Tuesday, April 14, 2015

दर्शन



वो जब मिला था 
मुझे ऐसा लगा कि 
मानो उसके अन्दर बुद्ध हो 
फिर ईशु की तरह लगने लगा 
दुनिया का सबसे अच्छा और सच्चा आदमी 
मुझे उससे मिलकर एक साथ 
कई महान आत्माओं के दर्शन होने लगे 
मेरी तो जैसे दुनिया ही बदल गई 
मैं दूसरी दुनिया मैं थी 
जहाँ प्रेम था शांति और दर्शन था 
अर्थ का कोई नामोनिशान नहीं 
मैंने मन ही मन कहा 
मतलबी दुनिया तुझे सलाम 
मैं चली मेरी दुनिया में 
हम घंटो नदी किनारे या किसी दर्रे में बैठे 
बात करते जिसमे सब कुछ होता 
गीत कविता दर्शन संगीत 
फिर एक दो तीन ...न जाने कितने दिन उसने मुझे 
प्रेम का दर्शन बताया 
दर्शन ने आकार लेना शुरू किया 
और मेरे अस्तित्व में दिखाई देने लगा 
और अचानक एक रात 
वो अपने दर्शन के साथ अकेला छोड़ 
किसी नए दर्शन की तलाश में जो गया 
तो नहीं लौटा 
मैं आज कल सुबह सात से शाम सात बजे 
मिल की मशीनों के बीच रहती हूँ अर्थ दर्शन को 
और रात दर्शनशास्त्र की किताबों को फाड़ लिफाफे बनाती हूँ

3 comments:

  1. सबसे बड़ा दर्शन जीवन दर्शन ,,अर्थ दर्शन ...

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  2. ऐसा दर्शन भी किस काम का जो प्रेम को समझ न सके ...
    गहरी रचना ...

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