif;"><span style="font-size: 16px;"><br /></span></span></div>
<div>
<h3 style="background-color: white; border: 0px; color: #1e73be; font-family: inherit; font-size: 20px; font-style: inherit; line-height: 1.2em; margin: 0px 0px 20px; padding: 0px; text-align: center;">
षोडशोपचार<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://1.bp.blogspot.com/-cSMjN3Addx4/XZXo_nTngzI/AAAAAAAADWw/pwk5vzQRTh0LQ2FMwjBId5U4fdBoxrgswCLcBGAsYHQ/s1600/IMG_20191003_174125.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1317" data-original-width="1080" height="320" src="https://1.bp.blogspot.com/-cSMjN3Addx4/XZXo_nTngzI/AAAAAAAADWw/pwk5vzQRTh0LQ2FMwjBId5U4fdBoxrgswCLcBGAsYHQ/s320/IMG_20191003_174125.jpg" width="262" /></a></div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://1.bp.blogspot.com/-V_p560vikno/XZXo_ujvJDI/AAAAAAAADW0/xvJrb-Y5fZ0yqF92gWe4OdL9o7b78KLugCLcBGAsYHQ/s1600/IMG_20191003_174154.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1369" data-original-width="1077" height="320" src="https://1.bp.blogspot.com/-V_p560vikno/XZXo_ujvJDI/AAAAAAAADW0/xvJrb-Y5fZ0yqF92gWe4OdL9o7b78KLugCLcBGAsYHQ/s320/IMG_20191003_174154.jpg" width="251" /></a></div>
पूजन का कृत्य</h3>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
<span style="border: 0px; font-weight: 700; margin: 0px; padding: 0px;">१. प्रथम उपचार : देवता का आवाहन करना (देवता को बुलाना)</span></div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
‘देवता अपने अंग, परिवार, आयुध और शक्तिसहित पधारें तथा मूर्ति में प्रतिष्ठित होकर हमारी पूजा ग्रहण करें’, इस हेतु संपूर्ण शरणागतभाव से देवता से प्रार्थना करना, अर्थात् उनका `आवाहन’ करना । आवाहन के समय हाथ में चंदन, अक्षत एवं तुलसीदल अथवा पुष्प लें ।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
इ. आवाहन के उपरांत देवता का नाम लेकर अंत में ‘नमः’ बोलते हुए उन्हें चंदन, अक्षत, तुलसीrदल अथवा पुष्प अर्पित कर हाथ जोडें ।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
टिप्पणी – १. देवता के रूप के अनुसार उनका नाम लें, उदा. श्री गणपति के लिए ‘श्री गणपतये नमः ।’, श्री भवानीदेवी के लिए ‘श्री भवानीदेव्यै नमः ।’ तथा विष्णु पंचायतन के लिए (पंचायतन अर्थात् पांच देवता; विष्णु पंचायतन के पांच देवता हैं – श्रीविष्णु, शिव, श्री गणेश, देवी तथा सूर्य) ‘श्री महाविष्णु प्रमुख पंचायतन देवताभ्यो नमः ।’ कहें ।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
<span style="border: 0px; font-weight: 700; margin: 0px; padding: 0px;">२. दूसरा उपचार : देवता को आसन (विराजमान होने हेतु स्थान) देना</span></div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
देवता के आगमन पर उन्हें विराजमान होने के लिए सुंदर आसन दिया है, ऐसी कल्पना कर विशिष्ट देवता को प्रिय पत्र-पुष्प आदि (उदा. श्रीगणेशजी को दूर्वा, शिवजी को बेल, श्रीविष्णु को तुलसी) अथवा अक्षत अर्पित करें ।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
<span style="border: 0px; font-weight: 700; margin: 0px; padding: 0px;">३. तीसरा उपचार : पाद्य (देवता को चरण धोने के लिए जल देना;पाद-प्रक्षालन) </span></div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
देवता को ताम्रपात्र में रखकर उनके चरणों पर आचमनी से जल चढाएं ।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
<span style="border: 0px; font-weight: 700; margin: 0px; padding: 0px;">४. चौथा उपचार : अघ्र्य (देवता को हाथ धोने के लिए जल देना; हस्त-प्रक्षालन)</span></div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
आचमनी में जल लेकर उसमें चंदन, अक्षत तथा पुष्प डालकर, उसे मूर्ति के हाथ पर चढाएं ।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
<span style="border: 0px; font-weight: 700; margin: 0px; padding: 0px;">५. पांचवां उपचार : आचमन (देवता को कुल्ला करने के लिए जल देना; मुख-प्रक्षालन)</span></div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
आचमनी में कर्पूर-मिश्रित जल लेकर, उसे देवता को अर्पित करने के लिए ताम्रपात्र में छोडें ।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
<span style="border: 0px; font-weight: 700; margin: 0px; padding: 0px;">६. छठा उपचार : स्नान (देवता पर जल चढाना)</span></div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
धातु की मूर्ति, यंत्र, शालग्राम इत्यादि हों, तो उन पर जल चढाएं । मिट्टी की मूर्ति हो, तो पुष्प अथवा तुलसीदल से केवल जल छिडवेंâ । चित्र हो, तो पहले उसे सूखे वस्त्र से पोंछ लें । तदुपरांत गीले कपडेसे, पुनः सूखे कपडे से पोंछें । देवताओं की प्रतिमाओं को पोंछने के लिए प्रयुक्त वस्त्र स्वच्छ हो । वस्त्र नया हो, तो एक-दो बार पानी में भिगोकर तथा सुखाकर प्रयोग करें । अपने कंधे के उपरने से अथवा धारण किए वस्त्र से देवताओं को न पोंछें ।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
अ. देवताओं को पहले पंचामृत से स्नान करवाएं । इसके अंतर्गत दूध, दही, घी, मधु तथा शक्कर से क्रमानुसार स्नान करवाएं । एक पदार्थ से स्नान करवाने के उपरांत तथा दूसरे पदार्थ से स्नान करवाने से पूर्व जल चढाएं । उदा. दूध से स्नान करवाने के उपरांत तथा दही से स्नान करवाने से पूर्व जल चढाएं ।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
आ़ तदुपरांत देवता को चंदन तथा कर्पूर-मिश्रित जल से स्नान करवाएं ।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
इ. आचमनी से जल चढाकर सुगंधित द्रव्य-मिश्रित जल से स्नान करवाएं ।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
ई. देवताओं को उष्णोदक से स्नान करवाएं । उष्णोदक अर्थात् अत्यधिक गरम नहीं, वरन् गुनगुना पानी ।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
उ. देवताओं को सुगंधित द्रव्य-मिश्रित जल से स्नान करवाने के उपरांत गुनगुना जल डालकर महाभिषेक स्नान करवाएं । महाभिषेक करते समय देवताओं पर धीमी गति की निरंतर धारा पडती रहे, इसके लिए अभिषेकपात्र का प्रयोग करें । संभव हो तो महाभिषेक के समय विविध सूक्तों का उच्चारण करें ।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
ऊ. महाभिषेक के उपरांत पुनः आचमन के लिए ताम्रपात्र में जल छोडेें तथा देवताओं की प्रतिमाओं को पोंछकर रखें ।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
<span style="border: 0px; font-weight: 700; margin: 0px; padding: 0px;">७. सातवां उपचार : देवता को वस्त्र देना</span></div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
देवताओं को कपास के दो वस्त्र अर्पित करें । एक वस्त्र देवता के गले में अलंकार के समान पहनाएं तथा दूसरा देवता के चरणों में रखें ।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
<span style="border: 0px; font-weight: 700; margin: 0px; padding: 0px;">८. आठवां उपचार : देवता को उपवस्त्र अथवा यज्ञोपवीत (जनेऊ देना) अर्पित करना </span></div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
पुरुषदेवताओं को यज्ञोपवीत (उपवस्त्र) अर्पित करें ।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
<span style="border: 0px; font-weight: 700; margin: 0px; padding: 0px;">९-१३. नौंवे उपचार से तेरहवें उपचारतक, पंचोपचार अर्थात देवता को गंध (चंदन) लगाना, पुष्प अर्पित करना, धूप दिखाना (अथवा अगरबत्ती से आरती उतारना), दीप-आरती करना तथा नैवेद्य निवेदित करना ।</span></div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
नैवेद्य दिखाने के उपरांत दीप-आरती और तत्पश्चात् कर्पूर-आरती करें ।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
<span style="border: 0px; font-weight: 700; margin: 0px; padding: 0px;">१४. चौदहवां उपचार : देवता को मनःपूर्वक नमस्कार करना</span></div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
<span style="border: 0px; font-weight: 700; margin: 0px; padding: 0px;">१५. पंद्रहवां उपचार : परिक्रमा करना</span></div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
नमस्कार के उपरांत देवता के सर्व ओर परिक्रमा करें । परिक्रमा करने की सुविधा न हो, तो अपने स्थान पर ही खडे होकर तीन बार घूम जाएं ।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
<span style="border: 0px; font-weight: 700; margin: 0px; padding: 0px;">१६. सोलहवां उपचार : मंत्रपुष्पांजलि</span></div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
परिक्रमा के उपरांत मंत्रपुष्प-उच्चारण कर, देवता को अक्षत अर्पित करें । तदु पूजा में हमसे ज्ञात-अज्ञात चूकों तथा त्रुटियों के लिए अंत में देवतासे क्षमा मांगें और पूजा का समापन करें । अंत में विभूति लगाएं, तीर्थ प्राशन करें और प्रसाद ग्रहण करें ।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px; font-family: "open sans", sans-serif; font-size: 17px; margin-bottom: 1.5em; padding: 0px; text-align: justify;">
<span style="font-family: -apple-system, blinkmacsystemfont, "segoe ui", roboto, oxygen-sans, ubuntu, cantarell, "helvetica neue", sans-serif; font-size: 18px;">मानवीय अंतःकरण में सत्प्रवृत्तियों, सद्भावनाओं, सुसंस्कारों के जागरण, आरोपण, विकास व्यवस्था आदि से लेकर महत् चेतना के वर्चस्व बोध कराने, उनसे जुड़ने, उनके अनुदान ग्रहण करने तक के महत्त्वपूर्ण क्रम में कर्मकाण्डों की अपनी सुनिश्चित उपयोगिता है । इसलिए न तो उनकी उपेक्षा की जानी चाहिए और न उन्हें चिह्न पूजा के रूप में करके सस्ते पुण्य लूटने की बात सोचनी चाहिए । कर्मकाण्ड के क्रिया-कृत्यों को ही सब कुछ मान बैठना या उन्हें एकदम निरर्थक मान लेना, दोनों ही हानिकारक हैं । उनकी सीमा भी समझें, लेकिन महत्त्व भी न भूलें । संक्षिप्त करें, पर श्रद्धासिक्त मनोभूमि के साथ ही करें, तभी वह प्रभावशाली बनेगा और उसका उद्देश्य पूरा होगा ।</span></div>
</div>
</div>
</div>
Dr Kiran Mishrahttp://www.blogger.com/profile/15153901070894116636noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-30380538581495979.post-19602991043563333332019-08-10T13:21:00.000+05:302019-08-10T13:23:57.364+05:30सावन और उद्गगीत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
<span style="color: #3f3e3e; font-family: , "arial" , "helvetica" , sans-serif; font-size: 16px;">धरा की नैसर्गिक सौन्दर्यता देख लोक की मनः भावना करोड़ो-करोड़ मुखों से पावस गीतों के रूप में फूट पड़ती है | वर्षा ऋतू में भारत के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में कजरी, हिन्दुली, चौमासा, सावन गीत ,वन्य प्रदेशों में टप्पा, झोलइयां, मलेलबा आदि तमाम तरह के मधुर गीतों से प्रकृति गुंजायमान हो जाती है |</span></div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
<span style="color: #3f3e3e; font-family: , "arial" , "helvetica" , sans-serif; font-size: 16px;">लेकिन ये गीत आए कहां से इन्हें किसने रचा....?</span></div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
<span style="color: #3f3e3e; font-family: , "arial" , "helvetica" , sans-serif; font-size: 16px;"><br /></span></div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
<div dir="auto">
<span style="color: #3f3e3e; font-family: , "arial" , "helvetica" , sans-serif; font-size: 16px;">उपनिषद के रचयिताओं ने </span><span style="color: #3f3e3e; font-family: , "arial" , "helvetica" , sans-serif; font-size: 16px;">उद्गगीत</span><span style="color: #3f3e3e; font-family: , "arial" , "helvetica" , sans-serif; font-size: 16px;"> का सृजन किया उनका संबंध अन्न प्राप्ति के विचार से ही था असल मे उद का अर्थ था श्वास ,गी का अर्थ था वाक्र और था का अर्थ था अन्न अथवा भोजन।(लोकायत)</span></div>
<div dir="auto">
<span style="color: #3f3e3e; font-family: , "arial" , "helvetica" , sans-serif; font-size: 16px;">अन्न पर स्थित सारे विश्व की मंगलकामना करने का विचार ही कितना मनमोहक है।</span></div>
<div dir="auto">
<span style="color: #3f3e3e; font-family: , "arial" , "helvetica" , sans-serif; font-size: 16px;"><br /></span></div>
<div dir="auto">
<span style="color: #3f3e3e; font-family: , "arial" , "helvetica" , sans-serif; font-size: 16px;">ऋतु प्रेम, उल्लास, उछाह साथ ही करुणा की अभिव्यक्ति की ऋतू है ऐसी ही किसी ऋतु में रिमझिम बारिश में डूबे खेत, हरियाली का दुशाला ओढ़े पर्वत, कल - कल करती नदियां और झूमते दरख्त ऐसे में श्रम में लीन किसी तरुनी ने काले- काले बादलों के समूह को जाता देख तान छेड़ी होगी जिसमे प्रेम के साथ-साथ विरह भी था और थी कहीं न कहीं अन्न प्राप्ति की भावना जो श्रम की थकान से मुक्ति का मनोविज्ञान भी था।</span></div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
<div dir="auto">
<span style="background-color: white; font-family: , "blinkmacsystemfont" , "segoe ui" , "roboto" , , "ubuntu" , "cantarell" , "helvetica neue" , sans-serif; font-size: small; text-align: justify;">इस सुंदर धरती पर अपना जीवन खुद गढ़ने का अद्भुत वरदान ईश्वर ने मानव को दिया है इसलिए जरूरत इस बात की है कि हम इस धरती को मौसम के अनुकूल रहने दे तभी सावन आएगा बादल छाएंगे और तरुणी गा उठेगी--- </span></div>
<div dir="auto">
<span style="background-color: white; font-family: , "blinkmacsystemfont" , "segoe ui" , "roboto" , , "ubuntu" , "cantarell" , "helvetica neue" , sans-serif; font-size: small; text-align: justify;"><br /></span></div>
<div dir="auto">
<span style="background-color: white; text-align: justify;"><span style="font-family: , "blinkmacsystemfont" , "segoe ui" , "roboto" , , "ubuntu" , "cantarell" , "helvetica neue" , sans-serif; font-size: small;"></span></span><br />
<div dir="auto">
<span style="background-color: white; text-align: justify;"><span style="font-family: , "blinkmacsystemfont" , "segoe ui" , "roboto" , , "ubuntu" , "cantarell" , "helvetica neue" , sans-serif; font-size: small;">रसे रसे पानी बरसे हुलसे है परान </span></span></div>
<span style="background-color: white; text-align: justify;"><span style="font-family: , "blinkmacsystemfont" , "segoe ui" , "roboto" , , "ubuntu" , "cantarell" , "helvetica neue" , sans-serif; font-size: small;">
</span></span>
<div dir="auto">
<span style="background-color: white; text-align: justify;"><span style="font-family: , "blinkmacsystemfont" , "segoe ui" , "roboto" , , "ubuntu" , "cantarell" , "helvetica neue" , sans-serif; font-size: small;">रसे रसे बाढ़े, खेतवा में हरियर धान</span></span></div>
<span style="background-color: white; text-align: justify;"><span style="font-family: , "blinkmacsystemfont" , "segoe ui" , "roboto" , , "ubuntu" , "cantarell" , "helvetica neue" , sans-serif; font-size: small;">
<div dir="auto">
रसे रसे बोले धनिया रसभरी बतिया </div>
<div dir="auto">
रसे रसे भीजे, पोरे पोरे देहिया जुड़ान </div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
मटियारी गीत और निरबंसियों की कथा ठहर कर सुनने के लिए प्रकृति को सुनना जरूरी है </div>
<div dir="auto">
बादर बुनियाते रहे... मानस .. के स्वर और तेज होते रहे बस प्रकृति से यही कामना है--</div>
<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
'घन घमंड नभ गरजत घोरा ...प्रिया हीन डरपत मन मोरा' ।</div>
<div>
<br /></div>
</span></span><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://1.bp.blogspot.com/-0epQQhyO2B0/XU5374AN7-I/AAAAAAAACUc/AcaEa2C4lakZlPTLuFpWAACkuiMAnVdhQCLcBGAs/s1600/IMG_20190810_085338.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1330" data-original-width="680" height="320" src="https://1.bp.blogspot.com/-0epQQhyO2B0/XU5374AN7-I/AAAAAAAACUc/AcaEa2C4lakZlPTLuFpWAACkuiMAnVdhQCLcBGAs/s320/IMG_20190810_085338.jpg" width="163" /></a></div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://1.bp.blogspot.com/-McKiiBgJ2Ew/XU5377HdErI/AAAAAAAACUY/i0DGCpAJNMYNP7QH0rsMaUGvg9sNhFhUACLcBGAs/s1600/IMG_20190810_085411.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1362" data-original-width="1080" height="320" src="https://1.bp.blogspot.com/-McKiiBgJ2Ew/XU5377HdErI/AAAAAAAACUY/i0DGCpAJNMYNP7QH0rsMaUGvg9sNhFhUACLcBGAs/s320/IMG_20190810_085411.jpg" width="253" /></a></div>
</div>
</div>
</div>
</div>
Dr Kiran Mishrahttp://www.blogger.com/profile/15153901070894116636noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-30380538581495979.post-50065298817644767292019-07-19T11:52:00.001+05:302019-07-19T11:52:35.744+05:30ज़रा पढ़ना दिल की ये किताब आहिस्ता आहिस्ता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="auto" style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: sans-serif; font-size: 13.696px;">
बचपन में मालवा के बिताए सालों में मां के साथ जब भी बाज़ार जाती थी तो काकीजी के हाथ से बनी डबल लौंग सेव खाना कभी नही भूलती वो मुझे इतने पसंद थे कि उनके लिए मैं कुछ भी छोड़ सकती थी। लेकिन खाते ही जो मुंह जलता सो बस की बोलती बंद ।</div>
<div dir="auto" style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: sans-serif; font-size: 13.696px;">
जबान की बोलती बंद आंखे बोलती वो भी आंसुओ की भाषा.... तब काकी रामजी की मूरत के सामने से मिश्री की डली उठा कर मेरे मुहं में रख देती... अब दोनों स्वाद मेरी जबान पर होते।</div>
<div dir="auto" style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: sans-serif; font-size: 13.696px;">
मिश्री की डली मैं ने भी उठा कर अपने मुंह में रखी मुझे क्या पता था डबल लौंग वाले सेव का स्वाद भी चला आएगा....😊 </div>
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बाप रे बाप तुम्हारा गुस्सा पहली बार जब मेरा इससे सामना हुआ तो... तुम किसी को डांट रहे थे और मैं अंदर ही अंदर कांप रही थी कुछ कहना चाहती थी लेकिन सब भूल गई थी समझ नही आ रहा था पहली बार मोहिनी मुस्कान लिए जो मिला था वो क्या यही है....। लो मैं कहां फंस गई।😊</div>
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मिश्री की डाली कब की घुल गई थी अब केवल लौंग का स्वाद ही जुबा पर था। लेकिन प्यारा था।</div>
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न तुम भाई, न बंधु, न सखा न...।</div>
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लेकिन मन साध रहा था शायद कोई रिश्ता....।</div>
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गंगा के मैदान पर पहली बार तुम्हें देखा तो जाना फाल्गुन पंचाग का अंतिम महीना नही पहला महीना होता है</div>
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कुछ था जो मन से चित्त की तरफ चलने लगा था ।</div>
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आसमान कितना ऊपर था धरती कितनी नीचे कुछ पता ही नही चला जैसे हर तरफ क्षितिज ही क्षितिज....जाती ठंड मुझ में एक सिहरन छोड़े जा रही थी।</div>
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अजीब जगह थी जहां तुम मिले थे वहां अलसाई सुबह थी उदास शाम थी और तन्हा रात ,लेकिन रात की सारी उदासी सुबह की मीठी आवाज़ में गुम हो जाती... कितनी कशिश थी उस बुलावे में.... उफ़्फ़</div>
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दोपहर की रौनकों का कस्बा है ये जगह जहां एक दिन दोपहर में मैं ने तुम्हारी आहट को पहचाना था आहट क्या थी रिफ़त- ए- चाहत थी जो लम्हा लम्हा रूह में समा रही थी.... पल पल रहत में दिन निकल रहे थे।</div>
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धूप के साए कम होने लगते थे कि फिर आने के लिए तुम चले जाते और मैं तुम्हें देखती उसी खिड़की से । बस उसके बाद शुरू होता तुम्हें देखने का सिलसिला तुम्हारा आना पल पल देखती ये जानते हुए भी कि तुम अभी नही आओगे।</div>
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तुम्हारे आने की आहट कैसे तो मन मे गुदगुदी लाती मैं अपने को बमुश्किल संभाल पाती....।</div>
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फ़क़त बिजनिस में उलझे तुम, तुम कविता लिखने वाली लड़की के मन की बात पता नही समझते थे या नही लेकिन डूबता सूरज दिखाने पर तुम्हारी मुस्कान गहरी होती ।कभी कभी मेरी कुछ कविता सी बातें पढ़ते तुम मुझे कोई और ही लगते.... तुम भी अब रच रहे थे ,कविता नही मुझे और मैं रच रही थी पल- पल हर पल मन में पलते तुम्हारे अहसासों को।</div>
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कैसे तुम्हें बताती कि तुम्हारे साथ बिताए पल सितारों की तरह टंक गये है मेरे अंतस में या </div>
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कि मेरी सीधी- सुलझी बातें और तुम्हारा उलझे- उलझे मुझे देखना </div>
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कि मेरी ढेर सी अभिलाषाएं कि तुम्हारी विवशताएं....।</div>
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कि वो दो आंखे जो मुझे सच बयान करती थी और जिन्हें मैं चूमना चाहती हूं मरने से पहले।</div>
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कि तुम्हारे सामने झुकता मेरा सर लाज थी उस प्यार की जो अब मन से चित्त में उतर चुका था। </div>
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कि जब भी मैं तुम्हारे पीछे- पीछे चलती मैं मन ही मन रचती अपने अंदर पग पग तुम्हारे प्यार को ..।</div>
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<br /></div>
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ढलता हुआ सूरज मैं देखा करती और तुम अपने लैपटॉप में काम करते रहते शायद खुद से मुझ से बेख़बर और मैं हर लम्हा संभाल रही होती इस आशा में कि कभी तो तुम उन अहसास से गुजरोगे जिन से मैं गुजर रही हूं।</div>
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प्रेम तो प्रकृति है</div>
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ये कोई व्यवहार थोड़ी है कि,</div>
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तुम करो तो ही मै भी करू</div>
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तुम्हारी आहट से धड़कते इस दिल मे ढ़ेरो स्पर्श लिए मैं जा रही हूं ये जानते हुए कि हमारे बीच मे कोई वादा नही वादा जैसा कोई रिश्ता नही फिर भी कुछ ख्वाहिशें थी , थे कुछ सपनें भी जो मैं ने अंजाने ही में खुली आंखों से देखे थे ।</div>
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यकीन करो मेरा में ने आंखे बंद भी की लेकिन न जाने कब कैसे तुम उनमे समा गये।</div>
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पता ही नही चला....।</div>
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ख्वाहिश थी कि हल्की बारिश में एक लंबी सड़क पर तुम मेरा हांथ पकड़ कर चलो और बारिश की बूंदे हमारे तन मन को भिंगो दे </div>
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कि तुम बाइक चलाओ और मैं तुम्हारे पीछे बैठी तुम्हारी पीठ पर अपना सर रखें तुम्हें रूह तक महसूस करूं।</div>
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कि किसी गुमनाम से थियेटर में हम साथ- साथ हो और लाइट बंद होते ही हौले से तुम मेरा हांथ थाम लो </div>
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कि मैं तुम्हें सोता हुआ देखूं.....।</div>
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कि कभी- कभी तुम्हारी डांट खा कर बच्चों की तरह तुमसे ही लिपट जाऊं</div>
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कि किसी दिन मैं इठलाकर तुम से रंग बिरंगी चुड़िया लेने के लिए कहूं और तुम उन्हें ले कर मेरे हांथो में पहना दो </div>
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कि तुम्हारे नाम की मेहंदी लगा कर तुम्हें दिखाऊं </div>
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कि तुम किसी चांदनी रात में मोगरे की वेणी धीरे से मेरे बालों में लगा दो ।</div>
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तुम जानते हो न मुझे सफेद रंग पसंद है.....।</div>
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कि किसी दिन दूर कहीं किसी जगह तुम्हारी पीठ पर अपने प्यार का चुम्बन टांक दूं </div>
<div dir="auto" style="background-color: #fefdfa; color: #202020; font-family: sans-serif; font-size: 13.696px;">
कि....।</div>
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ख्वाहिशों का क्या ... जानती हूं मौन का धर्य साथ लेकर चलना ही होगा इस अधूरे प्रणय बंध में किस ठौर कहां तुमको जोडू ,बोलूं तो क्या बोलूं।</div>
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अब विदा लेती हूं दोस्त विदाई के इन पलों के शुक्रिया करना चाहती हूँ शुक्रिया करना चाहती हूँ उस आहट का जिसके आने से जीने की उमंग आती थी, जिंदगी में सलीका आता था, आती थी रोहानी खुशबू और आता था अपने को शेष रखने का भाव।</div>
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यहां से सिर्फ मैं नही जाऊंगी दोस्त 'हम' जाएंगे कहां छोड़ा तुमने कभी अकेला न अलसाई सी सुबह में न भींगती रातों में न पूर्ण चांद में न अमावस में।अब हर पल तुम मेरे साथ ही रहोगे ।</div>
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जानती हूं जीवन की आपा-धापी गंगा छोड़ते ही शुरू होगी लेकिन इस बार इस आपा-धापी में पुर-सुकूँ मिलेगा</div>
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चांद अब पूरी कलाएं दिखाएगा अमावस की काली रातें मेरे हिस्से नही होंगी।</div>
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अब विदा लेती हूं दोस्त तुम्हारी प्यारी सी मुस्कान से, इंतज़ार करती रहूंगी कि मुस्कान से बोल फूटे और तुम वो कहा दो जो में सुनना चाहती हूँ।</div>
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विदा अब शायद अलविदा।<br />
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Dr Kiran Mishrahttp://www.blogger.com/profile/15153901070894116636noreply@blogger.com8