Monday, April 10, 2017

एक ख़त जिंदगी के नाम

प्यारी  जिंदगी
कहनो को तुम हमारी हो लेकिन पल-पल लहरो की तरह आती जाती तुम्हारी हर लहर पर अलग-अलग नाम लिखा है और इस कदर लिखा है कि कभी-कभी लगता है तुम सचमुच में हमारी ही हो या किसी और की।
सुनो जिंदगी कुछ सपाट रहों पर हमारे कदमों के निशा होते है कभी सपाट रास्तों से पगडंडियों पर उतरना चाहा तो आड़े आया आड़ा-टेढ़ा दस्तूर किसने बनाये कहो तो
तुम से याराना निभाने के लिए हमने उन दस्तूरों को भी माना जो दस्तूर कम दस्ताने जंजीर ज्यादा थे और उनमें ढेरों रंग भरे।
जानती हो जिंदगी हम औरतें , लडकिया इंद्रधनुष होती है तुम जैसे ही जरा सी चमकती हो जिंदगी वैसे ही हम इंद्रधनुष बन खिल जाते है और हर गली हर घर को अपने रंगों से सराबोर कर देते है ।
लेकिन ये क्या यारा जिंदगी ,जैसे ही हम बंधन में बंधते है हमारे रंग में लहू का रंग मिला हमें रंगहीन बना बहा दिया जाता है।
बंधन इतने कसे जाते है कि एक दिन हम सिर्फ रस्सी रहा जाते है और ता उम्र निचुड़ते है अरगनी पर ।
भयभीत आँखे और अनिच्छा के साथ कांपती रातों का सामना करना ख़त्म नहीं होता हर रोज रात-दिन स्वाभिमान की किरचन बटोरते हम खुद एक दिन बुहार दिये जाते है।
जिंदगी व्यथा की कथा तो बहुत है साथ में है ढेरो अनुत्तरीन प्रश्न लेकिन मेरा तुम से एक ही प्रश्न है हम कब तक ड्योढ़ी बने रहेंगे ? बनेगे क्या कभी दस्तक ? 

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