Monday, October 9, 2017

भाद्रपद के चाँद सा प्रेम

प्रेम की निर्जनता में उदासी हमेशा स्लेटी रंग की क्यों होती है?
यही पूछा था न मैं ने
और तुमने हस कर कहा था
बिना संकट के कुछ भी सार्थक की प्रति संभव कहां,
संभव तभी है
जब मन के पथ में दूसरे की गंध भरी हो
शारदीय धूप का केसरिया रंग किन्हीं अक्षांशो पर खिलाना ही होता है मयूख....
सच कहा था तुमने
प्रेम की परिणति तो पहुँच जाने में ही होती है
चाहे इतिहास बने या वर्त्तमान
बस इतना रहे की
मन की निर्जनता में भाद्रपद के चाँद सा झलकता रहे।

1 comment:

  1. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों के साथ खुबसूरत रचना...

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