Tuesday, September 9, 2014

एक अंधेरी रात और..........वो

एक अंधेरी रात समय १२. ४० दिल्ली का बाहरी इलाका हर तरफ सन्नाटा झिंगृर भी निशब्द.... बड़े-बड़े प्रेत की तरह झूलते दरख़्त तेज बारिश गाड़ी ख़राब। मैं गाड़ी से उतरती हूँ बारिश और तेज हो जाती है मैं पैदल ही चल पड़ती हूँ मैकनिक की तलाश में....

इतनी रात में मैकनिक कहा मिलेगा मैं बड़बड़ती हू दूर बहुत दूर पर एक मैकनिक है तभी आवाज आती है मैं डर जाती हूँ जी आप कौन........ उत्तर मिलता है मैं 'बेचैन आत्मा' मेरा डर कम होता है अच्छा वो फेसबुक वाले मैं तो आप को वाले ही समझी थी और अपनी आदतनुसार हस पड़ती हूँ उधर से बहुत ही डरावनी हसी सुनाई पड़ती है नहीं मैं सचमुच की बेचैन आत्मा हूँ अब फिर से डरने की बारी मेरी है मेरे हाथ पैर कांपने लगते है उधर से पूछा जाता है क्या में भी फेसबुक ज्वाइन कर सकती हूँ? मेरी डर से आवाज ही नहीं निकलती बेचैन आत्मा कहती है क्या है न वो हमारे यहाँ भी फेसबुक है पर उस पर इतने सारे भूतों ने भूतनीय बन के एकाउंट खोल दिए है की पता ही नहीं चलता की सही कौन और गलत कौन है खैर छोडो और बताओ.... 

मैं डरते -डरते पूछती हूँ आप कहां रहती है वो कहती है हमारे अपने बगले थे अब बिल्डरों ने तोड़ कर फ्लेट बना दिए है जी जी मै अपने कदम और बाते दोनों ही नहीं रोकना चाहती क्योंकि कुछ भी हो सकता है मैं पूछती हूँ आप में से कुछ लोग पेड़ पर भी रहते है न मेने टी वी पर देखा था फिर भयंकर हसी के साथ वो कहती है अरे में ही तो थी झूला झूल रही थी क्यों आप के फ्लेट के पास पेड़ नहीं अब मैं निडर होने लगती हूँ वो एक गहरी सांस लेती है पेड़ तो कई थे पर उनको काट-काट कर शॉपिंग मॉल बना दिए है इस लिए में झूला झूलने उधर ही निकल जाती हूँ गहरी उदासी के साथ वो बोलती है वहां मेरी सहेली भी रहती है जिसके साथ कुछ लोगो ने अनहोनी करके उसे पेड़ पर टांग दिया था।....


मैं ने कहा कड़कड़डूमा कोर्ट में भी तो आप के कुछ लोग है वो फिर हसी अबकी उसकी हसी डरावनी नहीं थी। अरे उनको तो हमारी भूतों की पंचायत ने सजा दी है वो क्या है न वो लोग जब जिंदा थे तो हमेशा कम्प्यूटर पर ही सारा समय निकाल देते थे अपने पारिवारिक सदस्यों को टाइम ही नहीं देते थे इसलिए हमारी पंचायत ने उनकी सज़ा ये दी है की वो रात ११ से सुबह ३ बजे तक कम्प्यूटर खोलेंगे और बंद करेंगे अब बिचारे वही करते है जी मैं ने मन ही मन प्रॉमिस किया अब से छोटा आर्टिकल भी लिखूँगी नहीं .......

क्या सोचने लगी उसने पूछा मै होले से मुस्कुरा दी अब हम दोस्त बन गए थे। वो बोली तुम यही सोच रही हो न की मैं इतनी खुश क्यों हूँ मैने धीरे से सर हिलाया उसने कहा क्योंकि यहाँ भूत समाज में कोई भेड़िये नहीं है जो हमारी इज्ज़त को तार -तार कर सके हमें यहाँ पर खुशियो का परित्याग नहीं करना पड़ता है. हम यहाँ पर जिंदगी को जीते है घसीटते नहीं ये कहा कर उसने बिदा ली में ने देखा उसके चेहरे पर असीम आनंद था...... मै सोच रही थी काश हमारे यहाँ पर भी महिलाओं को इतनी सुरक्षा और स्वतंत्रता मिले।

No comments:

Post a Comment