तृष्णा की है सारी दुनिया
प्रलोभन का इसमे वास
नहीं मिलेगा कोई यहाँ
जिस पर कर तू विश्वास
क्यों व्याकुल हो मन भटकता
क्यों सहता ये प्रलाप
हर और घात ही घात
निराशा का भीषण आघात
शव जैसी ये भौतिक उपलब्धि
व्यर्थ का सारा विज्ञान
उन्माद जैसी ये प्रगति
करती मानव को परेशान
भटक- भटक तू जीवन में फसता
दिन- रात दोड़ता, कमाता तू
अब आया जीवन संध्या काल
तब जाना ये है मायाजाल