Monday, July 24, 2017

खड़कती खिड़कियां

दुनिया की सारी चीख़ें मेरे जहान में है
जेहन में रहना कोई अच्छी बात नहीं
इससे मांगने का डर रहता है
इंसाफ दर्द देता है

मेरे अंदर एक चुप्पी है
जिसे सुनकर
खिड़कियां खड़कती है
मैं ने एक हिमाकत की
खिड़कियां खोलने की
उसूलों ने मुझे नेस्तनाबूत कर दिया

अब खंडहर भी नहीं
सिर्फ चौकटे बचे है
आश्चर्य जिनकी नीव में
आज भी "हैं" दबा है

वो बरगद के नीचे बैठ पीर
जो असल में क़यामत से बैठा कोई फक्कड़ है
कहता है मुझसे
मन को बांधो
बांध मन को देखा मैं ने ज्यों ही
उस पार तमाम हैं'जमा हो
फातिया पढ़ रहे है।



5 comments:

  1. दिल के जज्बातों शब्द दे दिए ...

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  2. Kiran ki duniya mujhe bula rahi hai...khirkiyan khatkhata rahi hain.

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  3. Kiran ki duniya mujhe bula rahi hai...khirkiyan khatkhata rahi hain.

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  4. आप सब का बहुत- बहुत आभार

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