Thursday, June 23, 2011

वादियों और फिजाओं ने गढ़ी प्यार की नयी परिभाषा - डॉ किरण मिश्रा



मैंने अलसाई सी आंखे खोली है.लेटे-लेटे खिड़की से दूर पहाड़ो को देखा पेड़ो  और पहाडियों की श्रंखलाओ के पीछे सूर्य निकलने लगा है, हलकी - हलकी  बारिश हो रही है, चिड़िया गा रही है कुछ धुंध  भी है जो पहाड़ो से रास्ता बना कर होटल की खिड़की से मेरे कमरे मैं आ रही है . पहाड़ो मैं मेरा बचपन बीता  है फिर आज नया क्या है कुछ अलग सा एहसास ये चुपके से कौन आया है मेरे पास पहाड़ो के पीछे से या उस झील की गहराई से जो चाँदी के तारो की तरह चमक रही है, मैं उसे टटोल ही नहीं पा रही हूँ. कौन है जो मन के दरवाजे से दस्तक दे कर चुप खड़ा है, मुझे  लगता है मेरा होना न होना होकर रहा गया है मेरी रुह मेरा साथ ऐसे छोड़ रही है जैसे पहाडियों की ऊची चोटी से बर्फ धीरे -धीरे पिघल रही है,  मुझे लग रहां  है किसी ने मेरा हाथ थाम  लिया है मुझे ले चला है झील के किनारे फिर देवदार के घने जंगलो की तरफ .  पहली बार इस यात्रा में मैं खुद को महसूस कर पा रही हूँ. मुझे लग रहा है कि नैनीताल की सारी धरती मेरे साथ नाच रही है आकाश नाच रहा है देवदार अन्य पेड़ो के साथ नाच रहे है. 
कहते है जब आप प्रेम में  जीते है तो हर तरफ फूल ही फूल खिल उठते है चारो और हरियाली छ जाती है और पहले से ही आप हरित प्रदेश में हो तो..... प्रेम  फूलो की खुशबू  की तरह आपके तन-मन में बहता है . मुझे लग रहा है देवभूमि में किन्ही दो प्रेमियों का मानस- रस सहज ही प्रवाहित हुआ होगा तभी इस भूमि में स्नेह  बहता  है उसी ने मेरे तन- मन को पागल कर दिया है. नशा, उन्माद, काव्य, नृत्य, गीत हजारो रूपों में अपनी पुरी मौलिकता  से मेरे अन्दर प्रस्फुटित हो रहा है. आज अचानक इस देवभूमि में, मैं प्रेम की बात क्यों कर रही हूँ . कौसानी के सन सेट  पॉइंट पर बैठी -बैठी मैं सूर्य को पहाडियों के पीछे डूबता देख रही हूँ. ऐसा ही होता है प्रेम भी   
जब हम किसी के प्रेम में डूब जाते है तो हमारा जीवन साधारण  ऐसा ही सुन्दरतम हो जाता है जैसा कौसानी के सन सेट  पॉइंट पर सूर्य डूब रहा है पहाड़िया उसे अपने आगोश में छुपा रही है किसी बाँहे फैलाये प्रेमिका की तरह आज मैं एस सन सेट पॉइंट से दुआ करती हूँ की दुनिया का कोना- कोना प्यार की ख़ुशबू से महक उठे . किसी को किसी से नफरत ना हो, धर्म जाति सबसे ऊपर हो जाये प्रेम . जो प्यार में है प्यार करते है जिनके साथ उनका प्यार है वो इन पंक्तियों  को पढ़  कर सहमत होगे उनके लिए प्रेम का अर्थ भी यही है . प्रेम सबसे ऊपर है . वो गुलजार साहब कहते है ना की पांव के नीचे जन्नत तभी होगी जब सर पर इश्क  की छाँव होगी
भवाली का कनचनी मंदिर, अल्मोड़ा , कौसानी, रानीखेत का कलिका मंदिर  गोल्फ लिंक, हैदा खान मंदिर नैनीताल का भीम ताल , सात ताल , नौकुचिया ताल, हनुमानगढ़ी, केव गार्डन बर्न पत्थर, वाटर घुमते  हुए मुझे लगा की ना जाने कितने जोड़े प्रेम में डूबे हुए इन स्थानों  में घुमे होंगे एक दूसरे के असितत्व  में अपनी हर ख्वाहिश   का रंग घोलते   हुए इन  मंदिरों, गुफाओं, जंगलो, पहाडियों को अपने प्रेम का स्पर्श करते हुए यंहा से निकले होंगे तभी एस देवभूमि में एक अजीब तरह की मादकता है, नशा, शांति है सम्पूर्णता है मैं महसूस कर रही हूँ उन सब की संवेदना को. कितना सुन्दर कितना सुखद एक पूरे  व्यक्तित्व को सम्पूर्ण  रूप से अपने अन्दर समाहित करना . 
हर वो इंसान जिसे किसी भी रूप में प्यार चाहिए यानी जिन्दगी उसे नैनीताल  में हिमालय दर्शन जरूर करना चाहिए दूर हिम श्रंखलाए दिख रही है मानो  प्रेम  की परिभाषा सिखा रही है कह रही है देखो हम हिम श्रंखलाओ  को, हम मुक्त है कभी  बंधते बांधते  नही हमेशा पिघलते रहते है बस प्रेम भी ऐसा ही है जो मुक्त करता है बंधता नहीं जिसके साथ हम रहते है उसे हम सुख से ही नही भरते बल्कि उसके भीतर के बंद दरवाजो को खोलते भी चलते है. उसके वास्तविक रूपों को साकार करते है जब हम पिघलते है हमारे पिघलने सब साफ होकर साफ-साफ दिखने लगता है . तुम भी ऐसा ही करो जमो नहीं पिघलो  किसी के प्यार में तभी प्रेम के चरम को पाओगे. यह उदात्तता  नही यह साधना है . हिम श्रंखलाओ से प्रेम का एक नये रूप का परिचय पाकर जब मई  लवर्स  पॉइंट पहुंची तो ऐसा  लगा की किसी ने मेरी रूहों को छुआ है लवर्स  पॉइंट भी क्या खूब जगह है आप एक साथ वह पर बैठेगे तो पायेगे जैसे की देह छुट गयी है और आपकी आत्मा एक दुसरो में बध  गयी है और ऐसे बध गई है की आप एक दूसरे  की संभावनाओ को देख सकते है, उन्हें संवार  सकते है. यह पर आकर बुद्धि नहीं दिल की सुनते है दिल में छुपे प्रेम को सुनते है बुद्धि रूपी गणित की नही प्रेम को पाने का द्वार  तो प्रेम है गणित नहीं यह आकर ही ये समझ पाते  है. आप के प्रेमी  या प्रेमिका  शरीर से बढकर एक आत्मा है और किसी की आत्मा को दुखाया नहीं करते उनके मन और मस्तिष्क का ख्याल रखिये लवर्स  पॉइंट कुछ ऐसा ही मुझे समझा गया और शायद मेरे साथ सारी कायानत को सदियों से समझाता चला आ रहा है तभी नैनीताल की वादियों में प्यार के गीत आज भी गूंजते है और सदियों तक गूंजते रहेगे और ये गूंज आकाश, धरती  हर वो जगह फैल जाय जहां    ईष्या, अत्याचार, पाखंड , आतंक है, इसी आशा में मैंने अपना सर गाड़ी की सीट पर टिका लिया .

              




















                                            सबके दिलों में ऐसे ही प्यार की ज्योति जलती रहे 

Friday, June 10, 2011

दर्द का उद्धार

सामाजिक  संरचना तथा सामाजिक व्यवस्था का स्वरूप इस बात पर निर्भर करता है की उसके अंतर्गत स्त्रियो की स्थिति कैसी है. स्त्रियों की स्थिति भारतीय समाज में कैसी है और कैसी होनी चाहिए ये विवाद का विषय रहा है. मै इस  विवाद में नहीं पड़ना चाहती क्योकि मेरा मानना है कि अगर आप में गुण है तो एक न एक दिन आप को उपयुक्त स्थान मिलेगा चाहे समाज हो या घर भारतीय स्त्री के साथ ऐसा ही हुआ है आज उसने अपनी स्वतंत्र  पहचान बनाई है सामाजिक निरर्थकता को पूर्णतय समझते हुए. अगर भारतीय नारी चिरपरचित समर्पित पत्नी और वत्सल्मयी माँ है तो वैराग्य में साध्वी गणिका के रूप में स्वतंत नारी अस्त्र-शस्त्र एवं शासन में प्रवीन वीरांगना , स्वतन्त्रता आन्दोलन में संघर्षरत, साहित्य में सृजनशील, कलाओ में निपुण रही है.लेकिन में इस लेख  के माध्यम से बात करुगी आज की नारी की.आज  की नारी  अधिक जागरूक. अधिक साहसी, अधिक  आत्मनिर्भर है फिर क्या कारन है की वो आज भी पीड़ित है में यह कोईआंकड़े  नहीं दुगी जो ये बताये की आज की नारी कितने प्रतिशत खुश या दुखी है. नविन  सामाजिक परिवेश में नारी अपने आप को कहा पति है ? ये विचारणीय प्रश्न है क्या आज की नारी समाज, घर, संस्क्रती, आर्थिक सम्बन्ध, पुरषों के साथ उसके सम्बन्ध, स्वयम के प्रति उसका नजरिया, शिक्षा के प्रति उसका नजरिया बदलने के वाबजूद अपने को अकेला, कमजोर, दुखी नहीं पति है ? अब जबकि समाज में नारी ने अपने आस्तित्व की नई परिभाषाए लिख दी है तो फिर वो दुखी, एकांगी क्यों ? यह पर में बता दू की सबसे ज्यादा कामकाजी महिलाये ही इसका शिकार है. इसमे कोई दो राय  नहीं हो सकती  की बहुत कुछ  बदला है पर इस बदलाव  को देखने  वालो  का नजरिया नहीं बदला .सहन , समझोता , करना,खुशियों   का परित्याग  और कल्याण  करने  जैसे कई सामाजिक दवाब स्त्री के ऊपर पड़ते है. अगर हम भावनात्मक खुशि और जिंदगीभर संतुष्ट  जीवन जीने का अवसर खो देने की बात न करे तब भी सामाजिक मानदंडो को बनाए रखने की कीमत स्त्री के जीवन पर नि: संदेह काफी ज्यादा पड़ती है. प्रतिकूल सम्बन्ध का स्पष्ट भौतिक प्रभाव स्त्री के स्वास्थ्य पर पड़ता है फिर पुरे समाज पर, जिसे अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए.जब लगातार घर में विरोधी या नकारात्मक और तनाव से भरा माहौल का सामना करना पड़े या समाज में तो स्त्री क्या करे ? एक उतर ये हो सकता है कि जीवन का फिर से निर्माण करे  जो कि  समाज  में  एक  स्त्री  के  लिए  आनेतिक  माना जाता  है    या  समझोता  कर  ले  जो  क़ि स्त्री  बहुतायत  में  करती  है  . फिर  बात  वाही  जा कर   रूक  जाती  है  क़ि  स्त्री    के  लिए  जीवन  सीधा- साधा   क्यों  नहीं  होता  ? उसे  हमेशा  जी  अच्छा , ठीक , आप  जो  कहेगे , इन शब्दों  को  लेकर  ही  क्यों  जीवन  जीना  पड़ता  है . में इस लेख के माध्यम से कोई विवाद नहीं खड़ा करना चाहती हू और ना ही तथाकथित स्त्री आन्दोलन क़ि हिमायती हूँ मैं तो अपने विचारो के साथ तमाम उन स्त्रियों क़ि मन क़ि बात रख रही हूँ जो सिर्फ अपने विचार घर, समाज में रखना चाहती है उसे मानने के लिए बाध्य नहीं करना चाहती है .लेकिन अब समय आ गया है क़ि स्त्रियों को ये तय करना ही पड़ेगा क़ि उन्हें किसी और के द्वरा बने -बनाये समाज में रहना है या अपना आशियाना खुद बनाना है. आशियाना बनाते समाये हमें किसी और के नज़रिये क़ि जरुरत नहीं है अगर हमें जरुरत महशुश हुई तो एक बार फिर हमारे हिस्से हमेशा क़ि तरहा दुःख, संत्राप, अकुलाट ही आएगी. स्त्री जाती को जीवन के अर्थ खुद खोजने होगे ये ध्यान   रख कर क़ि सारी मानव जाती के सृजन के साथ-साथ उसे संस्कारी भी बनाना है .      


         

Sunday, June 5, 2011

विचार करे अगर मानवता जिन्दा है?

बाबा राम देव के मुद्दे पर ब्लॉग जगत से ले कर फेस  बुक तक तमाम बाते हो रही है कुछ बाबा के साथ है कुछ सरकार  के साथ में इस बहस में कि  क्या  सही और क्या  गलत है नहीं पड़ना चाहती पर एक बात सारी मानव जाति से पूछना चाहती हूँ की हम क्या गुलाम  युग में जी रहे है हम अपने दिल की आवाज को शांति के साथ लोकतान्त्रिक  सरकार के सामने नहीं रख सकते और क्या बात रखने पर हमारे साथ गुलाम युग के जैसा 
व्यवहार किया जायगा ? अब समाये आ गया है कि हम अपने व्यवहार पर चिंतन करे क्या हम मानव है या ....? ये घटना किसी सरकार विशेष का मुद्दा नहीं है कि सरकार ने बाबा और उनके समर्थको के साथ क्या किया या बाबा क्या कर रहे थे बात सिर्फ ये है कि जो हो रहा था उसके ऊपर कारवाही का तरीका अमानवीय था सारी मानव जाति को इस पर विचार करना चाहिए हम क्या मानव है ...? विचार करे अगर मानवता जिन्दा है और इस घटना पर अपने विचार व्यक्त करे.
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Thursday, June 2, 2011

हर टापर लडकी में तुम्हारा अक्स दिखता है शमशुन: Shamshun, the untold Story

 
हर साल की तरह दसवी बारहवी  के परीक्षा परिणाम आ गए है . ज्यादातर वर्षो की तरह लडकियों ने ही बाजी  मारी है. अपने घर के व अपने छोटे मोटे कामो को कर के  आज फिर मुझे कई वर्षो पूर्व का वाकया याद आ गया . तब हम होशंगाबाद में रहते थे "वो" हमारे घर के पीछे बने छोटे से घर में रहती थी तब वो हाई स्कूल  में पढ़ती  थी उसके पिता फेरी लगाने का कम करते थे माँ रजाई धुनने का मै अपने घर की खिड़की से जो की ऊँची पहाड़ी पर था उसके कम करने को देखती रहती थी उसके घर मै उसकी बड़ी बहन जिसकी शादी हो चुकी थी और माँ पिता के आलावा कोई नहीं था वो अपने पढाई   के खर्च को चलने के लिए कभी- कभी चुडिया बेचती कभी पोस्टर -कलेंडर, मेरी दोस्ती भी उससे अजीब तरह से हुई मुझे जानवर पालने का शौक था कुत्ते द्वारा  सताए  जाने के बाद (उसने मेरी फ्राक फाड़ डाली थी )मैने बिल्ली पाली जिसने मेरे मुंह पर पंन्जा मारा (मेरे द्वारा  उसका ज्यादा मुंह साफ करने के कारण  ) तब मैने घर पर घोषणा की अब मै कुत्ते - बिल्ली नहीं पालूगी माँ ने कहा तोता पाल लो नहीं तोता नहीं मैने जवाब दिया वो मुझे इसलिए अच्छा नहीं लगता था वो हरदम बोलता रहता था और मेरे साथ खेलता ही नहीं था मैने तब खरगोश पालने की इच्छा व्यक्त की मेरी इच्छा  तुरंत मान ली गयी मेरा उससे मिलना भी इसी कारण  हुआ मुझे खरगोश के लिए हरी -हरी दूब चाहिए थी माँ ने मुझे सुझाया पीछे शमशुन दीदी रहती है उससे कहा दो वो रोज दूब  ले आएगी. वो रोज दूब  लाने  लगी और बस हमारी दोस्ती चल पड़ी मैने उसे दीदी मानने से इनकार  कर दिया और उसने भी मुझे दोस्त मान लिया वो दूब  लाते-लाते न जाने कब तेदु के फल , रंग - बिरंगी चुडिया ,रंगीन पोस्टर लाने लगी मै उससे कहा करती तुम मेरे साथ ज्यादा देर तक क्यों नहीं रहती उसका कहना होता हाईस्कूल के बाद मुझे इंटर करना है और फिर बी.ए. ,एम .ए. उसके लिए मै दोपहर को तेदु के पत्ते  इकट्ठे  करने जंगल जाती हूँ (तब मुझे पहली बार मालूम पड़ा की तेदु के पत्तो से बीडी बनती है उनका  ठेका उठाता  है ) शाम को घास बेचती थी पुरे  दिन की मेहनत के बाद उसका सपना ज़िंदा रहता  था हमेशा उसकी आँखों मे. मुझे मैने आठवी  पास की और उसने हाईस्कूल हम दोनों खुश थे उसने मुझे अपने घर पहली बार बुलाया था हमेशा की तरह ऊँच -नीच ,छोटे- बड़े को नहीं मानने वाली  मेरी माँ ने  मुझे खुशी- ख़ुशी जाने दिया  था. घर क्या था रुई धुनने का छोटा सा स्थान था. एक रसोईघर जिसमे चन्द बर्तन थे फर्नीचर के नाम पर एक मूझ की चारपाई और एक कुर्सी वो  भी टूटी.हमारी दोस्ती इन चीजो का कोई स्थान नहीं था उसके घर के पीछे  फूलो का छोटा सा बगीचा था जो उसकी मेहनत का परिणाम था वह लगे रंग- बिरंगे फूल और उन के बीच मौलश्री के पेड़ पर टगे झूले को देख कर मेरा मन खुश हो गया उस दिन मानो  मुझे दुनिया की निमायत मिल गई हो. हम घंटो झुला झूलते रहे उस दिन
हम इतना हँसे जिसकी गूंज मुझे आज भी सुनायी देती है फिर तो ये सिलसिला चल  निकला अब तो जब भी मौका मिलता में अपनी किताबे उठा कर पीछे के दरवाजे से उसके घर भाग जाती वह  हम दोनों झुला झूलते हुए ढेरों  बात करते उसने मुझ हँसते- हँसाते जंगल, फूल - फल की ढेरों  जानकारी दी कौन सा फूल कब खिलता है उसमे कितनी खाद - पानी होना चाहिए ये सब मेने उसी से सिखा दिन बीत रहे थे हमारी दोस्ती और मजबूत हो रही थी . हम दोनों ही व्यस्त थे मेरा हाईस्कूल और उसका १२ वी बोर्ड था हम दोनों ने उस बगीचे और झूले पर खूब पढाई की परिक्षाए खत्म हुई जिसका हम दोनों को इंतजार था परीक्षा परिणाम निकला शमशुन ने पुरे जिले में टाप किया था मै उसके घर दौड़ पड़ी हम बहुत खुश थे माँ ने जी भर कर हम दोनों को मिठाई खिलाई और हमें कपड़े लाकर दिए हम ने नए-नए कपड़े पहने और होशंगाबाद से लेकर पंचमढी  तक खूब घूमे  . गर्मियों की छुटिया तो हो गई ही थी,मुझे उत्तर- प्रदेश मै अपने घर एक शादी मै जाना पड़ा मेरा मन शादी मे नहीं लग रहा था मे जल्दी से जल्दी शमशुन मिलना चाहेती थी जेसे ही हम घर पहुचे मै घर से निकल पड़ी , माँ हँसी मै बिना कुछ कहे मुस्कुरा दी हम कई दिन बाद मिले इस  बार वो मुझसे मिल के बहुत रोई रोना मुझे भी आया जब उसने बताया  मेरी शादी हो रही है इतनी जल्दी और तुम्हारी पढाई मेरे मुँह से निकल पड़ा उसने उदास नजरो सेमेरी तरफ देखा कहने लगी किरण हम छोटे लोग सपने देखते है उसे आँखों मै पलने के लिए वो पुरे होंगे एसा तुमने कैसे सोचा हमारा सारा खेल -कूद, पढाई-लिखाई ,रुचि
सपने आदि सभी गृहस्थी के चक्कर में इस तरह डूब जाती है की फिर हम कभी कोई सपने देखने के लायक नहीं रहते . हमारी पूरी पहचान गोद में लटके  बच्चो  तक ही सीमित   होकर रहा जाती है. हमारे सतरंगी सपने हमें भूलने पड़ते है बस याद रखना पड़ता है नमक , तेल,
और, लकड़ी एक आह भर कर उसने कहा था अगले जन्म में मौका मिला तो खूब पढूंगी  और कभी शादी नहीं करूंगी. हर वर्ष जब भी हाईस्कूल इंटर का रिजल्ट घोषित होता है मुझे हर वर्ष  उसका ख्याल आता  है और उन सारी लडकियों का भी जिनके सपने अधूरे ही रहा जाते है. आज जिन्होंने सफलता   के सबसे ऊँचे मुकाम हासिल किये है वे यही तक ही न रुके, हर उस छोटी तक पहुंचे जंहा पहले कोई  न पहुंचा हो मन से बस यही दुआ निकल रही है.