पत्रकार को हमेशा सत्ता के प्रतिपक्ष में होना चाहिए .गणेश शंकर विद्यार्थी जी ने पत्रकारों के लिए ये यू ही नहीं कहा था .लेकिन आज पत्रकार प्रतिपक्ष के विकल्प के रूप में ज्यादा दिखते है . लाचार और आलसी विपक्ष मुखर पत्रकारों का परजीवी बन जाता है . पत्रकार विपक्ष का विकल्प नहीं . अगर विपक्ष सत्ता पक्ष से परेशान है तो सड़को पर उतरे , आन्दोलन करे लेकिन आप तो कम से कम सरकार या विपक्ष के पक्ष में आकर अपनी कलम ना चलाए . एक पत्रकार को उम्मीद और उलाहनाओ के बीच ही रहना चाहिए फिसल कर किसी एक का दामन थामने का मतलब आप सत्ता पक्ष के साथ है या फिर विपक्ष के साथ आप तटस्थ रहें जो आज शायद आप के लिए मुश्किल हो पर नामुमकिन तो नहीं . आप अपने पेशे के लिए जवाबदेह बने ना कि राजनेताओं के लिए . ईमानदारी से काम करे विकल्प ना बने .
किरण कोई व्यक्तिवाचक संज्ञा न होकर उन तमाम व्यक्तियों के रोजमर्रा की जद्दोजहद का एक समुच्चय है जिनमे हर समय जीवन सरिता अपनी पूरी ताकत के साथ बहती है। किरण की दुनिया में उन सभी पहलुओं को समेट कर पाठको के समक्ष रखने का प्रयास किया गया है जिससे उनका रोज का सरोकार है। क्योंकि 'किरण' भी उनमे से एक है।
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