Wednesday, January 20, 2016

बेजुबान प्रेम

तुमसे प्रेम है ,
ये बतलाने के लिए
नहीं चाहिए कोई शब्द,
और न ही चाहिए
कोई बहाना
जिसमे बातें हो
धरती से आसमान की,
मेरे शब्द
हो कर मौन
आ बैठे है
मेरी सांसो से
पलकों में
और मुस्कराते है
होंठो से
फिर एकांत का लेकर सहारा
मेरी अंगुलियों से
तुम्हारी अंगुलियों में समा ,
बदल जाते है
प्रकाश पुंज में।
(प्रेम की बेजुबानी भी गजब की जुबां रखती है । वाह रे अलहदा प्रेम )

1 comment:

  1. आपकी सुन्दर रचना पढ़ी, सुन्दर भावाभिव्यक्ति , शुभकामनाएं.

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