Thursday, June 30, 2016

गंतव्य

स्फटिक की छत कुछ देर पहले की बारिश से धुल कर किसी नायिका की हीरे की लौंग सी चमक रही है । छत के कोने पर रातरानी की डाल जैसे चूमना चाहती है उन सफेद लिहाफ को जो आधे खुले पडे है। अभी अभी हवा के हल्के झोके से लिहाफ का आंचल रातरानी ने भर दिया है। ऊपर अंबर में बड़े से बादलो के समूह से एक छोटी बदली अभी अभी अलग हो चंदा को अपने आगोश में लेकर अपनी स्मित मुस्कान फेक धरती पर दूर कही किसी घर की छत पर बैठी नायिका की हया को आड़ दे रही है ।
एक सरसराहट सी हुई है रेशमी आँचल किसी की सांसो से हिला है चकित नयनों ने ऊपर उठने की हिमाकत अभी की ही थी कि पास के बरगद पर किसी पंक्षी ने ख़ामोशी को सुर दिये है और अनजाने में ही नायिका की दिल की धडकनों को बढ़ा दिया है शायद मंद समीर ने नायिका की घबरहाट को भांप लिया है और उसने हल्के से डोल कर  पास बैठे अहसासों  को मंजू सुरभि थमा कर अपनी रहा ली है  थमने थामने के क्रम में नायिका की नथनी हिली है तो पास हिला है एक दिल।
दूर इंजन ने सीटी दी है । कुछ सांसो की खुश्बू चाँद की चांदनी  और पांव की झांझर बजी है ।
रुन झुन से अहसास ले रेल न जाने कितने अंजाने कस्बे गाँव नदी खेत मकानों को पार करते हुये आखिर पहुंच ही जाएगी जहां उसका गंतव्य होगा....जाओ कोई तो है जो तुम्हारा इंतजार करता है।

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