Thursday, March 2, 2017

आग के दरिया में दो मैना

होना तो ये था
पाबंद बन जाने थे माथे पर
जलाना था दिया
जाना था तकिया पर
ये पूछने
दरिया में आग क्यों अमृत क्यों नहीं
शायद दो मैना दिख जाती
लेकिन झुकना न आया
फिर मारे पत्थर दिल पर
खौफ़ की चक्की चलाई
सोचा तो ये भी था
अब-ए-चश्म में नहा कर
पता चलेगा
दिल का जला क्या पता देगा
कुछ आंखो में
जुगनुओं की तरह टिमटिमाया
फिर गायब
खुदाई में मिला
आत्मा का पता नहीं
आम दस्तूर
आग के दरिया से पार नहीं पाया
राख का पंछी बन
भटक रहा है वीराने में
जहां न चुम्बकत्व है
न गंध है
न सूर्य
अब कफ़स में मैना
पैगाम आए तो कैसे।
-----------------------------
तकिया- फकीरों-दरवेशों का निवास-स्थान
अब-ए-चश्म- आंसू


No comments:

Post a Comment